जो लोग सोशल मीडिया पर हम जैसों को #भक्त कह के बुलाते हैं, उनसे मैं कहना चाहता हूँ कि यदि ऐसा कह के आपकी मंशा हमें अपमानित करने की है तो आप फेल हो गए हैं। स्वयं के लिए 'भक्त' शब्द का संबोधन सुनकर हम अपमानित नहीं बल्कि गौरवान्वित महसूस करते हैं। हमें अपनी भक्ति पर अभिमान होता है। इनलोगों को यह समझ नहीं आता कि भक्ति एक भारतीय परंपरा है। और इस परंपरा में भक्त अपना भगवान स्वयं चुनता है। भक्त की भक्ति उसके भगवान की गुलाम नहीं है। वह तो उसके प्यार, विश्वास और श्रद्धा पर टिकी हुई है। जिस दिन उसका विश्वास डिग गया, वह अपने भगवान की भक्ति का परित्याग कर देगा, उसे सवालों के घेरे में खड़ा कर देगा। मतलब यह कि भक्त का भक्त होना या न होना किसी और के ऊपर नहीं बल्कि स्वयं उसके ऊपर निर्भर होता है। इसलिए 'भक्त' शब्द उसके लिए गाली न होकर उपाधि होती है जिसे वह गर्व से गले में लटकाए घूमता रहता है। वहीँ दूसरी ओर हम, सोनिया समर्थको "गुलाम "कह के बुलाते हैं। ऐसा करते समय हमारा मकसद उन्हें लज्जित करना होता है और हम ऐसा करने में सफल भी होते हैं। क्या आपने किसी कांग्रेसी या आपी को देखा है जो अपने आपको 'गुलाम कहने में गर्व का अनुभव करता हो? हाँ जिस दिन भक्त को लगा कि उसका भगवान उसकी भक्ति के काबिल नहीं रहा, वह उससे भगवान का दर्ज़ा छीन लेगा। पर सवाल उठता है कि क्या कोई 'गुलाम' कभी अपनी गुलामी की जंजीरें तोड़ पायेगा? जवाब है 'नहीं' क्यूंकि एक गुलाम को पता ही नहीं होता कि वह गुलाम है। ...जिस दिन उसे पता चल गया कि वह गुलाम है, उसी दिन वह आज़ाद हो जायेगा।
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