रामशंकर कठोरिया जैसे दलित नेता को आज मीडिया ने जमकर परेशान किया है।
उन्होंने अपने भाषण में किसी समुदाय का नाम नहीं लिया;मगर उन्होंने एक गोभक्त दलित की हत्या पर क्षुब्ध होकर जनता से कुछ बोला भी तो क्या बुरा बोला।
क्या मंत्री होना उनकी संवेदनशीलता पर प्रतिबंध लगाने का काम कर देगा?
न जाने कितने भड़काऊ भाषणों को हमने कुछ जाहिल मुसलमानों के तथाकथित रहनुमाओं के मुँह से सुना है कि दस मिनट के लिए पुलिस हटा लो तो हिन्दुओं को साफ़ कर देंगे। सड़ा;बदबूद ार लाशों का चिथड़ा तुम लोग खाते हो;कुत्तों की तरह का भोजन करने वालों को साफ़ होने की आवश्यकता तुम्हें है।पहले ख़ुद की क़ौम को साफ़ करो।और रही पुलिस की बात तो कानून व्यवस्था बनाना उनका ही काम नहीं है।नागरिकों का भी काम है।
ख़ैर हिन्दू मुसलमान में वैमनस्य फैलाकर जो भी दंगों को देश की मासूम जनता पर थोपना चाहते हैं वो सभी नालायक लोग हैं।लेकिन एक गोभक्त की हत्या के ख़िलाफ़ अगर एक मंत्री भावनाओं में बह भी गया तो उसके पीछे पड़ने में मीडिया ने देर नहीं लगाई।
क्या इतनी तत्परता गोभक्त अरूण जो कि दलित है, के राजनीतिक संरक्षण पाए हत्यारों के पीछे पड़ने के लिए दिखाई थी?
हमें ख़बर भी नहीं थी कि राहुल गाँधी आत्महत्या करनेवाले याकूब मेनन के समर्थक देशद्रोही में दलित की संवेदना जग सकती है;मगर गोभक्त की हत्या पर उसका दलित होना ख़ारिज हो गया?
जनता! देख लो;दलितों की राजनीति करने वाले भी मानते हैं कि जो हिन्दू सनातन धर्म को प्रेम करता है वो दलित नहीं रहता;जो देशद्रोही मुसलमानों के चक्रव्यूह में फँसा हुआ है।वो ही असली दलित रह गया है।
ये दलित क़ौम का अपमान है।ये उनकी पददलित सोच का सर्टिफ़िकेट बाँट रहे हैं।
मनुवाद को गाली देकर ये तुम्हारे मन को ख़ुश कर सकते हैं लेकिन तुम्हें बौद्धिक संपदा के स्तर पर पहुँचा देखकर तुम्हें दलित होने के स्वीकार से ही मना कर देते हैं।कहते हैं कि दलित गौरवशाली संस्कृति का हिस्सा हो ही नहीं सकता।ये है उनकी घटिया राजनीति।
थूक भी नहीं सकता उन कमज़र्फ़ों पर;
मेरा थूक भी मैला हो जाएगा।
नहीं लेना है स्वाद इस राजनीति का;
सबका मुँह कसैला हो जाएगा।
उन्होंने अपने भाषण में किसी समुदाय का नाम नहीं लिया;मगर उन्होंने एक गोभक्त दलित की हत्या पर क्षुब्ध होकर जनता से कुछ बोला भी तो क्या बुरा बोला।
क्या मंत्री होना उनकी संवेदनशीलता पर प्रतिबंध लगाने का काम कर देगा?
न जाने कितने भड़काऊ भाषणों को हमने कुछ जाहिल मुसलमानों के तथाकथित रहनुमाओं के मुँह से सुना है कि दस मिनट के लिए पुलिस हटा लो तो हिन्दुओं को साफ़ कर देंगे। सड़ा;बदबूद
ख़ैर हिन्दू मुसलमान में वैमनस्य फैलाकर जो भी दंगों को देश की मासूम जनता पर थोपना चाहते हैं वो सभी नालायक लोग हैं।लेकिन एक गोभक्त की हत्या के ख़िलाफ़ अगर एक मंत्री भावनाओं में बह भी गया तो उसके पीछे पड़ने में मीडिया ने देर नहीं लगाई।
क्या इतनी तत्परता गोभक्त अरूण जो कि दलित है, के राजनीतिक संरक्षण पाए हत्यारों के पीछे पड़ने के लिए दिखाई थी?
हमें ख़बर भी नहीं थी कि राहुल गाँधी आत्महत्या करनेवाले याकूब मेनन के समर्थक देशद्रोही में दलित की संवेदना जग सकती है;मगर गोभक्त की हत्या पर उसका दलित होना ख़ारिज हो गया?
जनता! देख लो;दलितों की राजनीति करने वाले भी मानते हैं कि जो हिन्दू सनातन धर्म को प्रेम करता है वो दलित नहीं रहता;जो देशद्रोही मुसलमानों के चक्रव्यूह में फँसा हुआ है।वो ही असली दलित रह गया है।
ये दलित क़ौम का अपमान है।ये उनकी पददलित सोच का सर्टिफ़िकेट बाँट रहे हैं।
मनुवाद को गाली देकर ये तुम्हारे मन को ख़ुश कर सकते हैं लेकिन तुम्हें बौद्धिक संपदा के स्तर पर पहुँचा देखकर तुम्हें दलित होने के स्वीकार से ही मना कर देते हैं।कहते हैं कि दलित गौरवशाली संस्कृति का हिस्सा हो ही नहीं सकता।ये है उनकी घटिया राजनीति।
थूक भी नहीं सकता उन कमज़र्फ़ों पर;
मेरा थूक भी मैला हो जाएगा।
नहीं लेना है स्वाद इस राजनीति का;
सबका मुँह कसैला हो जाएगा।