Friday, May 27, 2016

जिन लोगो का अपना घर तक नही संभलता वो भी मोदीजी को देश संभालने का ज्ञान देते फिरते है...!

जिन लोगो का अपना घर तक नही संभलता, वो भी मोदीजी को देश संभालने का ज्ञान देते फिरते है...!

पिछले 2 वर्षो से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को वोट देने वालो में आलोचकों का एक वर्ग तैयार हों गया है।
इन आलोचकों में 2 तरह के लोग है,एक वह जो 25% बीजेपी का पहले से ही वोटर था और दूसरा वह करीब 7% जिसने नरेंद्र मोदी में नई आशा देख कर वोट दिया था।
इन 7% वोटरो का आलोचक बनना समझ में आता है क्योंकि यह फ्लोटिंग वोटर है और यह अपनी प्राथिमिकता तय करके ही मोदी को वोट करने गया था।
लेकिन 25% में से व्यग्रता और अधीरता में आलोचक बनना मुझे नही समझ में आता है।
जो वर्ग दो दशको में 15%, से 25% पर पहुंच हो उसका 2 वर्षो में ही सारी अभिलाषाएँ पूर्ण होने की अपेक्षा करना,उनका वास्तविकता से मुँह मोड़ना होगा।
हद तो यह है की जिन लोगो का अपना घर संभलता नही है वह भी देश संभालने का ज्ञान देते फिरते है।
आप सभी को यह बात बड़ी दुरस्त तरीके से समझ लेना चाहिए की 16 मई 2014 के चुनाव पश्चात केवल इतना ही बदलाव आया है कि ..........
लोक सभा में बहूमत बीजेपी का हो गया है और केन्द्रीय मंत्रीमंडल अब मनमोहन सिंह (सोनिया-राहुल) के अधीन न हो कर नरेन्द्र मोदी के अधीन है।
भारत में लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में,सत्ता सिर्फ प्रधानमन्त्री या उसके अधीन केंद्रीय मंत्रियों के हाथ नही होती है,उनके आलावा यह सत्ता अन्य व्यवस्थाओं से भी चलती है,जिन पर पिछले 67 सालों से कांग्रेस के नेहरू-गांधी परिवार और वामपंथियों का वर्चस्व है जो निम्नलिखित है:
राज्य सभा
मीडियl
न्यायपालिका
नौकरशाही
पुलिस
जाँच एजेंसियाँ
CAG
RBI
शिक्षा संस्थान
उद्योग जगत
व्यापार जगत
धर्म संस्थान (शंकराचार्य स्वरूपानन्द,शाही
 ईमाम)
बुद्धि जीवी (लेखक कलाकार इतिहासकार)
NGOs
श्रमिक संगठन
बाहूबलि व अंडरवर्ल्ड
आदि इत्यादि।
67 वर्षों में कांग्रेस ने इन अधिकांश अंगो,संस्थाओं में अपने वफादारों को नीचे से ऊपर तक बैठाया है।
इन वफादारों की सिर्फ एक ही अग्रहिता हैं की वह नेहरू-गांधी परिवार के प्रति वफ़ादार है
और राष्ट्र के प्रति सत्य निष्ठा उनके लिए कोई मायने नही रखती है।
कांग्रेसी सत्ता के इस चरित्र ने राष्ट्र के चरित्र को ही भृष्टमय बना दिया है जहाँ सभी भृष्ट आचरणों को जनता ने सामाजिक जीवन में स्वीकार करने के साथ उसके प्रति उदासीन होना अपने नित्य जीवन का अंग बना लिया है।
हम पिछले 67 वर्षो में इतना भृष्ट हो चुके है की इन वर्षो में विकसित तन्त्र और उसके प्रेरणा श्रोतो के प्रति वफ़ादारी ने राष्ट्र द्रोह करना भी स्वीकार कर लिया है।
यहां यह भी स्वीकार कर लीजिये की हम जहाँ 67 साल के कुशासन का रोना रोते है वहीं इतने अदूरदर्शी भी है की हम निजी जातिगत स्वार्थों के लिए राज्यों के चुनाव में बीजेपी को हरा कर राज्यसभा के दरवाजे उनके लिए बन्द किये जाते है।
जो आप के बस की बात नही है उस पर मैं कुछ नही कहूँगा लेकिन जो बस में है वह समझ लीजिये की भारत में असली बदलाव तब आयेगा जब इन सभी अंगों,संस्थाओं का भी शुद्धि करण होगा और इसमें वक्त लगेगा।
आप विश्वास रखीये की भारत का असली परिवर्तन 2019 के बाद दिखेगा।
अगले एक दशक में आपकी एक एक करके प्राथिमिकताएं पूरी होंगी,तब तक आप संयम रखिये!
यह सब आपके लिए नही हो रहा है,यह सब आपकी पीढ़ी के लिए हो रहा है,इसलिए कुछ समय दीजिये!!


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