Saturday, February 27, 2016

अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भारत को बर्बाद करने की ख्वाहिश

किसी घर की बहु-बेटी जब माँ बनने वाली होती है तो उसको अस्पताल ले जाया जाता है ! अगर वहाँ पर डॉक्टर कहता है कि मामला जटिल है, दोनों को बचाना मुश्किल है, या तो बच्चे की जिंदगी बचाई जा सकती है या फिर "माँ" की जिंदगी को ही सुरक्षित किया जा सकता है। ऐसे हालात में घर वाले का यही कथन होता है कि :- "डॉक्टर साहेब कोशिश कीजिये कि दोनों बच जाये, लेकिन अगर ऐसा ना हो तो 'माँ' को बचाइये" !
घरवाले ऐसा क्यों कहते हैं ? क्योकि अगर माँ है, तो फिर बच्चे का जन्म कभी भी सुनिश्चित किया जा सकता है। माँ चाहे देश के रूप में हो या फिर हाड-मांस की हो, उसकी रक्षा और सुरक्षा हमारा-आपका दायित्व है और यदि किसी की भी लापरवाही से माँ के जीवन को खतरा हो रहा है तो उसके लिए जो उपचार है वो करने ही पड़ंगे।
अब इस उदाहरण को JNU मामले जोड़कर देखिये जनाब। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भारत को बर्बाद करने की ख्वाहिश, "अफजल" जैसे आतंकवादियों से सहानभूति रखते है और कहते है कि इस देश द्रोह नहीं कहा जा सकता है। सेक्युलर ताकतें और कुछ कु-बुद्धिजीवी जैसे "दीमक" भी इन्हें पनाह देते हैं। मत भूलो की अगर हिंदुस्तान है, तभी तक अभिव्यक्ति की आजादी का प्रयोजन है। भारत माता ही नहीं बचेगी तो "अभिव्यक्ति की आजादी" का क्या करोगे बुद्धिजीवियों ?
अब समय आ गया है की, कुछ मीर ज़ाफ़र और जयचंद की मौत से भी अगर सिराजुद्दौला और पृथ्वीराज जैसों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है, तो सरकार इससे गुरेज नहीं करे। क्योंकि इतिहास गवाह है, मीर ज़ाफ़र और जयचंद के सहारे ही हर बार "भारत माता" को ग़ुलाम बनाया गया है। भारत माता को बचाने के लिये इन बिगड़े बामपंथी-माओवादी-नक्सली-जिहादी विचारधारा के बच्चों को खोना पड जाये तो भी कोई नुकसान नही...!

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