Monday, February 29, 2016

क्या मंत्री होना उनकी संवेदनशीलता पर प्रतिबंध लगाने का काम कर देगा?

रामशंकर कठोरिया जैसे दलित नेता को आज मीडिया ने जमकर परेशान किया है।
उन्होंने अपने भाषण में किसी समुदाय का नाम नहीं लिया;मगर उन्होंने एक गोभक्त दलित की हत्या पर क्षुब्ध होकर जनता से कुछ बोला भी तो क्या बुरा बोला।
क्या मंत्री होना उनकी संवेदनशीलता पर प्रतिबंध लगाने का काम कर देगा?
न जाने कितने भड़काऊ भाषणों को हमने कुछ जाहिल मुसलमानों के तथाकथित रहनुमाओं के मुँह से सुना है कि दस मिनट के लिए पुलिस हटा लो तो हिन्दुओं को साफ़ कर देंगे। सड़ा;बदबूदार लाशों का चिथड़ा तुम लोग खाते हो;कुत्तों की तरह का भोजन करने वालों को साफ़ होने की आवश्यकता तुम्हें है।पहले ख़ुद की क़ौम को साफ़ करो।और रही पुलिस की बात तो कानून व्यवस्था बनाना उनका ही काम नहीं है।नागरिकों का भी काम है।
ख़ैर हिन्दू मुसलमान में वैमनस्य फैलाकर जो भी दंगों को देश की मासूम जनता पर थोपना चाहते हैं वो सभी नालायक लोग हैं।लेकिन एक गोभक्त की हत्या के ख़िलाफ़ अगर एक मंत्री भावनाओं में बह भी गया तो उसके पीछे पड़ने में मीडिया ने देर नहीं लगाई।
क्या इतनी तत्परता गोभक्त अरूण जो कि दलित है, के राजनीतिक संरक्षण पाए हत्यारों के पीछे पड़ने के लिए दिखाई थी?
हमें ख़बर भी नहीं थी कि राहुल गाँधी आत्महत्या करनेवाले याकूब मेनन के समर्थक देशद्रोही में दलित की संवेदना जग सकती है;मगर गोभक्त की हत्या पर उसका दलित होना ख़ारिज हो गया?
जनता! देख लो;दलितों की राजनीति करने वाले भी मानते हैं कि जो हिन्दू सनातन धर्म को प्रेम करता है वो दलित नहीं रहता;जो देशद्रोही मुसलमानों के चक्रव्यूह में फँसा हुआ है।वो ही असली दलित रह गया है।
ये दलित क़ौम का अपमान है।ये उनकी पददलित सोच का सर्टिफ़िकेट बाँट रहे हैं।
मनुवाद को गाली देकर ये तुम्हारे मन को ख़ुश कर सकते हैं लेकिन तुम्हें बौद्धिक संपदा के स्तर पर पहुँचा देखकर तुम्हें दलित होने के स्वीकार से ही मना कर देते हैं।कहते हैं कि दलित गौरवशाली संस्कृति का हिस्सा हो ही नहीं सकता।ये है उनकी घटिया राजनीति।
थूक भी नहीं सकता उन कमज़र्फ़ों पर;
मेरा थूक भी मैला हो जाएगा।
नहीं लेना है स्वाद इस राजनीति का;
सबका मुँह कसैला हो जाएगा।

इस तरह की अराजकताओं को जो नाम दिये जाते हैं वह ठीक नहीं है इसे सिर्फ और सिर्फ अराजकता कहा जाना चाहिए..!

पिछले दिनों हरियाणा में हुई अराजकता को जिस तरह जाट आंदोलन कहकर प्रचारित किया जा रहा है..!
वह गहरी राजनीतिक साजिस है.! इस तरह की अराजकताओं को जो नाम दिये जाते हैं वह ठीक नहीं है इसे सिर्फ और सिर्फ अराजकता कहा जाना चाहिए..!
दादरी कांड को हिन्दुत्ववादी आंदोलन से जोडा गया, मालदा की अराजकता को इस्लाम से जोडा गया, हरियाणा में दिन-दहाडे जो लूट-पाट, हत्यायें आगजनी बलात्कार हुए और पूरा जनजीवन अराजकता के हवाले किया गया उसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की है। जो सरकार अराजकता नहीं रोक पायी उसे कटघरे में खडा किया जाना चाहिए लेकिन सरकारें कह रही हैं कि यह जाट आंदोलन था..!
ना तो जाट समुदाय को हम इकतरफा तौर पर इस तरह बदनाम कर सकते हैं और ना ही यह कोई आंदोलन था। आंदोलन की अपनी एक गरिमा और मर्यादा होती है। अराजकता को आंदोलन कैसे कहा जा सकता है..?
इसी तरह हिन्दूवादी आंदोलन और मुसलमानवादी आंदोलन कहने से पहले हमें विचार करना होगा कि हम क्या कह रहे हैं अराजकता और जंगलराज को किसी धर्म, जाति और समुदाय जोडना सही नहीं हैं..!
जहॉ भी सामाजिक अराजकता हो उसकी पूरी जिम्मेदार प्रशासन और सरकार की असफलता है और समाज को बॉटने की गहरी साजिश है ताकी वोटों की दुकानदारी की जा सके..!!

Sunday, February 28, 2016

आज राहुल गाँधी कहते है की केंद्र सरकार कन्हैया की आवाज दबा रही है

आज राहुल गाँधी कहते है की केंद्र सरकार कन्हैया की आवाज दबा रही है ..विश्व में पहली बार कम्यूनिस्टो ने चुनावो द्वारा सत्ता केरल में 1957 में हासिल की थी.. ई एम् एस नम्बूदरीपाद केरल के मुख्यमंत्री बने ... भारत के किसी राज्य में पहली बार गैर कांग्रेसी दल सत्ता में आया था ...
नम्बूदरीपाद ने सत्ता मिलते ही अपना वामपंथी एजेंडा लागु करना शुरू कर दिया ..केरल में भारत के सम्विधान को भी मानने से जैसे इंकार कर दिया था ..फिर मात्र २ साल बाद ही नेहरु ने नम्बूदरीपाद सरकार को बर्खास्त कर दिया .आजादी में बाद नम्बूदरीपाद सरकार पहली ऐसी सरकार थी जिसे आर्टिकल 356 के द्वारा केंद्र ने बर्खास्त किया हो ...
और आज वही वामपंथी सूअर कांग्रेस की गोद में बैठकर आजादी की बात करने लगे

और एक बात भारत में मुस्लिम लीग से बड़ा साम्प्रदायिक दल दूसरा कोई नही होगा ..इसकी स्थापना ही सिर्फ मुसलमानों के लिए की गयी थी .. देश को तोड़ने में मुस्लिम लीग का सबसे बड़ा हाथ था ..आजादी के बाद भी मुस्लिम लीग के कुछ सदस्य भारत में ही रहे और उन्होंने मुस्लिम लीग को जिन्दा रखा ..भारत में मुस्लिम लीग का सबसे ज्यादा प्रभाव केरल में है..
मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन करके सीपीआई ने केरल में पांच बार सरकार बनाई है... वामपंथी दलों की ये कैसी धर्मनिरपेक्षता की ये मुस्लिम लीग को साम्प्रदायिक पार्टी नही मानते जिसके सम्विधान में ही लिखा है की हम सिर्फ मुस्लिमो की भलाई के लिए काम करेंगे और भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनायेंगे

Saturday, February 27, 2016

अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भारत को बर्बाद करने की ख्वाहिश

किसी घर की बहु-बेटी जब माँ बनने वाली होती है तो उसको अस्पताल ले जाया जाता है ! अगर वहाँ पर डॉक्टर कहता है कि मामला जटिल है, दोनों को बचाना मुश्किल है, या तो बच्चे की जिंदगी बचाई जा सकती है या फिर "माँ" की जिंदगी को ही सुरक्षित किया जा सकता है। ऐसे हालात में घर वाले का यही कथन होता है कि :- "डॉक्टर साहेब कोशिश कीजिये कि दोनों बच जाये, लेकिन अगर ऐसा ना हो तो 'माँ' को बचाइये" !
घरवाले ऐसा क्यों कहते हैं ? क्योकि अगर माँ है, तो फिर बच्चे का जन्म कभी भी सुनिश्चित किया जा सकता है। माँ चाहे देश के रूप में हो या फिर हाड-मांस की हो, उसकी रक्षा और सुरक्षा हमारा-आपका दायित्व है और यदि किसी की भी लापरवाही से माँ के जीवन को खतरा हो रहा है तो उसके लिए जो उपचार है वो करने ही पड़ंगे।
अब इस उदाहरण को JNU मामले जोड़कर देखिये जनाब। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भारत को बर्बाद करने की ख्वाहिश, "अफजल" जैसे आतंकवादियों से सहानभूति रखते है और कहते है कि इस देश द्रोह नहीं कहा जा सकता है। सेक्युलर ताकतें और कुछ कु-बुद्धिजीवी जैसे "दीमक" भी इन्हें पनाह देते हैं। मत भूलो की अगर हिंदुस्तान है, तभी तक अभिव्यक्ति की आजादी का प्रयोजन है। भारत माता ही नहीं बचेगी तो "अभिव्यक्ति की आजादी" का क्या करोगे बुद्धिजीवियों ?
अब समय आ गया है की, कुछ मीर ज़ाफ़र और जयचंद की मौत से भी अगर सिराजुद्दौला और पृथ्वीराज जैसों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है, तो सरकार इससे गुरेज नहीं करे। क्योंकि इतिहास गवाह है, मीर ज़ाफ़र और जयचंद के सहारे ही हर बार "भारत माता" को ग़ुलाम बनाया गया है। भारत माता को बचाने के लिये इन बिगड़े बामपंथी-माओवादी-नक्सली-जिहादी विचारधारा के बच्चों को खोना पड जाये तो भी कोई नुकसान नही...!

Friday, February 26, 2016

आज कौन है वो दलित-पिछड़ी जाति का व्यक्ति जो खुद को महिषासुर जैसे निगेटिव करेक्टर की औलाद मान गौरवान्वित महसूस करेगा ?

कुछ साल पहले की बात है, हिन्दुओं के खिलाफ एक षड्यंत्र के तहत दक्षिण भारत का बामपंथि पेरियार "रावण पूजा" का चलन शुरु किया था, रावण को आर्य पीड़ित समुदाय का बता एक किताब ”रावण काव्यम्" लिख महिमामंडन करने का प्रयास किया गया। गाजे-बाजे के साथ रावण की शोभा यात्रा निकाली गयी, जिसमे प्रभु राम के लिये कई अनुचित-अमर्यादित शब्दों का प्रयोग किया गया। प्रभु श्रीराम को बदनाम करने के उद्द्येश से इस नीच बामपंथि ने "सच्ची रामायण" भी लिखा, जिसे आज कुत्ता भी नही पूछता।
पर जब इस दुष्ट को ज्ञात हुआ की रावण ब्राह्मण कुल से है, तो "रावण पूजा" तत्काल बंद कर दी गयी। दरअसल इन्हे न तो रावण से कभी कोई सरोकार रहा है और न अब महिषासुर से ही है। 'लाल चड्डी गैंग' के न तो कोई सिद्ध्यांत है, और न ही कोई आदर्श। ये जरूरत के मुताबिक छल-कपट से हिन्दू समाज को तोड़ने के लिये सतत प्रयासरत रहते हैं। इनके दुष्प्रचार से जिस तरह मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम की छवि को कोई नुकसान नही हुआ, उसी तरह शक्षात ईश्वर स्वरूपा, आदि शक्ति माता भगवती दुर्गा की महिमा पर कोई फर्क पड़ने वाला।
आदि शक्ति माता भगवती दुर्गा के सम्बंध मे जिस तरह के गन्दे शब्द और कपोल-कल्पित कहानी गढ़ा गया, यह अक्षम्य अपराध है। दुनिया के हर धर्म-सम्प्रदाय मे जिस आदि-शक्ति या पराशक्ति का जिक्र है, वह माता भगवती दुर्गा हैं, मूर्खों तत्काल माता से क्षमा माँगो, वर्ना तुम्हारा अनर्थ अवश्यसंभावी है -- यह अटल सत्य है ! माता भगवती ममतामयी-दयानिधान हैं, तुम बामपंथि नीच को भी माता पुत्रवत मान जरूर माफ कर देंगी। उधर तुम्हारे द्वारा घोषित असहिष्णु हिन्दू समाज ने तो तुम्हारे महापाप पर माफ़ कर ही चुके होंगे।
क्या दलित हिन्दू समुदाय महर्षी वाल्मीकि, कबीर, संत रविदास, माता शबरी, या महान रामभक्त मल्लाह केवट आदि से खुद को जोड़कर नही देख सकते ? क्या आपने कभी किसी ब्राह्मण को रावण का वंशज कह गर्व करते देखा है ? आज कौन है वो दलित-पिछड़ी जाति का व्यक्ति जो खुद को महिषासुर जैसे निगेटिव करेक्टर की औलाद मान गौरवान्वित महसूस करेगा ? कोई नहीं -- ये सिर्फ मुट्ठीभर नीच बामपंथी हैं।
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बामपंथी-कांग्रेसी-सेक्युलर कीड़ों के निहितार्थ एक गैर मजहबी का सन्देश :-
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जगदम्बा दुर्गा द्वारा शुंभ-निशुम्भ , चंड मुण्ड, महिषासुर आदि रक्षाओं का संहार दरअसल किसी जीव की बलि ना होकर एक प्रकार से सूचक है मानव मन के भीतर छुपे उन दुर्गुणों पर होने वाले विजय का, जो जाने अनजाने हमें दिग्भ्रमित करते रहते हैं। हमारे मन के भीतर छुपे बैठे दानव गलत रास्ते की ओर उन्मुख ना कर सकें, इसके लिये जरूरी है की ममतामयी माँ दुर्गा की शरण मे रहें।
माँ भगवती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये आपलोग दुर्गा-शप्तशती का पाठ कीजिये, (कवच, अर्गला,किलक) ! यदि समयाभाव हो तो आप सिर्फ सिद्ध कुंजीका स्त्रोत्र का भी पाठ कर सकते हैं। सिद्ध कुंजीका स्त्रोत्र एकमात्र ऐसा स्त्रोत्र है, जो सिद्ध किया हुआ, अर्थात उसे पाठक द्वारा सिद्ध करने की आवश्यकता नही है और इसका लाभ आपको मात्र 1-2 महीने मे दिखना शुरु हो जायेगा ! सनद रहे जगदम्बा घोर से घोर पापियों पर भी कृपा करती है। ॐ नमो चण्डिकाय __/\__ 

Thursday, February 25, 2016

स्मृतिजीने अफजल प्रेमी गैंग के द्वारा फैलाए भ्रम-जाल के परखच्चे उड़ा दिए।

Smriti Zubin Irani जी कल आपने जिस आक्रामकता से तार्किक और सटीक तथ्य जनता के समक्ष रखा, वह शायद लोकसभा के सबसे प्रभावशाली वक्तव्यों में से एक गिना जायेगा। आपने अफजल प्रेमी गैंग के द्वारा फैलाए भ्रम-जाल के परखच्चे उड़ा दिए।
आपकी फटकार को विपक्ष राज्यसभा मे भी नहीं दबा पाया, जहाँ की उनका बहुमत है। आपने विपक्ष के साथ तथाकथित उन बुद्धिजीवियों को भी करारा जवाब दे दिया जो आपकी योग्यता और मंत्री बनने पर भी सवाल उठाते रहे हैं। संभवतः आप ही हैं Narendra Modi साहब की विरासत की सच्ची दावेदार। सेल्यूट
पर सनद रहे आपका पाला निहायत ही धूर्त घाघ नीच कांग्रेस से है। आप इन्हें चाहे बेइज्जत कीजिये, या बीच चौराहे नंगा कर दौड़ाईए -- पर संसद तो चलने से रहा। मोदी साहब को फ्लॉप करने का एकमात्र यही तरीका इन्होने ईजाद किया है। संसद के बाहर ‪#‎Congress‬ के पाले गुर्गे-जिहादी-माओवादी देश का माहौल ख़राब करेंगे और संसद के अन्दर का खेल आप पिछले दो सालों से देख ही रहे हैं। देश के विकास का कोई बिल अब नहीं पास होने वाला.

धरती को प्रणाम करने की क्या ज़रूरत थी......ऐसे तिरंगे को सल्यूट मारने की क्या ज़रूरत थी...

''वो बाहर आया उसे धरती दिखी....और झट से सबसे पहले उसे छू के प्रणाम किया.....फिर पीछे मुड़ा और जेल के उपर लगे तिरंगे को सीना फुला कर सलाम मारा..........लेकिन मुझे हैरानी है,...
....ये धरती तो जेल के अंदर भी थी...और तिरंगा तो जेल के अंदर से भी दिख रहा था......तो फिर बाहर आकर ऐसे धरती को प्रणाम करने की क्या ज़रूरत थी......ऐसे तिरंगे को सल्यूट मारने की क्या ज़रूरत थी.......
.....चलो चले 1947 से पहले के दिनो में.......जब हम अँग्रेज़ों की गुलामी में ज़िंदगी गुज़ारा करते थे......
ना हम हिंदू थे ,,ना मुस्लिम थे ना सिख थे...ना ईसाई थे....हम सिर्फ़ गुलाम थे,.,,,अंग्रेज़ो के गुलाम......हम कैदी थे.....
.....अपनी ही धरती की जेल में....जहा से अपनी ज़मीन को चूमते तो थे...लेकिन डर डर कर............
.........एक दिन संग्राम हुवा...आज़ादी की लड़ाई का.......हम लड़े और आज़ाद हो गये.....हम लोग गुलामी से छूट गये...
....हमे अपनी ज़मीन अपनी धरती माँ वापस मिल गयी........
लेकिन जब हमे आज़ाद भारत मिल गया तो हम सबके सुर ही बदल गये......हिंदू अलग,,मुस्लिम अलग..सिख अलग....सब अलग अलग.....फिर आज़ाद भारत के दो टुकड़े भी हो गये.....जिसे जिन्ना पाकिस्तान लेके चला गया.........
........बाकी बचे हिंदुस्तानियों पे आज़ादी का रंग चढ़ने लगा....और चढ़े भी क्यों ना....ना जाने कितना खून दे के तो आज़ादी मिली........आज़ाद भारत की आबो हवा के हम आदि हो गये.....धीरे धीरे हम ज़िंदगी को आज़ादी के पहिए से फिर आगे की ओर ले जाने लगे.......हम तरक्की करने लगे....हम विश्व से कदम से कदम मिला कर चलने लगे......
......लेकिन इन सब के बीच हम एक चीज़ भूलते जा रहे थे........अपनी माँ अपनी धरती मां के गौरव को.......
......हम जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे....मक्कारी...बेईमानी.......गद्दारी......लालच फरेब. भ्रष्टाचार..ये सब भी अपने साथ तेज़ी से आगे ले जा रहे थे......हम क़ैद होते जा रहे थे....एक ऐसी जेल में जहाँ से हमे अपनी धरती माँ नही सिर्फ़ अपना स्वार्थ दिखता है.......मेरे भाइयों मैं तो सिर्फ़ इतना कहना चाहता हूँ की एक बार बस एक बार उस पिछली ज़िंदगी को कुछ दिन के लिए जी के देखों जहाँ हमारी औकात....कोंडों और अँग्रेज़ों की बेतों की मार भर है.....जहाँ चुल्लू भर पानी के लिए भी पूरा पूरा दिन अँग्रेज़ों ने धूप में खून जलवाया है.....बस कुछ दिन अपने लिए ऐसी जेल बना कर और उसमे रह कर देखों,............
...फिर जब तुम पश्चाताप की आग में जल कर उस जेल से बाहर आओगे ना.....और जैसे ही तुम्हे अपनी आज़ाद धरती माँ दिखेगी ना...मेरे भाई तुम इस तरह सजदा करोगे उसे....इस तरह चूमोगे उसे...जैसे किसी बच्चे को उसकी खोई हुई माँ मिल गयी हो.......बस इसके आगे लिखूंगा तो मेरी स्याही मेरे आँसू... समुंदर बन जाएँगे........
.............कोई ग़लती हो तो इस छोटे से लेखक दोस्त को माफी दे दीजिएगा....... ....................''मुझे है फख्र की सजदे में जब मैं चूमता उसको
.....................नमाज़े भी मेरी कहती तेरी मिट्टी महकती है"
........................एक हिंद नेक हिंद जय हिंद................

क्या हमारी शिक्षा व्यवस्थता और देश का कानून यह अनुमति देता है

किसी भी देश में "प्रारंभिक शिक्षा" इसलिये "compulsory" होती है क्यूंकि..!
इसके जरिये हम ज्ञान की प्राप्ति करके कुदरत और स्थानिक प्रशासन के नियमो को समझकर उसका पालन करके सही तरीके से जीवन यापन करे..!
मगर जवाहरलाल नेहरु विश्वविधालय की घटना औए बाद के घटनाक्रम से ऐसा लगता है की हमने शिक्षा इसलिए ग्रहण करी है ताकि हम हमारी शिक्षा से जो कुछ सीखे वो भूलकर किसी विचारधाराओ के तहत व्यवहार और वर्तन जाहेर जनजीवन में करे..!
क्या हमारी शिक्षा व्यवस्थता और देश का कानून यह अनुमति देता है की कानून अपने हाथो में लेकर जहाँ मर्जी हो वहां अपनी मर्जी से व्यवहार करे..?
क्या हम विचारधाराओ के इतने आधीन और आदी हो गये है की कानून अपने हाथ में लेकर मारपीट कर सकते है..?
क्या हमारे नैतिक और जीवन मूल्य हमें यह सिखाते है की हमारा गुजारा किसी राजनितिक पार्टियों के बिना नहीं हो सकता है..?
क्या देश का कानून हमें किसी राजनितिक पार्टी या संस्था से जुड़ने के लिए बाध्य करता है..?
क्या किसी राजनितिक पार्टी से जुड़े होने पर गैरकानूनी कृत्य करने पर हम कानून के दायरे से बहार रह पायेंगे..?
यह प्रश्न विचारणीय है, हमारा व्यवहार विवेकबुधि और स्वनिर्णय आधारित होना चाहिए हाल के परिपेक्ष में जो राष्ट्रविरोधी घटनाक्रम हुआ उसके लिये न्यायतंत्र कानून के दायरे में रहकर अपना कार्य करेंगी..!
हमे किसी अनजानी शह या पिठ्बल के आधार पर अपने स्तर पर कोई गैरक़ानूनी हरकत नहीं करनी चाहिए, यह प्रस्तुति देशहित में है..!!

Wednesday, February 24, 2016

स्मृति ईरानी ने जो बातें सदन में रखी हैं उन्होंने वाक़ई मुझे झकझोर कर रख दिया है कि किस तरह से उमर ख़ालिद ने देवी दुर्गा जिसकी सामान्य हिन्दू भगवती माँ मानकर पूजता है।उन्हें वैश्या कहा।यह भी कहा कि उन्होंने महिषासुर को बिस्तर पर धोखे से मारा।
मैं तो सोच रहा था कि उसने देशद्रोही नारे लगाए हैं मगर इसने तो हिन्दू होता तो समझो कि मुहम्मद साहब की माँ के कपड़े उतारकर उन्हें वैश्या कह दिया।
या इससे भी आगे जाकर कि उमर ख़ालिद ने अपनी माँ के वस्त्रों का हनन किया है।मेरी लिए सभी की माँ वन्दनीया हैं।मगर उमर ख़ालिद की मानसिकता का पोस्टमार्टम कहता है कि उसने पहले अपनी माँ के कपड़े उतारे हैं।
क्या मुसलमानों को ऐसा नौजवान क़ुबूल हैं जो मुहम्मद साहब जैसे महापुरुष पर इतनी गन्दी छींटाकशी करे?
जो अपनी माँ पर गन्दी नज़र रखता हो।
जी हाँ!ये उसी के समान है।आप लोग समझो कि मैं कह रहा हूँ के जो किसी को भी माँ की गाली दे वो निश्चित रूप से अपनी मां की इ्ज़्जत रोज़ उतारता होगा।
जो अपनी माँ को मान देता है;किसी भी माँ को गाली नहीं दे सकता,और अगर देता है तो स्वयं की माँ को देता है।
देशद्रोह तो इस मानसिकता के सामने बहुत छोटी बात है।देश की संकल्पना हर काल में अलग अलग होती है।लेकिन माँ तो पहली गुरु होती है।माँ से ही मानवता आती है।
उमर ख़ालिद जैसे जितने भी हिन्दू;मुस्लिम; सिख या ईसाई नौजवान हैं उनकी माँ की कोख तो कलंकित हो गई है।अब इनको उन्हीं के परिवार द्वारा विष देकर वो कलंक धो लेना चाहिए नहीं तो जनता तो उन्हें मार ही देगी।
स्मृति ईरानी ने और भी बहुत महत्त्वपूर्ण बिन्दु तथ्यों के साथ उठाए जिसमें चौथी कक्षा के बच्चों को क्या शिवाजी की निन्दा पढ़ाती तीस्ता गरमबाड़ की किताब को पेश किया।काँग्रेस का सिर उसकी खोज में विफ़ल रहा जिसे चुलु्लू भर पानी कहते हैं;वरना राहुल गांधी का ज़िन्दा होना सम्भव न होता।
अनुराग ठाकुर से लेकर राजनाथ सिंह तक सभी ने विकराल शब्दों से काँग्रेस से लेकर वामियों की मोटी खाल उधेड़ दी।
मुलायम सिंह ने शानदार तरह से दो शब्दों में ये कहकर कि देशद्रोही नारे लगाने वालोंको माफ़ नहीं किया जा सकता; दिल का भार बढ़ने न दिया।
कुल मिलाकर मैं ये मान रहा हूँ कि भारत एक बार फिर पुनर्जीवित हो रहा है तभी इतनी उबकाई निकल रही है।
इसी राष्ट्रवाद ने एक बार अंग्रेजों को जाने के लिए मजबूर किया था।लेकिन अब फिर से जगा है;और अब राजनीति का अंग्रेज जाने वाला है।अब राजनीतिक दल वाम या काँग्रेस वाले ख़त्म होने वाले हैं।बीजेपी के दो भाग या कुछ क्षेत्रीय दलों का ही अस्तित्व रहने वाला है।
काँग्रेस ने इस मामले में कांग्रेस का हाथ देकर राजनीतिक आत्महत्या कर ली है और राहुल गाँधी ग़लतफ़हमी में सोच रहे हैं कि लोग उनसे डरते हैं।जिससे बच्चा बच्चा खेलता है;उससे कौन डरता होगा?
हाँ!काँग्रेस के शुभचिंतक डरते होंगे इससे तो इनकार नहीं किया जा सकता

देवी दुर्गा को वेश्या कहा गया, फिर भी कोन सी बोलने की आज़ादी चाहिए...?

स्मृति ईरानी ने जो बातें सदन में रखी हैं उन्होंने वाक़ई मुझे झकझोर कर रख दिया है कि किस तरह से उमर ख़ालिद ने देवी दुर्गा जिसकी सामान्य हिन्दू भगवती माँ मानकर पूजता है।उन्हें वैश्या कहा।यह भी कहा कि उन्होंने महिषासुर को बिस्तर पर धोखे से मारा।
मैं तो सोच रहा था कि उसने देशद्रोही नारे लगाए हैं मगर इसने तो हिन्दू होता तो समझो कि मुहम्मद साहब की माँ के कपड़े उतारकर उन्हें वैश्या कह दिया।
या इससे भी आगे जाकर कि उमर ख़ालिद ने अपनी माँ के वस्त्रों का हनन किया है।मेरी लिए सभी की माँ वन्दनीया हैं।मगर उमर ख़ालिद की मानसिकता का पोस्टमार्टम कहता है कि उसने पहले अपनी माँ के कपड़े उतारे हैं।
क्या मुसलमानों को ऐसा नौजवान क़ुबूल हैं जो मुहम्मद साहब जैसे महापुरुष पर इतनी गन्दी छींटाकशी करे?
जो अपनी माँ पर गन्दी नज़र रखता हो।
जी हाँ!ये उसी के समान है।आप लोग समझो कि मैं कह रहा हूँ के जो किसी को भी माँ की गाली दे वो निश्चित रूप से अपनी मां की इ्ज़्जत रोज़ उतारता होगा।
जो अपनी माँ को मान देता है;किसी भी माँ को गाली नहीं दे सकता,और अगर देता है तो स्वयं की माँ को देता है।
देशद्रोह तो इस मानसिकता के सामने बहुत छोटी बात है।देश की संकल्पना हर काल में अलग अलग होती है।लेकिन माँ तो पहली गुरु होती है।माँ से ही मानवता आती है।
उमर ख़ालिद जैसे जितने भी हिन्दू;मुस्लिम; सिख या ईसाई नौजवान हैं उनकी माँ की कोख तो कलंकित हो गई है।अब इनको उन्हीं के परिवार द्वारा विष देकर वो कलंक धो लेना चाहिए नहीं तो जनता तो उन्हें मार ही देगी।
स्मृति ईरानी ने और भी बहुत महत्त्वपूर्ण बिन्दु तथ्यों के साथ उठाए जिसमें चौथी कक्षा के बच्चों को क्या शिवाजी की निन्दा पढ़ाती तीस्ता गरमबाड़ की किताब को पेश किया।काँग्रेस का सिर उसकी खोज में विफ़ल रहा जिसे चुलु्लू भर पानी कहते हैं;वरना राहुल गांधी का ज़िन्दा होना सम्भव न होता।
अनुराग ठाकुर से लेकर राजनाथ सिंह तक सभी ने विकराल शब्दों से काँग्रेस से लेकर वामियों की मोटी खाल उधेड़ दी।
मुलायम सिंह ने शानदार तरह से दो शब्दों में ये कहकर कि देशद्रोही नारे लगाने वालोंको माफ़ नहीं किया जा सकता; दिल का भार बढ़ने न दिया।
कुल मिलाकर मैं ये मान रहा हूँ कि भारत एक बार फिर पुनर्जीवित हो रहा है तभी इतनी उबकाई निकल रही है।
इसी राष्ट्रवाद ने एक बार अंग्रेजों को जाने के लिए मजबूर किया था।लेकिन अब फिर से जगा है;और अब राजनीति का अंग्रेज जाने वाला है।अब राजनीतिक दल वाम या काँग्रेस वाले ख़त्म होने वाले हैं।बीजेपी के दो भाग या कुछ क्षेत्रीय दलों का ही अस्तित्व रहने वाला है।
काँग्रेस ने इस मामले में कांग्रेस का हाथ देकर राजनीतिक आत्महत्या कर ली है और राहुल गाँधी ग़लतफ़हमी में सोच रहे हैं कि लोग उनसे डरते हैं।जिससे बच्चा बच्चा खेलता है;उससे कौन डरता होगा?
हाँ!काँग्रेस के शुभचिंतक डरते होंगे इससे तो इनकार नहीं किया जा सकता।

Monday, February 22, 2016

ब्राह्मणवाद से किसको आज़ादी चाहिए। जिसे आने वाली पीढ़ी हरामज़ादी चाहिए।

ब्राह्मणवाद से किसको आज़ादी चाहिए।
जिसे आने वाली पीढ़ी हरामज़ादी चाहिए।
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जो ब्रह्म की साधना से जीवन संजोता है।
मूर्खों!वास्तव में वही तो ब्राह्मण होता है।
ये मिश्रा;शुक्ला ब्राह्मण नहीं नेमप्लेट हैं।
कर्म से विनष्ट हुए कोई भला कैसे श्रेष्ठ है?
हालांकि मानता हूँ के;
आनुवंशिकता इन सबमें सहायक है।
मगर,शेष जातियों में भी;
कई ब्राह्मण कहे जाने के लायक़ हैं।
भूल गए;व्यास की माँ मल्लाह कन्या थीं।
तुलाधर वैश्य की माँ जाति से बनिया थीं।
वाल्मीकि की लूट से जनता बेहाल थी।
जाबाल ॠषि की माताजी चाण्डाल थी।
विश्वामित्र थे तो क्षत्रिय;बने गए थे ब्राह्मण।
अरे!तुम वो तपस्या क्या समझोगे चारण?
तुम्हें तो अपने ही देश की बर्बादी चाहिए।
ब्राह्मणवाद से किसको आज़ादी चाहिए???
जिसे आने वाली पीढ़ी हरामज़ादी चाहिए।
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कर दी है तुमने लोकतंत्र की छीछालेदर।
कमीनीस्ट!देश बेचो;दोगे अपनी ही मातर।
उतनी ही ग़द्दारी फैलाओ;जितनी हो चादर।
के भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी होकर।
ये तो सोचो;माँबेचकर जितने जुटा लो डालर।
काम न आएगी तुमको;विदेशियों की झाँझर।
राष्ट्रवाद से अगर तुमको आज़ादी चाहिए।
तुम्हें देश के हर घर में आतंकवादी चाहिए।
तो सभी ख़ालिदों!तुम्हें मौत से शादी चाहिए।
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JNU कांड भारतीय मार्क्‍सवादियों की उसी मानसिकता की एक मिसाल मात्र है

JNU कांड भारतीय मार्क्‍सवादियों की उसी मानसिकता की एक मिसाल मात्र है जिसमें भारत को कभी राष्ट्र ही नहीं माना गया..!
उन्होंने भारत को अधिक से अधिक राष्ट्रीयताओं का एक संघ ही माना है। इनकी पार्टियों को भारतीय होने में शर्म लगती थी इसलिए वे अपने को भारतीय नहीं, बल्कि भारत की कम्युनिस्ट पार्टी कहती थीं। साम्यवादियों के मन में भारत के लिए हिकारत का यह भाव बहुत आसानी से हिन्दू धर्म के लिए घृणा के भाव में दिखाई दिया..!
भारतीय राष्ट्र और हिन्दू धर्म को शोषक शक्ति मानने की इसी साम्यवादी सैद्धांतिक समझ ने कम्युनिस्टों की निगाह में हर भारत-विरोधी, हिन्दू-विरोधी भावना को प्रगतिशील बना दिया। पिछले चालीस सालों में जेएनयू में केवल इतना बदलाव आया है कि पहले कम्युनिस्ट क्रांतिकारिता सीनियर सहयोगी थी, अब मुस्लिम कट्टरपंथ ने उसको अपने अधीन कर लिया है..!
इस धार्मिक आतंकवाद को साम्यवादियों से एक मार्क्‍सवादी मुखौटा और जेएनयू जैसी वीआइपी जगहों पर जमने का मौका मिल जाता है..!!

Sunday, February 21, 2016

लाल-चड्डी गैंग क्या तुम्हे मालूम है, की कन्हैया कुमार जाति से भूमिहार है ?

लाल-चड्डी गैंग क्या तुम्हे मालूम है, की कन्हैया कुमार जाति से भूमिहार है ? मल-मूत्र-निवासियों का झंडाबरदार तुम्हारा दुलारा कन्हैया भूमिहार ब्राह्मण है। सवर्ण - ब्राह्मण ह्ह्ह्ह्ह अरे वही मनुस्मृति वाला ही मनुवादी ब्राह्मण wink emoticon
शायद तुम अब भी नहीं समझे --- बिहार में इन्ही दबंग भूमिहार ब्राह्मणों ने तुम्हारे CPI (M) और CPI (माले) को "रणवीर सेना" बनाकर खदेड़ खदेड़ कर मारा था। भूमिहारों के गढ़ माने जाने वाले बेगुसराय में बहुसंख्यक आवादी और दबदबा इन्ही भूमिहारों का है, खेती की जमीन से लेकर बिजनेस, रसूख, मसल पॉवर रखने वाले इन्ही सवर्णों के इलाके बेगुसराय को तुम कभी हिंदुस्तान का Leningrad कहते थे। दिमाग का खेल देखो --- जमींदार जाति 'सर्वहारा' की राजनीती के मुखिया बन बैठे grin emoticon
"मुखिया" से याद आया रणवीर सेना के सेनापति ब्रह्मेश्वर मुखिया भी भूमिहार ही थे। भूमिहारों ने अपनी बुद्धि और शक्ति की ऐसी जोरदार चोट की, की अपनी जमीनों पर नजर गडाए इन "कम्युनिस्टों" को पुरे बिहार से ही साफ़ कर दिया। तुम्हारे ही हँसुवा से न सिर्फ Naksalvadi साफ़ किये बल्कि तुम्हारा भी Politically सर मुंड दिए।
विदेशियों की लुटी-पिटी Ideology और Secularism के अवैध सम्बन्ध से जन्मे तुम लाल चड्डी वालों -- चाहे तुम लाख गालियाँ दो इन सवर्णों - ब्राह्मणों - भूमिहारों या मनुवादियों को , पर बिना इनके नेतृत्व के तुम्हारा पग भर भी चलना नामुमकिन है। बंगाल में तुम्हारे बॉस चटर्जी-बनर्जी-घोष और बसु जैसे ब्राह्मण हैं तो बिहार-यूपी में मिश्रा, सिंह, पाण्डेय और झा grin emoticon
खैर 'मनुवाद' और ब्राह्मणवाद के खिलाफ नारा बुलन्द करते "बेगुसराय के भूमिहार" कन्हैया को देख कुरान के दयालु-क्षमाशील अल्लाह की याद आ गयी ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह

Saturday, February 20, 2016

मैं रवीश कुमार हूँ...

प्रबुद्ध हूँ पर बेकार हूँ
खुद में पला अहंकार हूँ
निर्जीव पत्रकार हूँ
मैं रवीश कुमार हूँ...
दर्पण दिखाने में चला
सच्चाइयो की ओट कर
पर झूठ का अम्बार हूँ
मैं रवीश कुमार हूँ..
जल रहा क्रोधाग्नि में
माना कि लाखों खामियां
क्यों मान लूँ बीमार हूँ..
मैं रवीश कुमार हूँ..
पेशा मेरा निष्पक्ष था
पर पक्ष मेरा भी तो है
तुम इस पार मैं उस पार हूँ
मैं रवीश कुमार हूँ...
जानता हूँ हो रहा
मेरा पतन इस दौर में
रह गया बस खीज का भण्डार हूँ
मैं रवीश कुमार हूँ...

आज हरियाणा में उन्मादी भीड़ लठ की ताकत पर पिछड़ो का हक खाने को उतावली हो रही है..!

आज हरियाणा में उन्मादी भीड़ लठ की ताकत पर पिछड़ो का हक खाने को उतावली हो रही है..!
आरक्षण उस वर्ग के लिए है जो शोषित है ,वंचित है ,पीड़ित है, पर ये उन्मादी भीड़ तो हर दृष्टि से ताकतवर है..!
वैसे भी जब न्यायालय ने पिछड़ेपन के पैमाने तय कर दिए और उन पर खरा न उत्तर पाने के कारण वोट पॉलिटिक्स के तहत दिया गया आरक्षण खत्म कर दिया तो फिर सिस्टम से ऊपर उठकर ये जो लोग गुंडागर्दी कर रहे है इन पर देशद्रोह का मुकदमा क्यों नही..?
जब हार्दिक पटेल पर राजद्रोह का मुकदमा तो फिर इन पर क्यों नही..?
बावजूद इसके खट्टर सरकार इनके आगे झुकती है तो यह लोकतन्त्र की हार है ,यह लठतंत्र और भीड़तंत्र की जीत है..!
सभी अनारक्षित जातियों के गरीब तबके को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना ही इन सब समस्याओं का समाधान है। सरकार इस पर गौर करे अन्यथा यह आग पुरे देश में फैलेगी..!!

Friday, February 19, 2016

जो आँख उठेगी हिंदुस्तान पर, वो आँख फोड़ दी जाएगी।

अब कोई सपना ना देखे ये धरती बाँट ली जायेगी,
जो देश बाँटना मांगेगी, वो जीभ काट ली जायेगी।
हम सीमा पार कर चुके सहते सहते सहने की।
अब इसीलिए जरुरत पड़ती है, चिल्ला-चिल्ला कर कहने की।
जिनको भी मेरे हिंदुस्तान की धरती से प्यार नहीं होगा,
उनको हिंदुस्तान में रहने का कोई अधिकार नहीं होगा।
जो मेरा आँगन तोड़ेगी वो बाँह तोड़ दी जाएगी,
जो आँख उठेगी हिंदुस्तान पर, वो आँख फोड़ दी जाएगी।
जो भूल हुई हमसे पहले, वो भूल नहीं होने देंगे,
हम एक इंच धरती हिंदुस्तान से अलग नहीं होने देंगे।
हम ऋषि-मुनियों की संतान है, स्वभाव से ही दयालु-सहृदय हैं, विश्व-बंधुत्व को रोम-रोम में बसाने वाले हम सच्चे मायने में 'सहिष्णु' लोग हैं, पर अब हमें 'सहिष्णु' बनाये रखने की जिम्मेदारी तुम्हारी है- सिर्फ तुम्हारी। 

वन्दे-मातरम 

Wednesday, February 17, 2016

जेएनयू के गद्दार रामा नागा के पिता चूड़ी बेचते हैं और उसकी मां मजदूरी करती है तो क्या इसीलिए उसे गद्दारी की छुट है?

कन्हैय्या कुमार का बाप पैरालाइज़्ड है और कई सालों से बिस्तर पर है, माँ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता है जहाँ उसे 3000 रूपये महीने की तनख्वाह मिलती है, एक भाई और है जो आईएएस की तैयारी कर रहा है। कन्हैया कुमार की उम्र लगभग 30 वर्ष है और वो जेएनयू में पीएचडी कर रहा है। कन्हैया कुमार बिहार के जिस इलाके का रहने वाला है वो बहुत पिछड़ा इलाका है और वहां हमेशा सीपीआई और सीपीआई माले का बोलबाला रहा है। अब सवाल ये उठता है कि जिस बेटे की माँ दिन रात मेहनत करके 3000 रूपये महीने कमाती हो उसका लड़का 30 साल की उम्र तक पढाई करेगा? दूसरा सवाल, जिसके क्षेत्र का विकास कम्युनिस्टों के रहते (या उनके कारण) नहीं हो पाया क्या वो उन्ही का फेवर करेगा? तीसरा सवाल, क्या एक गरीब दलित इतने महंगे वकील हायर कर सकेगा? और मजे की बात सुनिए, जिस लड़के को घर में इतनी परेशानियां हैं उसका आदर्श है, एक हार हुआ नौजवान जिसने आत्महत्या कर ली थी, और शर्मनाक बात ये है कि हमारे देश का मीडिया उसे हीरो बना रहा है, रविश कुमार जैसे सीरियस पत्रकार उसकी शान में कसीदे पढ़ रहे हैं।
रविश कुमार के अनुसार जेएनयू के गद्दार रामा नागा के पिता चूड़ी बेचते हैं और उसकी मां मजदूरी करती है
तो क्या इसीलिए उसे गद्दारी की छुट है?

Tuesday, February 16, 2016

संविधान ही वह सीमा हो सकती है जिसके भीतर भारत नाम के राष्ट्र को समाहित किया जा सकता है।

राष्ट्र किसी भौगोलिक सीमा को नहीं कहते हैं, किसी देश को नहीं कहते हैं बल्कि राष्ट्र तो एक अवधारणा है.!
यह अवधारणा जितनी संकीर्ण होगी हमारा राष्ट्र उतना ही छोटा होगा और जितने बड़े दायरे को सामहित करती होगी, हमारा राष्ट्र उतना ही बड़ा होगा। राष्ट्र एकसमान संस्कृति, इतिहास, भाषा, पर्यावास (हैबिटेट) को मानने वाले लोगों से बनता है..!
अब सवाल यह था कि भारत तो विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, पर्यावासों और तकरीबन इतिहास का देश है, तो यह राष्ट्र कैसे.. ?
इसका जवाब था और है… संविधान..!
संविधान ही वह सीमा हो सकती है जिसके भीतर भारत नाम के राष्ट्र को समाहित किया जा सकता है। लेकिन कुछ लोग इसकी परिधि को संविधान के जरिए नहीं बल्कि एक धर्मविशेष या मतविशेष के जरिए बांधना चाहते हैं और निश्चित तौर वह परिधि संविधान की तुलना में छोटी ही होगी..!
इस लिहाज से उनका राष्ट्र छोटा होगा..! निष्कर्ष के तौर पर यह कह सकते हैं कि वह लोग जो मौजूदा राष्ट्र की विशालता को काट-छांटकर उसे छोटा करना चाहते हैं, असल में राष्ट्रद्रोही तो वे हुए..!!

वामपंथ नक्सलियों के समर्थक है

वामपंथ: ढहते किले बढती बौखलाहट
साहब लोग नक्सलियों के समर्थक है | साहब लोग अपना अपना एनजीओ चलाते हैं | साहब लोग छंटे हुए कथाकार हैं कहानियाँ लिखने में माहिर हैं | साहब लोगो का चार खुरों वाला नया भगवान् है | कहाँ से आया, कौन लाया, क्या किया इस भगवान् ने कुछ पता नहीं | साहब लोग आर्य अनार्य का विवाद खड़ा करते हैं | इसके पक्ष में संस्कृत कोट करते हैं बिना यह जाने कि संस्कृत तो आर्यों की भाषा थी | साहब लोग संघ को गाली देते हैं | यहाँ तक कि जिस संघ का कभी हिस्सा नहीं रहे उस पर कवर पेज स्टोरी लिखते हैं | साहब लोग देश की राजधानी में खुलेआम पाकिस्तान जिन्दावाद और हिंदुस्तान के टुकड़े होंगे के नारे लगाते हैं | बिना ये सोचे कि गर हिंदुस्तान न रहा तो इन लोगो को दाना पानी कहां से मिलेगा ? कहने की जरूरत नहीं कि साहब लोग JNU‬ वाले बौधिक आतंकवाद की उपज हैं | ऐसे तथाकथित “साहब लोग” हमारे देश में बुद्धिजीवी और समाजसेवी कहे जाते हैं |

इन "घाघ" बुद्धिजीवियों के हाथ में पूरे 60 साल देश की शिक्षा व्यवस्था का दारोमदार था | इन्हीं लोगो ने वीर शिवाजी को "पहाड़ी चूहा" और और सिख गुरुओं के हत्यारे औरंगजेब को "सूफी बादशाह" बनाया | भगत सिंह को "आतंकवादी" और शोभा सिंह को "महिमामंडित" करने वाले यही लोग थे | इतिहास के नाम पर जमा कूड़ा करकट देश के युवाओ को पीड़ी दर पीड़ी शर्बत बता पिलाया गया | यहाँ तक कि हमारी जड़ो से हमें काट के रख दिया | हेमू कौन था और दाहिर कौन हमें नहीं पता | हरी सिंह नलवा का नाम पूछने पर हम अपने कान खुजाते नजर आते हैं | क्यों भाई कौन बताएगा हमें इनके बलिदान के बारे में ? कौन कहेगा उन लाखों अनाम शहीदों की गाथा जो पिछले १२०० सालो में देश के लिए बलिदान हो गये ?
पूरे 60 साल देश ने इन लोगो को बिना उफ़ किये भुगता है | मगर आज महज 2 सालों में साहब लोगो के तख़्त हिलने लगे हैं | एक "हाफ चड्डी" पहने कल का चाय वाला छोकरा आज "लाल सलाम" का भगवाकरण करने में लगा है और साहब लोग कुछ नहीं कर पा रहे हैं | तय नहीं कर पा रहे हैं कि वैचारिक प्रतिरोध करें या फिर से मार्क्स की "खूनी क्रांति" लिख दें | पर क्या करें पूरा राष्ट्र केरल तो है नहीं जहाँ सघियों के आप कबाब बना कर खा सकें | “माना आपके शास्त्रों में लिखा है कि सत्ता बन्दूक की नालियों से होकर गुजरती है | पर ये चीन या रूस नहीं है जहाँ कत्ल की नयी -२ इबारतें लिखी गयी | ये भारत है जहाँ हमेशा शास्त्र ने शस्त्र को जीता है |”
ये तो महज एक शुरुवात है | मिर्च अभी और तेज होगी | वामपंथ अभी और बेनकाब होगा | आपका बौधिक आतंकवाद अब समाप्ति की ओर है | आवाहन हो चुका है | ध्यान से सुनिए आपको नए भारत की पदचाप सुनाई देगी | भारत नव निर्माण के पवित्र यज्ञ में आहूति लगना शुरू हो चुकी हैं | हो सके तो आप भी इस यज्ञ हिस्सा बनिए और खुद को शुद्ध कीजिये | वरना तय जानिए कि इस बार इतिहास हमारी कलमे लिखेंगी | जिसमे आपका असल वर्णन विस्तार से होगा |
साभार

जब मुहम्मद साहब के कार्टून बने थे वो भी तो फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन था तब क्यों बुरी लगी थी..?

क्या "JNU" मामले में देशद्रोह कानून का दुरूपयोग हो रहा है..? - गौतम नवलखा
जब मुहम्मद साहब के कार्टून बने थे वो भी तो फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन था तब क्यों बुरी लगी थी..?
कमलेश तिवारी ने मुहम्मद साहब के ऊपर बयान दिया था वो भी तो फ्रीडम ऑफ़ स्पीच थी फिर क्यों बौखला रहे थे..?
जब मकबूल फिदा हुसैन मॉ सरस्वती की नंगी तस्वीर बनाता है तो उसे एक कलाकार की रचना कहते है...!
सलमान रशदी की किताब अथवा तस्लीमा नसरीन की किताब भी तो फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन था, तब क्यों बुरी लगी थी..?
अब JNU में देश तोड़ने को फ्रीडम ऑफ़ स्पीच बता कर ज्ञान बाँट रहे हो हमारे ही घर में हमको धमकाने निकले हैं, एक शेर के रहते कैसे कुत्ते खुलकर भौंक रहे हैं..!
अफज़ल पर तो छाती फटती देखी है बहुत लोगों की, मगर शहादत भूल गए हो सियाचीन के शेरों की और जब देशद्रोह के हमदर्दीैं तुच्छ सियासत करते है तब तो नहीं बोलते हो कुछ भी कोई भी सब लोग मुँह में दही जमाकर बैठ जाते हो और अब सब ज्ञान देने के लिए हाजिर हो हद है यार दोगली हरकतों की..!!

एक कहानी ऐसी भी‬ : ‪जम्बूद्वीप‬

एक कहानी ऐसी भी
जम्बूद्वीप‬
बहुत समय पूर्व एक मनुष्य हुआ था जो की फेसबुक नाम की एक दूकान चलाता था उसका नाम मार्क जुकरबर्ग था।। उसकी दूकान बहुत ही बढ़िया चल रही थी वहां आने वाला हर ग्राहक अपने आप में अन्तरप्रिन्योर था, हर कोई इधर उधर से कच्चा माल इकठ्ठा करता और फर्निश करके अपने आउटलेट की दीवार पर टांग देता। दूर दूर प्रान्तों के व्यापारी आकर तारीफ़ करते कुछ खरीद ले जाते कुछ चुरा लेते । सब कुछ बहुत ही बढ़िया चल रहा था अचानक से जुकरवा ने नेट neutrality वाला बम फोड़ दिया जो सीधे साधे थे बहक गए जो चतुर थे उन्होंने जुकरवा की ही ऐसी तैसी करनी शुरू कर दी कुछ जो एकदम नेशनल टाइप के कर्रे क्रांतिकारी थे उन्होंने बाकी जम्बूद्वीप वासियों को जगाना शुरू किया कि बे क्या कर रहे हो ये जुकरवा काट रहा है तुमको। खैर, ज्यादा कुछ न हो पाया और जुकरवा ने भी तरह तरह से try किया मनाने का कभी बड्डे विश करके कभी मेमोरी याद दिलाके कभी रिपब्लिक डे पर अपनी वाल पर तिरंगा लगाकर यही सब रूठने मनाने के खेल चल रहा था।।
अचानक से अकाल पड गया और कच्चे माल की भयंकर कमी हो गयी जम्बूद्वीप में किसी के पास कुछ न था दीवार पर टांगने को कब तक वही मोदी कजरी दिग्गी ओवैसी साक्षी प्राची बिकता बाज़ार में। लोगों को कुछ लेटेस्ट चाहिए था बीच बीच में रंगदार बाबू पटना वाले और नेताजी try कर रहे थे पर जनता को मजा ही नहीं आ रहा था। कोई भी कच्चा माल एक दिन से ज्यादा चल ही न रहा था।।
ऐसे माहौल में देश के सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालय के हीरे पन्नो ने ये जिम्मेदारी अपने कन्धों पर उठा ली और कसम खायी कि ऐसा राडा कर देंगे ऐसी चरस बोयेंगे की खत्म ही न होगी उनको विश्वास जो था कि बाकी जिम्मेदारी तो स्लीपर सेल्स भी उठा लेंगे ।। तब कहीं जाकर उदय हुआ ‪‎JNU‬ ढपली राग का और कन्हैया उमर खालिद अपराजिता द्रौपदी जैसे अवतारों ने एकदम से अपना भव्य रूप दिखाया और काश्मीर की आज़ादी मांगने लगे।। उधर काश्मीर वाले ये सोच सोच कर पगलाए हैं कि हमारी आज़ादी का ये दिल्ली में बैठकर क्या करेंगे।। इन महान बिभूतियों ने अफजल को भी लपेटे में ले लिया तो उसने भी उपर नर्क में आत्महत्या कर ली वो दिन है और आज का दिन हफ्ता हो गया पर कच्चा माल खत्म ही नहीं हो रहा।। सब सजा सजा कर अपनी दीवारों पर टांग रहे हैं सब खुश हैं।।
तो जैसे JNU के अवतारों ने जम्बूद्वीप वासियों को तारा है ऐसे सारे जग को तारें।।
‪‎जय JNU‬
‪#‎और‬ जो भी मनुष्य इस कथा को 7 लोगों को सुनाएगा और व्रत करेगा , JNU वाले अवतार उसको भी सेलिब्रिटी बना देंगे और जो भी इसे ignore करेगा उसको कीड़े पड़ेंगे, आँखें फूट जायेंगी, जहन्नुम का दरवाजा खुल जाएगा, ये वाली वो वाली सारी वाली बिमारी हो जायेंगी ।।शोर्ट में कहूँ तो मर जाएगा एकदिन ।। जय महिष्मति।।
भस्म ही है सत्य ।।
‪‎Thnak You JNU‬

Monday, February 15, 2016

ये कौन सी वामपंथी विचारधारा है..?

देश में घटती हुई वामपंथीं (छद्यम धर्मनिरपेक्षता वाले दल) की विचारधारा और समर्थकों की कमी के कारण घबराकर अब गाली गलौज जातिवादी और देशद्रोही वाली राजनीति करने लगे..!
दिल्ली में पढें लिखे सभ्य जिंस टीशर्ट पहनने वाले वामपंथी छात्रों और छात्राओं द्वारा जो विरोध प्रदर्शन का ढोंग किया और देश के प्रधानमंत्री और दिल्ली पुलिस (संविधान और कानून के रक्षक) के लिये जो शब्दों का इस्तेमाल गाली गलोज के रुप में की उससे तो ऐसा प्रतीत होता ये छात्र छात्रायें कॉलेज या विश्वविधालय में गाली गलौज दंगा फसाद और जातिवाद पर PHD/ Diploma कर रहों हों..?
( रोहित वेमुला/दलित/ जातिवाद) की राजनीति करने लग गये यह देश के वामपंथियों के लिये सोचने वाली बात है..!
ये कौन सी वामपंथी विचारधारा है..?
ये विचारधारा कार्ल मार्क्स की लेनिन की या ज्योति बसु की वामपंथी विचारधारा तो नहीं लगती ..!
वामपंथी/कामरेड प्रकाश करात वृन्दा करात (पति-पत्नी)
सीताराम येचूरी D राजा और अन्य वामपंथी चिंतको के लिये सोचने वाली बात है..?
भारत ही एकमात्र वो देश है; जहाँ ग़द्दार मानसिकता वाले खुलेआम घूम सकते हैं। शायद सोशल मीडिया की हायतौबा सरकार तक न पहुँचती तो आज भी कोई कार्रवाई नहीं होती।
ऐसा इसलिए कहना पड़ता है क्योंकि दो दिन बाद ही गृहमंत्रालय हरक़त में आया।और ऐसा आया कि राजनाथ सिंह ने आनन फानन में इन नामर्द युवाओं का कनेक्शन हाफ़िज़ सईद से जोड़ दिया।
काँग्रेस ने शर्म नाम की चीज़ का वजूद ग़ारत कर दिया है।घिन तक आ जाए ऐसा राजनीति मेंगिर गए हैं कि मोदी विरोध में करते करते राष्ट्र द्रोह पर भी समर्थन पर उतर गए हैं।
ऐसी काँग्रेस को वोट देने वाला तो दोगला ही हो सकता है।जी हाँ!देशद्रोह की आवाज़ भी न दबाई जाए तो क्या दबाया पाए?
कहाँ तो भारत को बर्बाद कर देने का नारा लगाने वालों की छाती फोड़कर उनका लहू पी जाना चाहिए।मगर क्या करें? ये इटली की मिक्सिंग है।
हमारा दुर्भाग्य है कि राष्ट्रवाद जब जब हमने सबको आह्वान करके परिभाषित करना चाहा तो मुसलमानों और ईसाइयों ने अपने दो कौड़ी की धार्मिक अवधारणा के लिए नकार दिया।सिर्फ़ प्रगतिशील हिन्दू बहुसंख्या में इससे जुड़े और कुछ ही मुस्लिम या ईसाई इस राष्ट्रीयता की भावना के साथ जुड़े।
मुसलमान को केवल मज़हबी नखरेबाजी की सन्तुष्टि पसन्द रही।हिन्दुओं ने धर्म को राष्ट्रीय अवधारणा के साथ कभी मिक्स करके धार्मिक नखरेबाजी नहीं की।
मुसलमानों की इस कमी के कारण और उनकी संख्या का महत्व होने के कारण गांधी जी उनकी तुष्टीकरण की राजनीति शुरू कर बैठे जो आज़ादी के बाद बँटवारे के साथ ही समाप्त कर देना चाहिए था।मगर उन्होंने सत्य को सत्ता से कमतर आंका।और सत्ता ने ही उनकी हत्या होने में बड़ी भूमिका निभाई।
मुसलमान धर्म के नाम पर जब देश बाँट चुके थे तो क्यों हिन्दोस्तान को ढंग से परिभाषित नहीं किया?
मुसलमानों से वोट देने का अधिकार तो छीन ही लेना चाहिए था।इन लोगों ने पाकिस्तान को अभी तक अपना देश समझा हुआ है।हमारे कुछ तथाकथित हिन्दू इनके साथ रहकर सत्ता सुख पाने या देश के दुश्मनों से धन पाने के लिए या हराम की आनुवंशिक विकृतियों की वजह से यह सब कर रहे हैं।
राहुल गांधी!गधे से भी कम अक्लवाले!!जिस भारत का तू प्रधानमंत्री बनना चाहता है।उसको बर्बाद करने वाले हैं ये।कोई इस गगधधे को समझाओ।किसका समर्थन कर रहा है?कुछ इन्सान है भी कि पूरा पार्ट पार्टी को ख़तम करने पर लगा देगा।
कमीनीस्ट दलों को क्या कहा जाए क्योंकि इनकी रगों में रखैलों का ख़ून बहता है।वो भी पाकिस्तानी रखैलों का।
क्योंकि इतना तो कदाचित् हिन्दुस्तानी वैश्याएँ भी नहीं गिर सकतीं सिवाय इनके घर की महिलाओं के।
मीडिया के कुछ लोग तो कुत्तों से बदतर हो गए हैं जो इसे छोटी सी बात बता रहे हैं।ये छोटी बात नहीं है।
देशद्रोह का संस्कार इनमें पड़ चुके हैं।अब क्या आतंकी वारदातों का इन्तज़ार करेंगे?क्या हमें उनके पूर्णतः भारत को बर्बाद कर देने की प्रतीक्षा करनी चाहिए?
अरे बेवकूफों!तुम्हारे जैसे लोगों के बच्चे जब तक किसी बम विस्फोट में नहीं मरते तब तक तुम्हें अफ़जल गुरु जैसे लोग सुहा सकते हैं।देख लेना !तुम उमर ख़ालिद या कन्हैया जैसों का कारनामा।जल्द ही सुनाई देगा।तब शर्म से मर जाओगे जैसे इशरत जहाँ को बेटी बताने वाले शर्म से मुँह छुपाए हैं।
इशरत जहाँ एक भटकी हुई मुस्लिम लड़की थी।
कई वैश्याएँ भी भटकी हुई होती हैं।मगर इशरत जहाँ जैसी लड़कियों से अल्लाह की नज़र में बेहतर हैं।वैसे अल्लाह के नाम पर ये लोग एक दिन अल्लाह को ही काट देंगे।

भारत ही एकमात्र वो देश है;जहाँ ग़द्दार मानसिकता वाले खुलेआम घूम सकते हैं।

भारत ही एकमात्र वो देश है;जहाँ ग़द्दार मानसिकता वाले खुलेआम घूम सकते हैं।शायद सोशल मीडिया की हायतौबा सरकार तक न पहुँचती तो आज भी कोई कार्रवाई नहीं होती।
ऐसा इसलिए कहना पड़ता है क्योंकि दो दिन बाद ही गृहमंत्रालय हरक़त में आया।और ऐसा आया कि राजनाथ सिंह ने आनन फानन में इन नामर्द युवाओं का कनेक्शन हाफ़िज़ सईद से जोड़ दिया।
काँग्रेस ने शर्म नाम की चीज़ का वजूद ग़ारत कर दिया है।घिन तक आ जाए ऐसा राजनीति मेंगिर गए हैं कि मोदी विरोध में करते करते राष्ट्र द्रोह पर भी समर्थन पर उतर गए हैं।
ऐसी काँग्रेस को वोट देने वाला तो दोगला ही हो सकता है।जी हाँ!देशद्रोह की आवाज़ भी न दबाई जाए तो क्या दबाया पाए?
कहाँ तो भारत को बर्बाद कर देने का नारा लगाने वालों की छाती फोड़कर उनका लहू पी जाना चाहिए।मगर क्या करें? ये इटली की मिक्सिंग है।
हमारा दुर्भाग्य है कि राष्ट्रवाद जब जब हमने सबको आह्वान करके परिभाषित करना चाहा तो मुसलमानों और ईसाइयों ने अपने दो कौड़ी की धार्मिक अवधारणा के लिए नकार दिया।सिर्फ़ प्रगतिशील हिन्दू बहुसंख्या में इससे जुड़े और कुछ ही मुस्लिम या ईसाई इस राष्ट्रीयता की भावना के साथ जुड़े।
मुसलमान को केवल मज़हबी नखरेबाजी की सन्तुष्टि पसन्द रही।हिन्दुओं ने धर्म को राष्ट्रीय अवधारणा के साथ कभी मिक्स करके धार्मिक नखरेबाजी नहीं की।
मुसलमानों की इस कमी के कारण और उनकी संख्या का महत्व होने के कारण गांधी जी उनकी तुष्टीकरण की राजनीति शुरू कर बैठे जो आज़ादी के बाद बँटवारे के साथ ही समाप्त कर देना चाहिए था।मगर उन्होंने सत्य को सत्ता से कमतर आंका।और सत्ता ने ही उनकी हत्या होने में बड़ी भूमिका निभाई।
मुसलमान धर्म के नाम पर जब देश बाँट चुके थे तो क्यों हिन्दोस्तान को ढंग से परिभाषित नहीं किया?
मुसलमानों से वोट देने का अधिकार तो छीन ही लेना चाहिए था।इन लोगों ने पाकिस्तान को अभी तक अपना देश समझा हुआ है।हमारे कुछ तथाकथित हिन्दू इनके साथ रहकर सत्ता सुख पाने या देश के दुश्मनों से धन पाने के लिए या हराम की आनुवंशिक विकृतियों की वजह से यह सब कर रहे हैं।
राहुल गांधी!गधे से भी कम अक्लवाले!!जिस भारत का तू प्रधानमंत्री बनना चाहता है।उसको बर्बाद करने वाले हैं ये।कोई इस गगधधे को समझाओ।किसका समर्थन कर रहा है?कुछ इन्सान है भी कि पूरा पार्ट पार्टी को ख़तम करने पर लगा देगा।
कमीनीस्ट दलों को क्या कहा जाए क्योंकि इनकी रगों में रखैलों का ख़ून बहता है।वो भी पाकिस्तानी रखैलों का।
क्योंकि इतना तो कदाचित् हिन्दुस्तानी वैश्याएँ भी नहीं गिर सकतीं सिवाय इनके घर की महिलाओं के।
मीडिया के कुछ लोग तो कुत्तों से बदतर हो गए हैं जो इसे छोटी सी बात बता रहे हैं।ये छोटी बात नहीं है।
देशद्रोह का संस्कार इनमें पड़ चुके हैं।अब क्या आतंकी वारदातों का इन्तज़ार करेंगे?क्या हमें उनके पूर्णतः भारत को बर्बाद कर देने की प्रतीक्षा करनी चाहिए?
अरे बेवकूफों!तुम्हारे जैसे लोगों के बच्चे जब तक किसी बम विस्फोट में नहीं मरते तब तक तुम्हें अफ़जल गुरु जैसे लोग सुहा सकते हैं।देख लेना !तुम उमर ख़ालिद या कन्हैया जैसों का कारनामा।जल्द ही सुनाई देगा।तब शर्म से मर जाओगे जैसे इशरत जहाँ को बेटी बताने वाले शर्म से मुँह छुपाए हैं।
इशरत जहाँ एक भटकी हुई मुस्लिम लड़की थी।
कई वैश्याएँ भी भटकी हुई होती हैं।मगर इशरत जहाँ जैसी लड़कियों से अल्लाह की नज़र में बेहतर हैं।वैसे अल्लाह के नाम पर ये लोग एक दिन अल्लाह को ही काट देंगे।

Sunday, February 14, 2016

छात्रों को अपनी बात कहने देने का मतलब हिन्दूस्तान के टुकड़े करने की मांग अफजल गुरु और संसद पर हमले का समर्थन है क्या..?

छात्रों को अपनी बात कहने देने का मतलब हिन्दूस्तान के टुकड़े करने की मांग अफजल गुरु और संसद पर हमले का समर्थन है क्या..? - अमित शाह
सही कहा अमित शाह जी ने इसमें क्या गलत है एक तरफ हमारे जवान सरहदों पे जान दे रहे है और दूसरी तरफ राजनितिक दल जो इनका आतंकवादी/देशद्रोही जो भी कह लो उसका साथ दे रहे है..!
वो भाजपा का विरोध करने के चक्कर में और वोट बैंक के चक्कर में देश विरोधी तत्वों का साथ दे रहे है चाहे वो कश्मीर से लेकर पाकिस्तान जाकर भारत को गाली देना JNU के देशद्रोहीयों की वकालत करना या मोदी को से राजनितिक प्रतिशोध लेना हो..!
ऐसे लोगों को तो बिना देरी किये फाँसी दे देनी चाहिये..!! 

प्रेम पत्र लिखकर हम वाकई अपने प्रिय को ये समझा सकते हैं कि आपके दिल में क्या चल रहा है

इस बात से तो हम और आप इनकार ही नहीं कर सकते हैं कि आज से कुछ साल पहले तक..!
प्यार के इजहार का जो तरीका हुआ करता था, उसमें तो अब काफी बदलाव आ चुका है..! पहले के प्यार में आज की तुलना में कहीं अधिक मासूमियत हुआ करती थी..!
उदाहरण के तौर पर उस समय की फिल्मों को देख लीजिए. उस वक्त की फिल्मों को देखकर और आज की फिल्मों में प्यार के इजहार करने के तरीके को देखकर अंतर साफ नजर आता है..!
बीते समय में जहां प्यार के इजहार लिए लोगप्रेम पत्र लिखा करते थे वहीं आज वाट्सऐप और चैट जैसी सुविधाएं मौजूद हैं. उस दौर में प्रेम पत्र लिखना और फिर उसे सहेली के हाथ भिजवाना, प्यार के इजहार का यही एक तरीका था. प्रेम पत्र लिखना थोड़ी धीमी प्रकिया तो जरूर थी लेकिन आज के किसी भी विकल्प से कहीं अधिक कारगर थी..!
प्रेम पत्र लिखकर हम वाकई अपने प्रिय को ये समझा सकते हैं कि आपके दिल में क्या चल रहा है. यह मानी हुई बात है कि किसी से जोर-जोर से चिल्लाकर प्यार का इजहार करने से बेहतर है कि आप प्रेम भरे शब्दों की मदद लें और खत लिखें..!
कुछ लोगों के मन में अक्सर ये सवाल उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं कि जिन बातों को हम कहकर बता सकते हैं, उन्हें लिखकर समझाने की क्या जरूरत. पर आप जानते हैं लिखने के दौरान आपका दिमाग नहीं, आपका दिल आपको कमांड देता है और जब बात दिल से निकलेगी तो दिल तक पहुंचेगी ही..!
मेरा व्यक्तिगत मानना है कि प्रेम पत्र लिखना दरअसल प्यार के इजहार का सबसे बेहतरीन तरीका है. अगर आपको भी किसी से प्यार का इजहार करना है और आपको ये नहीं समझ आ रहा कि कैसे प्यार का इजहार करें, तो प्रेम पत्र लिखने से बेहतर शायद ही कुछ हो..!
भावनाओं को लिखकर ही सबसे बेहतर तरीके से पेश किया जा सकता है जहाँ तक मेरा मानना हैं कि किसी से बोलकर प्यार का इजहार करने के दौरान हम कहना तो बहुत कुछ चाहते हैं पर भूल जाते हैं. लेकिन लिखने के दौरान हम अपनी सारी भावनाओं को पूरी तरह से व्यक्त कर सकते हैं. वो भी मीठे शब्दों के साथ..!
प्यार जताने का सहज तरीका प्यार में जितनी सादगी हो, वह उतना ही खूबसूरत हो जाता है. किसी के प्रेम पत्र का इंतजार करना, उसकी खुशबू को महसूस करना, ये सबकुछ जितना सादा है और उतना ही कारगर भी..!
शब्द कभी मरते नहीं प्रेम पत्र एक ऐसी चीज हैं जिन्हें आप सालों-साल सहेजकर रख सकते हैं. ये आपके प्यार को हमेशा नया बनाए रखते हैं. आप समय-समय पर उन खतों को निकालकर, प्यार की उस पहली पहल को याद कर सकते हैं..!!

'चंदा बंद तो धंधा बंद' - चंदा पर चौकीदारी क्या लगी देश में तथाकथित असहिष्णुता ही आ गयी है.

  • पिछड़े डेढ़-दो साल से इस मुल्क में अघोषित एजेंडे के तहत अजीब सा माहौल दिखाने का मीडियाई मंचन चल रहा है. निर्देशन से लेकर पटकथा तक और मंचन से लेकर मुनादी तक, सबकुछ तय एजेंडे से हो रहा है. ऐसा करने वाले कोई और नहीं बल्कि वही लोग हैं जो कभी नरेंद्र मोदी पर फब्तियां कसते थे और देश की अस्मिता की परवाह किये बगैर उनके खिलाफ अमेरिका में वीजा रुकवाने का लेटर लिखते थे. सेक्युलर कबीले के ये लोग मोदी का नाम लेकर लोगों को डराते भी थे. लेकिन इनकी तमाम कोशिशों के बावजूद मोदी प्रचंड बहुमत से जीतकर आ गये. अमेरिका ने भी सर आँखों पर बिठा दिया. जिनको डराया गया वो आज पहले से ज्यादा सुरक्षित हैं. अब चूँकि सरकार तो बदल ही गयी थी लेकिन सरकार चलाने की संस्कृति भी बदल गयी है. सरकार चलाने की संस्कृति का यह बदलाव ही इस छटपटाहट की मूल वजह है. अब केंद्र में जो सरकार है वो 'मौन' सरकार नहीं है बल्कि 'बोलती' हुई सरकार है. मोदी ने आते ही जो शुरुआती डंडा चलाया उसके तहत सीधा हमला उन तथाकथित गणमान्यों पर हुआ जो बिना हिसाब दिए विदेशी चंदे पर पल रहे थे. चंदा आ तो बेहिसाब रहा था लेकिन जा कहां रहा था इसका कोई लेखा-जोखा नहीं था. इसी नस पर मोदी ने ऊंगली क्या रख दी, मच गया चौतरफा कोहराम!
पिछले साल ही ये खबर आई थी कि मोदी सरकार ने विदेशी चंदे पर पल रहे उन 9000 से ज्यादा गैर-सरकारी संगठनों का पंजीकरण लाइसेंस निरस्त कर दिया है, जिन्होंने विदेशी चंदा अधिनियम कानून अर्थात एफसीआरए का उलंघन किया है. 16 अक्तूबर 2014 को गृहमंत्रालय द्वारा कुल 10343 गैर-सरकारी संगठनों को वर्ष 2009 से लेकर 2012 तक मिले विदेशी चंदे का ब्यौरा माँगा गया था. जवाब के लिए तय 1 महीने की समय सीमा बीत जाने के बाद तक मात्र 229 गैर-सरकारी संगठनों ने इसका जवाब दिया. बड़ा सवाल ये कि बाकी संस्थाओं ने हिसाब क्यों नहीं दिया? क्या दाल में कुछ काला था या कहीं पूरी  दाल तो काली नहीं थी? चंदे के धंधे से फल-फूल रहे इस कारोबार पर लगाम लगाने की कवायदों में ही केंद्र सरकार ने अमेरिका के बहु-चर्चित फोर्ड फाउंडेशन द्वारा भारत में दिए चंदे को निगरानी में रखने का आदेश जारी किया था. अगर बारीकी से मामलों को देखा जाय तो फोर्ड फाउन्डेशन पर सरकार की सख्त निगरानी बहुत पहले रखी जाने चाहिए थी, लेकिन न जाने किस परस्पर हितों को साधने के लिए पिछली संप्रग सरकार ने फोर्ड फाउन्डेशन को भारत में बिना किसी निगरानी के काम करने और पैसा देने की खुली छूट दे रखी थी.
फोर्ड फाउंडेशन का 'तीस्ता' कनेक्शन
फोर्ड फाउंडेशन पर गुजरात सरकार की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि, सबरंग ट्रस्ट और सबरंग कम्युनिकेशंस ऐंड पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड (एससीपीपीएल) फोर्ड फाउंडेशन के प्रतिनिधि कार्यालय हैं और फोर्ड फाउंडेशन लंबी अवधि की अपनी किसी योजना की वजह से इन्हें स्थापित करने के साथ ही इसका इस्तेमाल कर रहा है. फाउंडेशन ने सबरंग ट्रस्ट को 2,50,000 डॉलर और एससीपीपीएल को 2,90,000 डॉलर चंदे के तौर पर दिए हैं. बड़ा सवाल ये है कि गैर-सरकारी संगठनों का ताना-बाना बुनकर देश के समाजिक और राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाले किसी भी किस्म के विदेशी पैसों को निगरानी से बाहर क्यों रखा जाय? जिस सबरंग ट्रस्ट की बात यहां की जा रही है, उसका प्रत्यक्ष जुड़ाव तीस्ता सीतलवाड से है. लिहाजा फोर्ड और तीस्ता सीतलवाड़ के ट्रस्ट के बीच का यह चंदा कनेक्शन साफ समझा जा सकता है. अब चू्ंकि फोर्ड पर लगाम लगाई जा चुकी है तो इनसे सहानुभूति रखने वाले गिरोह की छटपटाहट भी स्वाभाविक है.

कहाँ के फारवर्ड थे ये?
संप्रग काल में फारवर्ड प्रेस नाम की एक हिंदी-अंग्रेजी पत्रिका भी बेहद संदिग्ध ढंग से उलूल-जुलूल विमर्शों को समय-समय पर हवा देती रही है. चाहे महिषासुर को मनगढ़ंत ढंग से स्थापित करने की असफल कोशिश का मामला हो अथवा विलियम कैरी को अगस्त-2011 के अंक में आधुनिक भारत का पिता बताने की कोशिश हो, ये पत्रिका लागातार ऐसे एजेंडे पर काम करती रही. जिस विलियम कैरी को 'आधुनिक भारत का पिता' लिखा गया है, उसका योगदान भारत में महज बाइबिल का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने से ज्यादा कुछ भी नहीं है. विलियम कैरी एक चर्च के पादरी भी रहे हैं. फारवर्ड प्रेस पत्रिका कांग्रेस-नीत सरकार के दौरान 2009 में शुरू होती है और दिल्ली के एक महंगे इलाके में सहजता से दफ्तर भी मिल जाता है. 2009 से अब तक इस पत्रिका की छपाई एवं कागज आदि की गुणवत्ता में कोई कमी नहीं आई थी, जबकि सही मायनों में इस पत्रिका के पास विज्ञापन न के बराबर थे. नाममात्र के विज्ञापनों को छोड़ दें तो यह पूरी पत्रिका बिना विज्ञापन के चल रही थी. इस पत्रिका से जुड़े ज्यादातर शीर्ष लोग क्रिश्चियन मिशनरीज से जुड़े हैं. लेकिन अब खबर है कि यह पत्रिका बंद हो रही है. जो पत्रिका संप्रग काल में बेबाक चल रही थी वो अचानक बंद क्यों हो गयी? क्या इसे 'चंदा बंद तो धंधा बंद' मान लिया जाए?
ऐसे में आज जब चारों तरफ नाटकीय ढंग से बुनावटी कोहराम का ढोंग रचा जा रहा है तो यह समझना बिलकुल भी मुश्किल नहीं है कि ये सब क्यों हो रहा है. सीधी सी बात है कि जो लोग बेरोक-टोक के विदेशी पैसों पर पल रहे थे अब उन्हें हिसाब देने के लिए कह दिया गया है. चूँकि हिसाब देने की आदत रही नहीं सो उनसे हिसाब मांगना 'असहिष्णुता' जैसा दिख रहा है. ऐसे में मोदी का विरोध करने के लिए मोदी विरोधी एका की स्थिति स्वभाविक है. चूँकि राजनीति में आने से पहले केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के एनजीओ भी करोड़ों का फंड फोर्ड से लेते रहे हैं, लिहाजा इस एका में उनकी भागीदारी भी कोई नई बात नहीं है. देश में असहिष्णुता सिर्फ उनके लिए है जिनकी अवैध खुराक मोदी ने रोक रखी है. चंदा पर चौकीदारी क्या लगी देश में तथाकथित असहिष्णुता ही आ गयी है.

JNU - जेएनयु का पूरा सच

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की छवि न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर के एक स्वतंत्र उच्च शिक्षण संस्थान की है बल्कि यहां हर तरह की अभिव्यक्ति और बहस के लिए जगह मिलती है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी भी है लेकिन संसद पर हुए आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरु की बरसी मनाकर उसे शहीद बताना और भारत विरोधी नारे लगे जैसी हरकतों को देश हित में नहीं कहा जा सकता है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना उच्च शिक्षा में शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिए की गई थी, लेकिन वर्तमान समय में चल रहे विवादों के बीच ऐसा लगता है कि यह भारत विरोधियों का किला बन गया है।
इससे पहले भी जेएनयू छात्र कई बार देश विरोधी गतिविरोधी गतिविधियों में पैरवी करते नजर आए। चाहे फिदायीन इशरत जहाँ का मामला हो या संसद हमले के जिम्मेदार अफजल गुरु का मामला हो या मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार याकूब मेमन की फाँसी का सवाल हो। विपक्षी कई बार आरोप लगाते रहे हैं कि जब कभी चीन की फौज विवादित क्षेत्र से भारत में घुस आती है या पाकिस्तान की सेना सीमा पार से हमारे जवानों पर हमला करती है तो इनकी आवाज देश हित में क्यों नहीं उठता।

जेएनयू में कथित हिंदू विरोधी ही नहीं हिंदुस्तान विरोधी करतूतों की एक लम्बी फेहरिस्त है। कभी तिरंगे का, तो कभी देवी-देवताओं का अपमान।

इन आयोजनों को देखने के बाद यह साफ समझा जा सकता है कि इसका उद्देश्य या तो भारतीय संस्कृति और भारतीय संविधान को नीचा दिखाना है या फिर सस्ती लोकप्रियता हासिल करना है।
 
परिसर में इन आयोजनों को देखते हुए जेएनयू पर देशविरोधी गतिविधियों को लेकर उठने वाली चिंता वाजिब ही है। वर्ष 2000 में करगिल में युद्घ लड़ने वाले वीर सैनिकों को अपमानित कर यहां चल रहे मुशायरे में भारत-निंदा का समर्थन किया। 26 जनवरी, 2015 को इंटरनेशनल फूड फेस्टिवल के बहाने कश्मीर को अलग देश दिखाकर उसका स्टाल लगाया गया। जब नवरात्रि के दौरान पूरा देश देवी दुर्गा की आराधना कर रहा था, उसी वक्त जेएनयू में दुर्गा का अपमान करने वाले पर्चे, पोस्टर जारी कर न सिर्फ अशांति फैलाई गई बल्कि महिषासुर को महिमामंडित कर महिषासुर शहादत दिवस का आयोजन किया गया।

इससे पहले 24 अक्टूरबर, 2011 को भी कावेरी छात्रावास में लार्ड मैकाले और महिषासुर: एक पुनर्पाठ विषय पर सेमिनार में दुर्गा के सम्बन्ध में अपमानजनक टिप्पणियों से मारपीट की भी नौबत आ गई थी।

यही नहीं जेएनयू छात्रों ने गौमांस फेस्टिवल मनाने की जिद पर अड़े संगठनों को दिल्ली उच्च न्यायालय रोक लगाई। सबसे हैरत की बात है कि जब 10 अप्रैल, 2010 को जब पूरा देश छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलिओं के गोलियों से शहीद हुए 76 जवानों के गम में गमगीन था, उसी समय जेएनयू में जश्न मनाया जा रहा थे। यही नहीं उसका विरोध करने पर माओवादियों-नक्सलवादियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले छात्रों ने उन पर हमला किया गया जिसमें में कई छात्र बुरी तरह घायल हो गए थे। छत्तीसगढ़, झारखण्ड सहित कुछ राज्यों के नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों द्वारा चलाए गए ऑपरेशन ग्रीन हंट नामक अभियान का विरोध जेएनयू छात्रों ने पर्चे और पब्लिक मीटिंग के जरिए की।

जब नवंबर 2005 में मनमोहन सिंह के भाषण में छात्रों ने नारेबाजी की और पर्चे फेंके तो भी इनके सहिष्णुता  पर सवाल उठाए गए थे। हंगामा इस कदर मचा था कि बीच बचाव के लिए पुलिस को आगे आना पड़ा। अगस्त 2008 में जब विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज विभाग में अमेरिका के अतिरिक्त सचिव रिचर्ड बाउचर को भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के संबंध में बोलना शुरू किया तो लाल झण्डा उठाकर छात्रों ने अमेरिका हाय-हाय, परमाणु समझौता रद्द करो जैसे नारे लगाते हुए एस कदर हंगामा मचाया कि अंत में कार्यक्रम को ही स्थगित करना पड़ा और रिचर्ड बाउचर भी अपनी बात नहीं रख पाए थे।
जब 5 मार्च, 2011 को आयोजित एक सेमिनार जिसमें अरुंधती राय ने भाग लिया था, उसमें न सिर्फ भारत सरकार और संविधान के विरोध में नारे लगाए गए थे बल्कि बांटे गए पर्चे में जूते के तले राष्ट्रीय चिन्ह को दिखाया गया। यही नहीं 30 मार्च, 2011 और 2015 में को भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट विश्वकप के मैच में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए और भारत का समर्थन कर रहे छात्रों पर हमले किये गए। 24 अगस्त, 2011 को अन्ना आंदोलन के समय तिरंगे को फाड़कर पैरों से रौंदा भी गया।
विविधता में एकता भारत की सदियों पुरानी पहचान रही है। भारत में विभिन्न प्रकार के मत-मतान्तरों के बीच जिस प्रकार का सौहार्दपूर्ण सामाजिक तानाबाना देखने को मिलता है, वह शायद पूरी दुनिया में ढूंढने से भी दिखाई नहीं पड़ता। 2014 से पहले तक जेएनयू के कैंपस में इजरायल के किसी व्यक्ति यहां तक कि राजदूत तक का घुसना भी प्रतिबंधित हुआ करता था।

जहां तक वामपंथी विचारधारा की बात है तो न सिर्फ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी बल्कि उत्तर कोरिया, वियतनाम, क्यूबा, चिली, वेनेजुएला या पूर्व सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टियों के किसी सदस्यों ने कभी देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त नहीं पाए गए।
कहा जाता है कि जेएनयू की स्थापना के समय की तत्कालीन इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार ने अपने अनुकूल बौद्धिक माहौल तैयार करने, अपने वैचारिकता के अनुकूल इतिहास बनाने के लिए जेएनयू की स्थापना की थी। सत्ता पोषित सुविधा सत्तर के दशक की शुरुआत में जब इंदिरा गांधी को विरासत बचाने के लिए वामपंथियों की मदद लेनी पड़ी, वही वो वक्त था जब कम्युनिस्टों ने भी शिक्षण संस्थाओं पर कब्जा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इंदिरा गांधी के काल में लेफ्ट विचारधारा के लोगों को संस्थान में महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया गया। लेकिन धीरे धीरे जेएनयू छात्र संगठन की ताकत लगातार बढ़ती गई और इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार यहां के छात्रों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को परिसर के अंदर भी नहीं आने दिया था और लालकृष्ण आडवाणी को विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर ही रोक दिया था।
तब से लेकर आज तक जेएनयू में वैचारिक प्रतिनिधित्व के नाम पर एक ही विचारधारा का कब्जा रहा है? चाहे कश्मीर का मामला हो या उत्तर-पूर्व में नक्सल-माओवादी क्षेत्रों में सक्रिय हिंसा फैलाने वाले देशद्रोही और अलगाववादी ताकतों को समर्थन देने की, जेएनयू के छात्र संगठन हमेशा ही आगे नजर आते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर जी एन सार्इं बाबा हों या एसएआर गिलानी, खुफिया एजेंसियों ने कई बार इन्हे देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाया।

लेकिन यहां कई साकारात्मक बहसें भी देखा जा सकता है। इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही कहा जा सकता है कि यहां समाज में छुपा लिए जाने वाले मुद्दों पर सीमा से आगे बढ़कर बहस की जाती रही है। चाहे वो समलैंगिकता की स्वतंत्रता पर बहस हो या महिलाओं को स्वछंद रहने और काम करने की आजादी का मद्दा यहां हर मुद्दे पर गंभीर बहस का आयोजन देखा जा सकता है।
जब दिल्ली भर में कांग्रेस सरकार की नाक के नीचे सिखों का कत्ल हो रहा था तब जेएनयू ने ही सिखों को शरण दी और देशभर में गुंडागर्दी का पर्याय बन चुकी छात्र राजनीति का शानदार नमूना भी पेश किया। इसी वैचारिक खुलेपन का आड़ लेकर कई बार अतिवादियों ने यहां से अपना एजेंडा भी चलाया। एंटी इस्टैब्लिशमेंट काम करना जेएनयू की परिपाटी रही है। परमाणु ऊर्जा, किसान आत्महत्या, भूमि अधिग्रहण, देश का औद्योगिकरण आदि मुद्दों पर इनका विरोध खुद तक सीमित रहा।

Saturday, February 13, 2016

JNU को 'जिहादी नक्सल यूनिवर्सिटी'' में तब्दील कर दिया है।

JNU में इस्लामिक जिहादियों और बामपंथी-नक्सलियों के गठजोड़ ने इस शिक्षा के मंदिर को ''जिहादी नक्सल यूनिवर्सिटी'' में तब्दील कर दिया है।

बामपंथी-नक्सली विचारधारा भारतीय लोकतंत्र के लिए किस कदर खतरनाक है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं की बिहार बेगुसराय जिले के बीहट में जन्मा "कन्हैया कुमार" कश्मीर की आजादी और भारत की बर्बादी के सपने देख रहा है। बाप पत्थर तोड़ता है, माँ आगनबाडी में काम करती है, और बेटा दहशतगर्द अफजल का शहीदी दिवस मनाता है।

यह खतरे की घंटी है-- उन माँ-बाप के लिए जो JNU जैसे उच्च कोटि के शिक्षा-संस्थान में अपने बच्चों को पढ़ाने के सपने देखा करते थे --- भारत सरकार के लिए -- जिसके आँखों के सामने JNU "हाफिज सईद के इंडियन ट्रेनिंग सेंटर" के तौर पर काम कर रहा है। बामपंथी-नक्सली लाल-चड्डी गैंग ने एक अच्छे भले यूनिवर्सिटी का सत्यानाश कर दिया।

''जिहादी नक्सल यूनिवर्सिटी'' में "राष्ट्रवाद" की अलख जलाने के लिए सबसे पहले इसके नाम से देशद्रोही नेहरू का नाम हटाकर "नेताजी सुभाषचन्द्र बोस" के नाम पर रखा जाये और यूनिवर्सिटी VC के लिए "सुब्रह्मण्यम स्वामी" जी बेहतरीन कैंडिडेट होंगे

Thursday, February 11, 2016

दहशतगर्द इशरत मामले में बैकफुट पर आये Presstitute, NGO और बामपंथी-कांग्रेस गैंग

दहशतगर्द इशरत मामले में बैकफुट पर आये Presstitute, NGO और बामपंथी-कांग्रेस गैंग अब मोदीजी को बदनाम करने के लिए किसी "रोहित वेमुला" या "इखलाक" की मौत की वाट जोह रहे हैं।
इसलिए JNU के देशद्रोहीयों अपना ख्याल रखना-- आत्महत्या मत करना। सम्भावना है की राजनितिक लाभ के लिए तुम्हारी शाजिशन हत्या को भी "आत्महत्या" का रूप दिया जाए । हैदरावाद यूनिवर्सिटी में भी घटनाएँ कुछ इसी तरह शुरू हुई थी।
और इशरत जहाँ मामले में "काली दाढ़ी-सफ़ेद दाढ़ी" थ्योरी देने वाले केजरीवाल, "26/11 RSS की शाजिश" करार देने वाली कांग्रेस और "इशरत को बिहार की बेटी" बताने वाले नितीश जैसे बेशर्मों से जनता माफ़ी की उम्मीद तो नहीं करती --- पर -- कम से कम पाकिस्तान के प्रवक्ता की तरह बयान देना बंद करें। अंधे मोदी-RSS बिरोध में देशद्रोह का रास्ता मत अख्तियार करो । Narendra Modi साहब हिंदुस्तान के विकास की स्वर्णिम गाथा लिखने में जुटे हैं, उनकी राह में काँटे बिछाना बंद करो...!

Monday, February 1, 2016

जो लोग सोशल मीडिया पर हम जैसों को ‪#‎भक्त‬ कह के बुलाते हैं, उनसे मैं कहना चाहता हूँ कि यदि ऐसा कह के आपकी मंशा हमें अपमानित करने की है तो आप फेल हो गए हैं। स्वयं के लिए 'भक्त' शब्द का संबोधन सुनकर हम अपमानित नहीं बल्कि गौरवान्वित महसूस करते हैं। हमें अपनी भक्ति पर अभिमान होता है। इनलोगों को यह समझ नहीं आता कि भक्ति एक भारतीय परंपरा है। और इस परंपरा में भक्त अपना भगवान स्वयं चुनता है। भक्त की भक्ति उसके भगवान की गुलाम नहीं है। वह तो उसके प्यार, विश्वास और श्रद्धा पर टिकी हुई है। जिस दिन उसका विश्वास डिग गया, वह अपने भगवान की भक्ति का परित्याग कर देगा, उसे सवालों के घेरे में खड़ा कर देगा। मतलब यह कि भक्त का भक्त होना या न होना किसी और के ऊपर नहीं बल्कि स्वयं उसके ऊपर निर्भर होता है। इसलिए 'भक्त' शब्द उसके लिए गाली न होकर उपाधि होती है जिसे वह गर्व से गले में लटकाए घूमता रहता है। वहीँ दूसरी ओर हम, सोनिया समर्थको "गुलाम "कह के बुलाते हैं। ऐसा करते समय हमारा मकसद उन्हें लज्जित करना होता है और हम ऐसा करने में सफल भी होते हैं। क्या आपने किसी कांग्रेसी या आपी को देखा है जो अपने आपको 'गुलाम कहने में गर्व का अनुभव करता हो? हाँ जिस दिन भक्त को लगा कि उसका भगवान उसकी भक्ति के काबिल नहीं रहा, वह उससे भगवान का दर्ज़ा छीन लेगा। पर सवाल उठता है कि क्या कोई 'गुलाम' कभी अपनी गुलामी की जंजीरें तोड़ पायेगा? जवाब है 'नहीं' क्यूंकि एक गुलाम को पता ही नहीं होता कि वह गुलाम है। ...जिस दिन उसे पता चल गया कि वह गुलाम है,  उसी दिन वह आज़ाद हो जायेगा।