भारत ही एकमात्र वो देश है;जहाँ ग़द्दार मानसिकता वाले खुलेआम घूम सकते हैं।शायद सोशल मीडिया की हायतौबा सरकार तक न पहुँचती तो आज भी कोई कार्रवाई नहीं होती।
ऐसा इसलिए कहना पड़ता है क्योंकि दो दिन बाद ही गृहमंत्रालय हरक़त में आया।और ऐसा आया कि राजनाथ सिंह ने आनन फानन में इन नामर्द युवाओं का कनेक्शन हाफ़िज़ सईद से जोड़ दिया।
काँग्रेस ने शर्म नाम की चीज़ का वजूद ग़ारत कर दिया है।घिन तक आ जाए ऐसा राजनीति मेंगिर गए हैं कि मोदी विरोध में करते करते राष्ट्र द्रोह पर भी समर्थन पर उतर गए हैं।
ऐसी काँग्रेस को वोट देने वाला तो दोगला ही हो सकता है।जी हाँ!देशद्रोह की आवाज़ भी न दबाई जाए तो क्या दबाया पाए?
कहाँ तो भारत को बर्बाद कर देने का नारा लगाने वालों की छाती फोड़कर उनका लहू पी जाना चाहिए।मगर क्या करें? ये इटली की मिक्सिंग है।
हमारा दुर्भाग्य है कि राष्ट्रवाद जब जब हमने सबको आह्वान करके परिभाषित करना चाहा तो मुसलमानों और ईसाइयों ने अपने दो कौड़ी की धार्मिक अवधारणा के लिए नकार दिया।सिर्फ़ प्रगतिशील हिन्दू बहुसंख्या में इससे जुड़े और कुछ ही मुस्लिम या ईसाई इस राष्ट्रीयता की भावना के साथ जुड़े।
मुसलमान को केवल मज़हबी नखरेबाजी की सन्तुष्टि पसन्द रही।हिन्दुओं ने धर्म को राष्ट्रीय अवधारणा के साथ कभी मिक्स करके धार्मिक नखरेबाजी नहीं की।
मुसलमानों की इस कमी के कारण और उनकी संख्या का महत्व होने के कारण गांधी जी उनकी तुष्टीकरण की राजनीति शुरू कर बैठे जो आज़ादी के बाद बँटवारे के साथ ही समाप्त कर देना चाहिए था।मगर उन्होंने सत्य को सत्ता से कमतर आंका।और सत्ता ने ही उनकी हत्या होने में बड़ी भूमिका निभाई।
मुसलमान धर्म के नाम पर जब देश बाँट चुके थे तो क्यों हिन्दोस्तान को ढंग से परिभाषित नहीं किया?
मुसलमानों से वोट देने का अधिकार तो छीन ही लेना चाहिए था।इन लोगों ने पाकिस्तान को अभी तक अपना देश समझा हुआ है।हमारे कुछ तथाकथित हिन्दू इनके साथ रहकर सत्ता सुख पाने या देश के दुश्मनों से धन पाने के लिए या हराम की आनुवंशिक विकृतियों की वजह से यह सब कर रहे हैं।
राहुल गांधी!गधे से भी कम अक्लवाले!!जिस भारत का तू प्रधानमंत्री बनना चाहता है।उसको बर्बाद करने वाले हैं ये।कोई इस गगधधे को समझाओ।किसका समर्थन कर रहा है?कुछ इन्सान है भी कि पूरा पार्ट पार्टी को ख़तम करने पर लगा देगा।
कमीनीस्ट दलों को क्या कहा जाए क्योंकि इनकी रगों में रखैलों का ख़ून बहता है।वो भी पाकिस्तानी रखैलों का।
क्योंकि इतना तो कदाचित् हिन्दुस्तानी वैश्याएँ भी नहीं गिर सकतीं सिवाय इनके घर की महिलाओं के।
मीडिया के कुछ लोग तो कुत्तों से बदतर हो गए हैं जो इसे छोटी सी बात बता रहे हैं।ये छोटी बात नहीं है।
देशद्रोह का संस्कार इनमें पड़ चुके हैं।अब क्या आतंकी वारदातों का इन्तज़ार करेंगे?क्या हमें उनके पूर्णतः भारत को बर्बाद कर देने की प्रतीक्षा करनी चाहिए?
अरे बेवकूफों!तुम्हा रे जैसे लोगों के बच्चे जब तक किसी बम विस्फोट में नहीं मरते तब तक तुम्हें अफ़जल गुरु जैसे लोग सुहा सकते हैं।देख लेना !तुम उमर ख़ालिद या कन्हैया जैसों का कारनामा।जल्द ही सुनाई देगा।तब शर्म से मर जाओगे जैसे इशरत जहाँ को बेटी बताने वाले शर्म से मुँह छुपाए हैं।
इशरत जहाँ एक भटकी हुई मुस्लिम लड़की थी।
कई वैश्याएँ भी भटकी हुई होती हैं।मगर इशरत जहाँ जैसी लड़कियों से अल्लाह की नज़र में बेहतर हैं।वैसे अल्लाह के नाम पर ये लोग एक दिन अल्लाह को ही काट देंगे।
ऐसा इसलिए कहना पड़ता है क्योंकि दो दिन बाद ही गृहमंत्रालय हरक़त में आया।और ऐसा आया कि राजनाथ सिंह ने आनन फानन में इन नामर्द युवाओं का कनेक्शन हाफ़िज़ सईद से जोड़ दिया।
काँग्रेस ने शर्म नाम की चीज़ का वजूद ग़ारत कर दिया है।घिन तक आ जाए ऐसा राजनीति मेंगिर गए हैं कि मोदी विरोध में करते करते राष्ट्र द्रोह पर भी समर्थन पर उतर गए हैं।
ऐसी काँग्रेस को वोट देने वाला तो दोगला ही हो सकता है।जी हाँ!देशद्रोह की आवाज़ भी न दबाई जाए तो क्या दबाया पाए?
कहाँ तो भारत को बर्बाद कर देने का नारा लगाने वालों की छाती फोड़कर उनका लहू पी जाना चाहिए।मगर क्या करें? ये इटली की मिक्सिंग है।
हमारा दुर्भाग्य है कि राष्ट्रवाद जब जब हमने सबको आह्वान करके परिभाषित करना चाहा तो मुसलमानों और ईसाइयों ने अपने दो कौड़ी की धार्मिक अवधारणा के लिए नकार दिया।सिर्फ़ प्रगतिशील हिन्दू बहुसंख्या में इससे जुड़े और कुछ ही मुस्लिम या ईसाई इस राष्ट्रीयता की भावना के साथ जुड़े।
मुसलमान को केवल मज़हबी नखरेबाजी की सन्तुष्टि पसन्द रही।हिन्दुओं ने धर्म को राष्ट्रीय अवधारणा के साथ कभी मिक्स करके धार्मिक नखरेबाजी नहीं की।
मुसलमानों की इस कमी के कारण और उनकी संख्या का महत्व होने के कारण गांधी जी उनकी तुष्टीकरण की राजनीति शुरू कर बैठे जो आज़ादी के बाद बँटवारे के साथ ही समाप्त कर देना चाहिए था।मगर उन्होंने सत्य को सत्ता से कमतर आंका।और सत्ता ने ही उनकी हत्या होने में बड़ी भूमिका निभाई।
मुसलमान धर्म के नाम पर जब देश बाँट चुके थे तो क्यों हिन्दोस्तान को ढंग से परिभाषित नहीं किया?
मुसलमानों से वोट देने का अधिकार तो छीन ही लेना चाहिए था।इन लोगों ने पाकिस्तान को अभी तक अपना देश समझा हुआ है।हमारे कुछ तथाकथित हिन्दू इनके साथ रहकर सत्ता सुख पाने या देश के दुश्मनों से धन पाने के लिए या हराम की आनुवंशिक विकृतियों की वजह से यह सब कर रहे हैं।
राहुल गांधी!गधे से भी कम अक्लवाले!!जिस भारत का तू प्रधानमंत्री बनना चाहता है।उसको बर्बाद करने वाले हैं ये।कोई इस गगधधे को समझाओ।किसका समर्थन कर रहा है?कुछ इन्सान है भी कि पूरा पार्ट पार्टी को ख़तम करने पर लगा देगा।
कमीनीस्ट दलों को क्या कहा जाए क्योंकि इनकी रगों में रखैलों का ख़ून बहता है।वो भी पाकिस्तानी रखैलों का।
क्योंकि इतना तो कदाचित् हिन्दुस्तानी वैश्याएँ भी नहीं गिर सकतीं सिवाय इनके घर की महिलाओं के।
मीडिया के कुछ लोग तो कुत्तों से बदतर हो गए हैं जो इसे छोटी सी बात बता रहे हैं।ये छोटी बात नहीं है।
देशद्रोह का संस्कार इनमें पड़ चुके हैं।अब क्या आतंकी वारदातों का इन्तज़ार करेंगे?क्या हमें उनके पूर्णतः भारत को बर्बाद कर देने की प्रतीक्षा करनी चाहिए?
अरे बेवकूफों!तुम्हा
इशरत जहाँ एक भटकी हुई मुस्लिम लड़की थी।
कई वैश्याएँ भी भटकी हुई होती हैं।मगर इशरत जहाँ जैसी लड़कियों से अल्लाह की नज़र में बेहतर हैं।वैसे अल्लाह के नाम पर ये लोग एक दिन अल्लाह को ही काट देंगे।
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