राष्ट्र किसी भौगोलिक सीमा को नहीं कहते हैं, किसी देश को नहीं कहते हैं बल्कि राष्ट्र तो एक अवधारणा है.!
यह अवधारणा जितनी संकीर्ण होगी हमारा राष्ट्र उतना ही छोटा होगा और जितने बड़े दायरे को सामहित करती होगी, हमारा राष्ट्र उतना ही बड़ा होगा। राष्ट्र एकसमान संस्कृति, इतिहास, भाषा, पर्यावास (हैबिटेट) को मानने वाले लोगों से बनता है..!
अब सवाल यह था कि भारत तो विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, पर्यावासों और तकरीबन इतिहास का देश है, तो यह राष्ट्र कैसे.. ?
इसका जवाब था और है… संविधान..!
संविधान ही वह सीमा हो सकती है जिसके भीतर भारत नाम के राष्ट्र को समाहित किया जा सकता है। लेकिन कुछ लोग इसकी परिधि को संविधान के जरिए नहीं बल्कि एक धर्मविशेष या मतविशेष के जरिए बांधना चाहते हैं और निश्चित तौर वह परिधि संविधान की तुलना में छोटी ही होगी..!
इस लिहाज से उनका राष्ट्र छोटा होगा..! निष्कर्ष के तौर पर यह कह सकते हैं कि वह लोग जो मौजूदा राष्ट्र की विशालता को काट-छांटकर उसे छोटा करना चाहते हैं, असल में राष्ट्रद्रोही तो वे हुए..!!
यह अवधारणा जितनी संकीर्ण होगी हमारा राष्ट्र उतना ही छोटा होगा और जितने बड़े दायरे को सामहित करती होगी, हमारा राष्ट्र उतना ही बड़ा होगा। राष्ट्र एकसमान संस्कृति, इतिहास, भाषा, पर्यावास (हैबिटेट) को मानने वाले लोगों से बनता है..!
अब सवाल यह था कि भारत तो विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, पर्यावासों और तकरीबन इतिहास का देश है, तो यह राष्ट्र कैसे.. ?
इसका जवाब था और है… संविधान..!
संविधान ही वह सीमा हो सकती है जिसके भीतर भारत नाम के राष्ट्र को समाहित किया जा सकता है। लेकिन कुछ लोग इसकी परिधि को संविधान के जरिए नहीं बल्कि एक धर्मविशेष या मतविशेष के जरिए बांधना चाहते हैं और निश्चित तौर वह परिधि संविधान की तुलना में छोटी ही होगी..!
इस लिहाज से उनका राष्ट्र छोटा होगा..! निष्कर्ष के तौर पर यह कह सकते हैं कि वह लोग जो मौजूदा राष्ट्र की विशालता को काट-छांटकर उसे छोटा करना चाहते हैं, असल में राष्ट्रद्रोही तो वे हुए..!!
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