Monday, March 28, 2016

पाकिस्तान ने हमेशा ही भारत के पीठ पर छुरा भोंका है...

महाशय, पाकिस्तान ने हमेशा ही भारत के पीठ पर छुरा भोंका है...फिर चाहे वो कारगिल युद्ध हो या 26/11 का कत्लेआम हो, कश्मीर में आतंक हो या गुरदासपुर में हमला हो। हर बार हमारे विश्वास को छला है बस। अपने ही देश में आतंकियों को पनाह देकर खुद की ही शामत बुलाई है।
कल पाकिस्तान में एक बम हादसा हुआ, जानकारी के मुताबिक़ करीब 70+ लोग मारे गए जिनमे कई बूढ़े, बच्चे व महिलायें भी थी...और बेशक वो निर्दोष थे। रंजिश होने के बावजूद भारत के पीएम से लेकर गृह मंत्री तक इसपर दुःख व्यक्त करते है, भारत के करोडो लोग उन बेगुनाहों की आत्मा की शान्ति के लिए 2 मिनट का मौन रख प्रार्थना करते है, प्रार्थना करने वाले न हिन्दू होते हैं ना मुस्लिम...होते हैं तो बस भारतीय, इंसानियत के नाते हम पाकिस्तान को दुःख सहन करने हेतु हौसला देते है। लेकिन क्यों....क्योंकि हम भारतीय है जनाब ! और यही इंसानियत जो धर्म व मज़हब के चंगुल से कोसों दूर है वो ही हमें दुनिया के श्रेष्ठतम लोगों में शामिल करती हैं।क्या जरुरत है हमें उन लोगो के लिए प्रार्थना करने की जिनके देश वाले यहां आकर आतंक मचाते है..हम भी तो अन्य देशो की तरह मुंह मोड़ सकते है...पर हमारा देश ऐसा नहीं है...ये हर सुख दुःख में हमें पडोसी का साथ देने की प्रेरणा देते है। यही हमारी पवित्र भारत माता का हमपर आशीर्वाद है जो हमारी सोच को घृणित होने से बचाता है।
ईश्वर सभी मृतकों की आत्मा को शान्ति देवे व उनके परिजनों को दुःख सहने का साहस दे।

Thursday, March 24, 2016

ये कौन सी सहिष्णुता ?

ये कौन सी सहिष्णुता ?
इस तरह की गई थी डाक्टर नारंग की हत्या, एक महिला भी थी शामिल
नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में बेटे के साथ क्रिकेट खेल रहे 41 वर्षीय दंत चिकित्सक की गेंद सड़क पर एक मोटरसाइकिल सवार को जा लगी। जिसके बाद हुई बहस में कुछ लोगों ने डाक्टर की पीट-पीट कर हत्या कर दी। पश्चिमी दिल्ली के विकासपुरी इलाके में बुधवार आधी रात को यह वारदात हुई। दांत के डाक्टर पंकज नारंग अपने बेटे के साथ घर में क्रिकेट खेल रहे थे।
पंकज नारंग
पंकज नारंग के रिश्तेदार पर भी हमला
गेंद घर की बालकनी से निकल कर मोटरसाइकिल सवार को जा लगी। इसके बाद बहस शुरू हो गई। पुलिस ने बताया कि बाइकसवार ने अपने 10 दोस्तों को बुला लिया और पंकज नारंग को घर से खींचकर डंडों और ईंटों से पीट-पीट कर मार डाला। बताया गया है कि डाक्टर के एक रिश्तेदार ने इसमें हस्तक्षेप करने की कोशिश की, लेकिन उस पर भी हमला किया गया। इससे पहले कि पुलिस वहां पहुंच पाती, हमलावर घटनास्थल से फरार हो गए।
आरोपियों को पुलिस ने किया गिरफ्तार
पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि हमने इस मामले में शामिल पांच लोगों को गिरफ्तार किया है, जिसमें एक महिला भी शामिल है। चार लड़कों को भी पकड़ा गया है। ये सभी झुग्गी बस्तियों में रहते हैं। गिरफ्तार महिला की पहचान मयस्सर के रूप में हुई है। दो अन्य आरोपियों की पहचान एक ही नाम आमिर खान के रूप में हुई है। दो अन्य आरोपियों में गोपाल सिंह व नसीर खान हैं। एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि नसीर खान मुख्य आरोपियों में से एक है और उस वक्त किशोर के साथ वही मोटरसाइकिल चला रहा था।

Monday, March 21, 2016

सनातन धर्म भला प्रकृति को कैसे नुकसान पहुंचाएंगे

महाशय, बात जिद्दीपन या अड़ियल रवैये की नहीं है। हम तो सनातन धर्म को मानने वालों में से है...हम भला प्रकृति को कैसे नुकसान पहुंचाएंगे। सनातन धर्म में तो गाय से लेकर नाग तक को पूजा जाता है, पुष्प से लेकर वृक्ष तक को पवित्र माना जाता है, धरती माँ से लेकर आसमान तक सभी को आदर दिया जाता है...यही वो धर्म है जो प्रकृति में मौजूद सभी वस्तुओ का आदर करना सीखाता है। इस धर्म में तो अग्नि, वायु व जल तक को देवता का स्थान दिया गया है।
बात है आपकी एकतरफा उद्दंडता की, आप एक बार निष्पक्ष तो होइए। हर त्यौहार चाहे वो होली हो या ईद, क्रिसमस हो या पोंगल...सब में कहीं का कहीं प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग व दोहन होता ही है। बाकी पर्वो पर आपकी चुप्पी और सिर्फ होली दीपावली पर पानी बचाओ व वायु प्रदुषण का रोना हमें अंदर तक कचोटता है। बुरा ना मानिए पर ईद में बकरो की हलाली के बाद उस स्थान को साफ़ करने के लिए हज़ारो लीटर पानी का व्यय होता है, क्रिसमस में बंटने वाली शराब को बनाने के लिए लाखों लीटर पानी लगता है, होली में भी करोड़ो लीटर पानी बह जाता है। तो जरुरत है सबके साथ की, एकतरफा बात से ना हल निकलेगा ना सुनवाई होगी।
कमरतोड़ महंगाई के दौर में पटाखे फोड़ना कई गुना कम हो गया है, भागमभाग भरी ज़िन्दगी में होली खेलना भी कई गुना कम हुआ है..फिर भी आपको पर्वो से आपत्ति है। वैसे भी होली में उतना ही पानी का इस्तेमाल होता है जितना जरुरी होता है, पागलो की तरह पानी कोई ना बहाता है। यकीन मानिए सनातन धर्म वाले कभी प्रकृति का अहित नहीं चाहते, आप बस एक बार निष्पक्ष होकर सभी धर्म वालो से पानी, वायु के अपव्यय को रोकने की गुज़ारिश करे...इस मुहीम में सनातन धर्म वाले सबसे आगे ना आए तो कहियेगा। लेकिन हाँ...अगर आप लोग एकतरफा आलोचना व कुंठा निकालेंगे तो आपकी कोई ना सुनेगा। या तो सभी धर्मो को साथ लेकर प्रकृति को बचाने की मुहीम चलाइए अन्यथा अपने विचारो को एक कागज़ में लिख उसकी बत्ती बनाकर अपने स्थान विशेष में डाल लीजिये। नमस्कार !!

Sunday, March 20, 2016

क्या यही अच्छे दिन हैं...?

ब्रिटिश राज़ 2
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15 मई 2014, इस दिन तक रामराज्य में रहने वाले भारत देश को जाने किसकी नज़र लगी कि 16 मई 2014 को सरकार बदलते ही देश में परेशानियां आ गयी। रोज़ वेज मंचूरियन खाने वाला किसान अब भूखे मरने लगा हैं..क्या यही अच्छे दिन हैं? वास्तविकता तो ये हैं कि इतिहास खुद को दोहराता हैं और अब वक़्त आ गया हैं फिर से उस समय को जीने का जिसे हमारे देश के क्रांतिकारियों ने 1947 के पहले जिया था।
ईश्वर ने इसके लिए पूरी तैयारियां कर ली हैं..भगत सिंह के रूप में हमारे पास कन्हैया हैं जिनपर देशद्रोह का मुकदमा हैं, सरदार पटेल के रूप में हार्दिक पटेल मौजूद हैं जिन्होंने आरक्षण के लिए करोडो की सम्पति स्वाहा कर के क्रांति की अलख जगाई हैं, गाँधी के रूप में अन्ना हजारे भी मौजूद हैं जो रिटायरमेंट की उम्र में अनशन स्पेशलिस्ट कहलाते हैं, नेहरु के रूप में केजरीवाल जी तो हैं ही और ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में BJP तथा अंग्रेजो के रूप में संघी...जिनसे चाहिए हमें आजादी।
दरअसल पहले हम सभी क्रांतिकारियों की आत्माएं बुलवाना चाहते थे पर बजट कम होने के कारण और विश्व भर में चाइनीज प्रोडक्ट की बढती मांग को ध्यान में रखते हुए हमने यही पर वो कर लिया जिसमे हमारा कोई मुकाबला नहीं...."जुगाड़"
वैसे भी जब से भगत सिंह को पाता चला हैं कि उनपर बनी फिल्म में बॉबी देओल ने उनका पात्र निभाया हैं, काफी गुस्से में रहते हैं। फिर अब जब कन्हैया की उनसे तुलना की गयी तो और ज्यादा गुस्से में हैं...सरदार पटेल तो अपनी तुलना हार्दिक पटेल से किये जाने के बाद से अपनी नागरिकता "Indian" को हटाने के लिए भी अप्लाई कर चूके हैं। अत: इस बार हम ये लड़ाई सस्ते क्रांतिकारियों के सहारे ही लड़ रहे हैं।
वैसे हम भारतीय गज़ब के हैं..मरने के बाद भी लोगो को चैन से नहीं रहने देते...कभी उनका नाम वोट के लिए तो कभी नोट पर, कभी क्रांति पर तो कभी मकर सक्रांति पर, कभी आजादी के लिए तो कभी बर्बादी के लिए लेते ही रहते हैं और किसी दूसरी दुनिया में उन्हें हिचकियाँ भेजते रहते हैं। खैर....देश में बहुत गंभीर समस्याएं हैं, पहले के कुछ क्रांतिकारियों ने अखबार व पत्र के जरिये देश को जगाया था अब अपन फेसबुक व ट्विटर के जरिये जगायेंगे। मोदी जो जनरल डायर सा अत्याचार कर रहा हैं उस पर बंदिश लगायेंगे....देश को RSS व BJP नामक ईस्ट इंडिया कंपनी से मुक्ति दिलाएंगे और फिर कन्हैया को फांसी पर झूलाकर केजरीवाल जी को पीएम बनायेंगे और देश के "love day" लगायेंगे...सॉरी, टाइपो हो गया, कहने का मतलब था देश में love day लायेंगे...अरे हाँ नाथूराम का चयन अब तक नहीं हु हैं..इच्छुक उम्मीदवार आवेदन कर सकते हैं बस पिस्तौल अपनी खुद की लेके आवे.
बेचारे क्रांतिकारी ऊपर बैठ कर अगर देश का हाल और उनके नाम का इस्तेमाल देख रहे हैं तो यही सोच रहे होंगे कि पहले पता होता कि ये सब होगा तो आजादी की लड़ाई में कूदने की बजाए मज्जे से झालमुड़ी बेचता smile emoticon इंक़लाब जिंदाबाद

Thursday, March 10, 2016

कामरेड कन्हैया कुमार; तुम्हारी उम्र क्या है ?

हाँ तो कामरेड कन्हैया कुमार;  तुम्हारी उम्र क्या है ?
यही कोई 30-31 साल ना और तुमने क्या कहा की "भारतीय सेना कश्मीर में रेप करती है ।
चलो मैं तुम्हे एक जगह ले चलता हू " आज से ठीक 15 साल 6 महीने 9 दिन पहले 29 June 1999 की रात जब तुम JNU के अपने हॉस्टल में गांजे और सिगरेट के धुंए के बीच विदेशी शराब के घूंट हलक से नीचे उतार क्रांति की बातें कर रहे थे उस वक्त Dras, kargil, Jammu & kashmir में Captain Vijayant Thapar शहीद हो गए थे ।
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जानते हो उस वक्त उम्र क्या थी उनकी ? मात्र २२ साल !
‪#‎तोलोलिंग‬ को कारगिल का निर्णायक मोड़ माना जाता है और Major Mohit Saxena की
assault team में शामिल विजयंत की प्लाटून ने पाकिस्तान के ‪#‎बरबाद_बंकर‬ पर तिरंगा फहराया ।
तोलोलिंग को जितना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था, 2nd राजपूताना राईफल्स 1.5 महीने से लगातार असफल हो रही थी ।
ज्यादातर जवान और अधिकारी घायल थे और जब आदेश आया की अगर तुमसे नहीं होता तो खाली करो हम दूसरी रेजिमेंट भेजेंगे तब Commanding officer Col. M. B. Ravindranathan बोले की "राजपूताना की इज्ज़त का सवाल है ।
" बस 11 घंटे में तोलोलिंग पर तिरंगा था । that's the spirit of Indian Army, you bloody bastard.
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तोलोलिंग के बाद 2nd Rajputana को अगला task मिला three pimples & knoll को कब्जे में लेने का ।
जानते हो तोलोलिंग और टाईगर हिल के बीच sandwich की तरह फंसी काले पत्थरों की उबड़-खाबड़ भद्दी सी पहाड़ी हैं ।
29 जून की वो पूर्णिमा की रात थी, Northern light infantry (पाकिस्तान) की 6 वीं बटालियन चोटी पर 100 MM की gun और machine gun लेकर पूरी तैयारी से बैठी थी ।
चांदनी के उजाले में बेहद संकरे रास्ता, दोनो ओर करीब 15000 फीट की खड़ी ढाल, सामने से बचाव के लिए कोई ओट नहीं , केवल छोटी - छोटी चट्टानें जिस पर तुर्रा ये की तापमान -15℃ । साक्षात यमराज से भिड़ जाने सा था
यहाँ पर विजयंत की यूनिट ने असाल्ट शुरू किया कम्पनी कमांडर Major Padmpani Achary
के under में । जैसे ही चढ़ाई पूरी हुई दुश्मन ने मशीन गनों का मुंह खोल दिया और 100MM की
गोलाबारी शुरू हो गई । इसका बराबरी का जवाब दिया गया लेकिन नुकसान अपने ही पक्ष का ज्यादा हुआ ।
कुछ ही देर की मुठभेड़ में कंपनी कमांडर शहीद हो गए,ज्यादातर जवान या तो मर चुके थे या बुरी तरह जख्मी थे और इस निर्णायक घड़ी में विजयंत ने दुश्मन से सीधा सामना किया ।
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मात्र 15 मीटर की दूरी पर दो लाईट मशीन गनों के बीच आगे बढ़ कर मोर्चा लेना भारतीय सेना ही कर सकती है कन्हैया कुमार तुम्हारे जैसे किसी वामपंथी,गद्दार,नामर्द, नपुंसक & क्लीव के बस का नहीं जो 4 दिन जेल में रहकर खुद ही थूक कर चाट आये ।
कलेजा चाहिए होता है इसके लिए । समझे !
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मात्र 15 मीटर की दूरी से विजयंत को गोलियां बींध गईं थी; सीने , पेट और सिर में ........और वह रक्तरंजित नायक अपने साथी ‪#‎नायक_तिलक_सिंह‬ की बाहों में गिरा ।
जानते हो केवल 6 महीने हुए थे उसे सेना में भर्ती हुए और जब उन्हें ‪#‎वीर_चक्र‬ से सम्मानित किया गया तो पुरुष्कार लेने आईं थी उनकी 82 साल की वृद्धा दादी ।
उस बुढ़िया से पूछना उनकी छातियों में दूध उतार आया होगा उस वक्त ।
Greater Noida में उनकी अंतिम यात्रा में करीब 1.5 लाख की भीड़ उमड़ आई थी । .
और हाँ विजयंत केवल इसीलिए नहीं याद किये जाते एक 6 साल की बच्ची थी ‪#‎रुखसाना‬; आतंकियों ने हत्या की थी उसके परिवार की और इसी सदमें से उसकी आवाज चली गई थी ।
मात्र 5 महीने में ही उसकी आवाज लौट आई थी ।
जानते हो किसकी वजह से ??
विजयंत थापर की वजह से और सुनो कारगिल पर दुश्मनों के हमले के बाद, शायद अपनी आने वाली मौत को भांपते हुए कैप्टन विजयंत ने अपने परिवारवालों के नाम एक चिट्ठी लिखी थी। जिसमें उन्होंने लिखा कि, 'जब तक ये चिट्ठी आप लोगों तक पहुंचेगी, शायद मैं न रहूं। मेरे मरणोपरांत अनाथालय में कुछ रुपए दान करें, और रूखसाना को 50 रूपए प्रति माह भेजते रहें।' रूखसाना पांच वर्षीय बच्ची थी, जो कैप्टन के साथ खेला करती थी और उसे विजयंत से काफी स्नेह था।
विजयंत थापर के पिता कर्नल वी एन थापर ने भी भारतीय सेना में रहकर 37 वर्ष तक देश की सेवा की। पिछले १७ बारह साल से लगातार सैकड़ों मील की दूरी तय कर वह उस उजड़ी और सुनसान जगह पर जाते हैं जहां उनका बेटा दुश्मनों से लोहा लेते हुए खेत हो गया था। वह ऐसा सिर्फ अपने शहीद बेटे को याद करने के लिए नहीं बल्कि उससे किए गए एक वादे को पूरा करने के लिए भी करते हैं। अपनी इस मूक श्रद्धांजलि के द्वारा सेवानिवृत्त कर्नल वीएन थापर कारगिल युद्ध में शहीद हुए अपने बहादुर बेटे कैप्टन विजयंत थापर से किए गए उस वादे को पूरा करते हैं जिसमें उनके बेटे ने जीवन के अंतिम क्षणों में कहा था कि अगर हो सके तो वह उस जगह आकर देखें जहां भारतीय सेना उनके और देश के भविष्य के लिए लड़ रही है।
कन्हैया तुम और तुम्हारे साथी स्त्री देह के भूखे, बच्चों के मांस को भून कर खा जाने वाली विचारधारा के झंडा बरदार क्या जानो की भावनाएं क्या होती हैं । .
तुम्हारा आदर्श होगा वह झूठा, कायर, मानसिक दलित और भगोड़ा ‪#‎रोहित_वेमुला‬ पर हमें अभिमान है शहीद ‪#‎विजयंत_थापर‬ पर ; हमारा आदर्श कोई भारत को बांटने वाला वामपंथी कुत्ता नहीं बल्की वो 13 लाख की शत्रुहंता और मानवता की सेवक हमारी सेना है।
सुन वामपंथी कुत्ते - शहीद चमकते हैं , शहीद दमकते है , चेहरे याद नहीं हैं , फिर भी वो महकते हैं , लोग तो रोज मरते हैं....पर वो मर कर भी जी जाते हैं...क्योंकि वो शहीद कहलाते है...

जय हिन्द जय हिन्द की सेना...!!.

जानिए मकबूल भट कौन था ?

देश की राजनीति में थोड़ी भी रूचि रखने वाले या थोड़ा सामान्य ज्ञान रखने वाले सब अफज़ल गुरु के बारे में जानते हैं, लेकिन JNU में अफज़ल गुरु के साथ जिस मकबूल भट को शहीद कहकर नारे लगाये गए... उस मकबूल बट के बारे में आज की युवा पीढ़ी शायद ही जानती हो.
जानिए मकबूल भट कौन था, और उसने क्या किया था जिसके कारण उसको फांसी दी गई.....
पुणे मे हर दिन हजारों वाहन म्हात्रे पुल से गुजरते हैं. लेकिन उनमें से शायद 10% लोग भी नही जानते होंगे कि ये म्हात्रे कौन थे.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय मे कुछ बुद्धिजीवियों ने कुछ दिन पहले प्रदर्शन किये और अफजल गुरु और मकबूल बट को शहीद कहकर घोषणाएं की. मकबूल भट को सामान्य जनता भूली होगी मगर ऊग्रवादी भूले नही. कश्मीर घाटी के पुराने हिंन्दू जो भट्ट थे वही धर्मपरिवर्तन के बाद भट हो गये थे.
14 सितंबर 1966 को पाकिस्तान की सहायता से इस मकबूल भट ने पुलिस बल पर हमला किया जिसमे इंन्स्पेक्टर अमरचंद मारे गए. 1971 के विमान अपहरण कर लाहौर ले जाने में भी इस मकबूल भट की मुख्य भूमिका थी. तब यह पाकिस्तान में रहता था.
1976 में भारतीय सेना ने पकड़ा और फिर इसे फांसी की सजा हुई. उसने भारत के राष्ट्रपति से क्षमा याचना की.
3 फरवरी 1984 को इसके साथियों (Jammu Kashmir Liberation Front) ने लंडन मे भारतीय उच्चायोग के श्री रवींद्र म्हात्रे का अपहरण किया. श्री म्हात्रे अपनी छोटी सी बेटी के जन्मदिन का केक लेकर घर आ रहे थे और बस से उतरे थे. यहीं से अपहरण कर आतंकियों ने मकबूल भट को रिहा करने की मांग की.
तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने यह मांग नहीं मानी और स्पष्ट कर दिया कि भारत सरकार आतंकियों से कोई बातचीतनहीं करेगी. तब 6 फरवरी 1984 को इन आतंकियों ने श्री म्हात्रे का कत्ल कर उनके शव को सड़क पर फेंक दिया.
तब श्रीमती इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति श्री झैलसिंग को दया याचना को नामंजूर करने की सिफारिश कर 5 दिन बाद 11 फरवरी 1984 को मकबूल भट को फांसी पर चढ़ा दिया.
रवींद्र म्हात्रे के बूढे माता-पिता मुंबई के विक्रोळी मे 3 कमरे के मकान मे रहते थे. श्रीमती गांधी उन्हे मिलने मुंबई गईं और हवाई अड्डे से सीधे विक्रोळी गईं. म्हात्रे के बूढे पिता का हाथ 15 मिनट हाथ में लेकर बैठीं और सांत्वना दी. दोनो की आंखों में पानी था. श्रीमती गांधी ने देश को महत्व दिया था जिससे म्हात्रे को जान गंवानी पड़ी इसके लिये खुद को दोषी मानकर क्षमा मांगी और सीधे हवाई अड्डे से दिल्ली वापस आईं.
4 नवंबर 1984 को इन्ही आतंकियों ने मकबूल भट को फांसी की सजा देने वाले जज नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी.
ये JNU आतंकवादी 30 साल बाद अभी भी मकबूल भट को भूले नहीं मगर हम श्री रवींद्र म्हात्रे को भूल गए.

कॉंग्रेसियों का पुराना नुस्खा है -- चोरी करो सबूत मिटा दो

'कोयला घोटाले' की फाइल गायब, 'आदर्श घोटाले' की फाइल जल गयी और अब मोदी साहब को बदनाम करने के लिये "इशरत केस" मे जो चिदंबरम ने "ड्राफ्ट नोट" करवाया था, वो फाइल भी गायब। कॉंग्रेसियों का पुराना नुस्खा है -- चोरी करो सबूत मिटा दो ---- ना बचेंगी दस्तावेज, ना लगेंगी धारायें। पता कीजिये Narendra Modi साहब 2जी, CWG और जीजा जी की फाइल भी बची है की नही ?
जहाँ राजमाता के ताजपोशी के राह मे रोड़े बने पायलट और सिंधिया का अचानक एक्सीडेंट हो जाता है, जहाँ राजकुमार रेप पीडिता सुकन्या देवी को रातों रात परिवार सहित गायब करवा देते है, फिर यह तो सिर्फ इशरत केस का ड्राफ्ट नोट है। इस देश में कॉंग्रेस की हेराफेरी जड़ें इतनी गहरी है, की अपनी तिकड़मों के सबूत गायब करवाना उनके लिए मामूली बात है। सत्ता चली गयी पर अब भी इन शातिर खिलाडियों के हर मंत्रालय मे ताल्लुकात हैं, हर जगह चमचे-गद्दार छोड़ रखे हैं
सारी बातों का लब्बो-लुआब यह है की -- Congress‬ जैसी तिकडमी पार्टी से पार पाना ‪‎BJP‬ जैसी पार्टी के बस का नही। ‪‎कांग्रेस‬ के हरामीपने को टक्कर सिर्फ और सिर्फ धूर्तराज केजरीवाल‬ ही दे सकते हैं

Monday, March 7, 2016

जेएनयू विवाद के बीच आंतकवादी मकबूल भट के बारे में कुछ जानना ज़रूरी है।

जेएनयू विवाद के बीच आंतकवादी मकबूल भट के बारे में कुछ जानना ज़रूरी है।
पुणे मे हर दिन हजारों वाहन "म्हात्रे" पुल से गुजरते हैं. लेकिन उनमे से शायद 10% लोग भी नही जानते होंगे कि ये म्हात्रे कौन थे?
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय मे कुछ बुद्धीजवीयोंने कुछ दिन पहले प्रदर्शन किये और अफजल गुरु और मकबूल भट को शहीद कहकर नारे लगाये।
मकबूल भट को सामान्य जनता भूली होगी मगर ऊग्रवादी भूले नही।
कश्मीर घाटी के पुराने हिंन्दू जो भट्ट थे वही धर्मपरिवर्तन के बाद भट या फिर बट हो गये थे।
14 सितंबर 1966 को पाकिस्तान की सहायता से इस मकबूल भट ने पुलिस बल पर हमला किया जिसमे इंन्स्पेक्टर अमरचंद मारे गए। 1971 के विमान अपहरण कर लाहोर ले जाने मे भी इस मकबूल भट की मुख्य भूमिका थी। तब यह पाकिस्तान मे रहता था।
1976 मे भारतीय सेना ने पकडा और फिर इसे फांसी की सजा हुई। उसने भारत के राष्ट्रपती से क्षमा याचना की।
3 फरवरी 1984 को इसके साथियों (Jammu Kashmir Liberation Front) ने लंदन मे भारतीय उच्चायोग के श्री रवींद्र म्हात्रे का अपहरण किया। श्री म्हात्रे अपनी छोटी सी बेटी के जन्मदिन का केक लेकर घर आ रहे थे और बस से उतरे थे। यहीं से अपहरण कर आतंकियों ने मकबूल भट को रिहा करने की मांग की।
तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने यह मांग नही मानी और स्पष्ट कर दिया कि भारत सरकार आतंकियों से कोई बातचीत नही करेगी। तब 6 फरवरी 1984 को इन आतंकियों ने श्री म्हात्रे का कत्ल कर उनके शव को सडक पर फेंक दिया।
तब श्रीमती इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति श्री जैल सिंह को दया याचना को नामंजूर करने की सिफारिश कर 5 दिन बाद 11 फरवरी 1984 को मकबूल भट को फांसी पर चढा दिया। रवींद्र म्हात्रे के बूढे माता-पिता मुंबई के विक्रोळी में रहते थे श्रीमती गांधी उन्हे मिलने मुंबई गईं और हवाई अड्डे से सीधे विक्रोळी गईं। म्हात्रे के बूढे पिता का हाथ 5 मिनट हाथ मे लेकर बैठीं और सांत्वना दी। दोनो की आंखों मे पानी था। श्रीमती गांधी ने देश को महत्व दिया था जिससे म्हात्रे को जान गवानी पडी और शायद इसके लिये खुद को दोषी मानकर क्षमा मांगी और सीधे हवाई अड्डे से दिल्ली वापस आईं।
4 नवंबर 1984 को इन्ही आतंकियों ने मकबूल भट को फांसी की सजा देने वाले जज "नीलकंठ गंजू" की हत्या कर दी।
ये आतंकवादी 30 साल बाद अभी भी मकबूल भट को भूले नही मगर हम श्री रवींद्र म्हात्रे को भूल गए....
चलिये हम आज उन्हे , नीलकंठ गंजू और इंस्पेक्टर अमरचंद को याद कर अपनी श्रद्धांजलि देँ !!!!

Sunday, March 6, 2016

रोहित वेमुला : एक हार हुआ नौजवान जिसने आत्महत्या कर ली थी, और शर्मनाक बात ये है कि हमारे देश का मीडिया उसे हीरो बना रहा है,

कन्हैय्या कुमार का बाप पैरालाइज़्ड है और कई सालों से बिस्तर पर है, माँ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता है जहाँ उसे 3000 रूपये महीने की तनख्वाह मिलती है, एक भाई और है जो आईएएस की तैयारी कर रहा है। कन्हैया कुमार की उम्र लगभग 30 वर्ष है और वो जेएनयू में पीएचडी कर रहा है। कन्हैया कुमार बिहार के जिस इलाके का रहने वाला है वो बहुत पिछड़ा इलाका है और वहां हमेशा सीपीआई और सीपीआई माले का बोलबाला रहा है। अब सवाल ये उठता है कि जिस बेटे की माँ दिन रात मेहनत करके 3000 रूपये महीने कमाती हो उसका लड़का 30 साल की उम्र तक पढाई करेगा? दूसरा सवाल, जिसके क्षेत्र का विकास कम्युनिस्टों के रहते (या उनके कारण) नहीं हो पाया क्या वो उन्ही का फेवर करेगा? तीसरा सवाल, क्या एक गरीब दलित इतने महंगे वकील हायर कर सकेगा? और मजे की बात सुनिए, जिस लड़के को घर में इतनी परेशानियां हैं उसका आदर्श है, एक हार हुआ नौजवान जिसने आत्महत्या कर ली थी, और शर्मनाक बात ये है कि हमारे देश का मीडिया उसे हीरो बना रहा है, रविश कुमार जैसे सीरियस पत्रकार उसकी शान में कसीदे पढ़ रहे हैं।

Saturday, March 5, 2016

गिरगिट हिन्दू और मकड़ी मुसलमान

गिरगिट हिन्दू और मकड़ी मुसलमान
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नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी को "तोजो का कुत्ता" कहने वाले, 1962 में भारत-चीन युद्ध में चीन का साथ देने वाले, बंगाल जैसे संपन्न राज्य को अपने दशकों के शासन में गरीबी-भुखमरी-बेरोजगारी के नरक में झोंकने वाले नीच बामपंथीयों को "जिहादी नक्सल यूनिवर्सिटी" में विकास -आजादी और देशभक्ति का प्रोपगेंडा करते देख यह मशहूर किस्सा याद आया।
इन्ही लाल चड्डी गैंग की तरह मदरसों में भी मासूम बच्चों का "माईंडवाश" किया जाता है, यह बचपन का किस्सा भी उसी की एक बानगी है। दरअसल मदरसे में मौलाना साहेब हमें "कर्बला जंग" के बारे में बता रहे थे। कर्बला के जंग में इमाम हुसैन साहब "हिन्दुओं की फ़ौज" से अपने परिवार और बच्चों के साथ जान बचाने के लिए एक सूखे कुँवें में छिप जाते हैं।
तभी अल्लाह अपने बन्दों की रक्षा के लिए एक फरिश्ता भेजता है, जो मकड़ी के रूप में आकर उसे कुँवे को जाले से कुछ इस तरह ढँक देता है, जिससे से की कुँवे के अंदर झाँकने से बाहर वालों को कुछ दिखाई न दे।
लेकिन तभी हिन्दुओं के देवता ने गिरगिट के वेश में आकर कुँवे के मुंडेर पर बैठ "हिन्दुओं के फ़ौज" को बार-बार सर हिलाकर हुसैन साहब के अंदर छिपे होने का इशारा कर देता है। हिन्दुओं की फ़ौज जाले को हटाती है और हुसैन साहब को कुनबे समेत क़त्ल कर देती है। किस्सा सुनकर बच्चे "हाय हुसैन" करने लगे और हिन्दुओं के लिए लानत बरसाने लगे।
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जब की हकीकत यह है की --- इमाम अली साहेब और उनके बेटे हसन और हुसैन के साथ अन्याय शुरुआत से ही इन्ही सुन्नियों ने किया। मुआविया और उसके बेटे यजीद सुन्नी खलीफा अबु-बकर, उमर और उस्मान की मदद से ही इस कुकृत्य को अन्जाम देने में सफल हुए थे। और फाइनली निहत्थे इमाम हुसैन साहब की कुनबे सहित "कर्बला" में जघन्य हत्या कर दी गयी। शिम्र नामके व्यक्ति ने इमाम हुसैन का सर काट कर उनको शहीद कर दिया , शिम्र बनू उमैय्या का कमांडर था। उसका पूरा नाम "Shimr Ibn Thil-Jawshan Ibn Rabiah Al Kalbi (also called Al Kilabi (Arabic: شمر بن ذي الجوشن بن ربيعة الكلبي) था।
दूसरी बात भारतीय हिंदुओं में एक परिवार या समुदाय "हुसैनी ब्राह्मण" कहलाता है, हुसैनी ब्राह्मण दरदना भट्टाचार्य के वंशज थे. उनमें आत्माभिमान, बहादुरी, और रहमत कूट-कूट कर भरी थी, वे इमाम अली साहब और उनके परिवार के प्रति सम्मान और आस्था रखते थे। कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत की खबर सुनी तो हुसैनी ब्राह्मण रिखब दत्त इराक पहुंचे।
यजीद के सैनिक इमाम हुसैन के शरीर को मैदान में छोड़कर चले गए थे। तब रिखब दत्त ने इमाम के सर को अपने पास छुपा लिया था। यूरोपी इतिहासकार रिखब दत्त के पुत्रों के नाम इसप्रकार बताते हैं ,1 सहस राय ,2हर जस राय 3,शेर राय ,4राम सिंह ,5राय पुन ,6गभरा और7 पुन्ना। बाद में जब यजीद को पता चला तो उसके लोग इमाम हुसैन का सर खोजने लगे कि यजीद को दिखा कर इनाम हासिल कर सकें। जब रिखब दत्त ने सर का पता नहीं दिया तो यजीद के सैनिक एक एक करके रिखब दत्त के पुत्रों से सर काटने लगे ,फिर भी रिखब दत्त ने पता नहीं दिया। सिर्फ एक लड़का बच पाया था। जब बाद में मुख़्तार ने इमाम के क़त्ल का बदला ले लिया था तब विधि पूर्वक इमाम हुसैन के सर को दफनाया गया।
रिखब दत्त के इस बलिदान के कारण उसे सुल्तान की उपाधि दी गयी थी और उसके बारे में "जंग नामा इमाम हुसैन " के पेज 122 में यह लिखा हुआ है ,"वाह दत्त सुल्तान ,हिन्दू का धर्म मुसलमान का इमान,आज भी रिखब दत्त के वंशज भारत के अलावा इराक और कुवैत में भी रहते हैं ,और इराक में जिस जगह यह लोग रहते है उस जगह को आज भी हिंदिया कहते हैं।
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जिस रसूल के नाम का कलमा पढ़ा, उसी के नवासे को परिवार सहित निर्दयता से क़त्ल कर उसका दोष निर्दोष हिन्दुओं पर मढ़ने वाले सुन्नियों और नीच बामपंथियों का प्रोपगेंडा फ़ैलाने में महारथ हासिल है

CPM यानी तानाशाही-वो भी एक छोटी सी यूनिवर्सिटी में

साल 2012 की बात है। ‪‎JNU‬ में SFI‬ के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार वी.लेनिन कुमार ने राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस की तरफ से प्रणब मुखर्जी की दावेदारी को सीपीएम का समर्थन देने पर विरोध जताया था। अभिव्यक्ति की आजादी के पैरोकार सीताराम येचुरी और प्रकाश करात की सीपीएम ने बिना देर किए लेनिन कुमार और चार साथियों को न केवल एसएफआई से बाहर कर दिया बल्कि जेएनयू की एसएफआई यूनिट ही बर्खास्त कर दी। लेनिन कुमार ने एसएफआई-जेएनयू बनाई और चुनाव लड़ा। लेनिन कुमार चुनाव जीत गया। और असल एसएफआई का उम्मीदवार 10वें नंबर पर रहा और उसे 4309 में से सिर्फ 107 वोट मिले। तो ये थी असल एसएफआई की कैंपस में हैसियत और कद लेनिन का बड़ा था। उस वक्त बकौल इंडियनएक्सप्रेस लेनिन ने कहा था-
"fundamental problem with the CPM-SFI" is that the combine now functions like a "dictatorship" with "no room for debate" and represents all that is "unprincipled and undemocratic".
यानी तानाशाही-वो भी एक छोटी सी यूनिवर्सिटी में। लेकिन सवाल लेनिन की जीत का नहीं, सवाल यह कि प्रणव मुखर्जी की दावेदारी का विरोध भर करने पर सीपीएम ने अपने छात्र नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया और वो अभिव्यक्ति की आजादी की बात कर रहे हैं। और सवाल यह भी है कि लेनिन समेत तमाम एसएफआई छात्र नेता प्रणव मुखर्जी को उस वक्त 'दलाल' और कांग्रेस को दलालों, भ्रष्टाचारियों और दलितों-गरीबों को लूटने वालों की पार्टी मानते थे (लेनिन का भाषण सुन लीजिए) लेकिन अब वही कांग्रेस वोट बैंक के लिए लेफ्ट की गोद मे बैठने को तैयार है और लेफ्ट को कांग्रेस में कोई बुराई नहीं दिख रही।
जो कन्हैया अब लेफ्ट पार्टियों का प्रचार करने को तैयार है, वो जेएनयू चुनाव के वक्त लेफ्ट के बाकी धड़ों से भी आजादी चाह रहा था। यकीं न तो उस वक्त के उसके भाषण सुन लीजिए(क्विंट पर बाइट है)। फिर एक सवाल ये भी जेहन में है कि क्या जेएनयू का लेफ्ट एबीवीपी से घबराया हुआु हैं क्योंकि बीते छात्र संघ चुनाव में 14 साल बाद एबीवीपी का एक कैंडिडेट सेंट्रल पैनल में पहुंचा। उपाध्यक्ष पद पर भी एबीवीपी कैंडिडेट दूसरे नंबर पर रहा। महासचिव पर भी एबीवीपी कैंडिडेट दूसरे नंबर पर रहा। यानी लेफ्ट के जितने धड़े जेएनयू में सक्रिय हैं-छात्रों का भरोसा उनसे उठ रहा है।
खैर, लेफ्ट को नया नेता मिल गया है। कॉमरेड कन्हैया अब लेफ्ट को तारेगा तो अच्छा है। लेकिन, अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल बुलंद करे तो फिर लेनिन को बाहर करने का सवाल भी उठेगा ही और उठना भी चाहिए। जो पार्टी अपने छात्र नेताओं को असहमति का हक नहीं देती-वो कैसे अभिव्यक्ति की आजादी की बात करती है। लेनिन का भाषण भी सुन लीजिए।

हम अचानक कब अपने समाज के हितैषी के बदले दूसरे समाज के दुश्मन बन जाते है हमको पता ही नहीं चलता

कभी कभी फेसबुक पर मित्रों के ऐसे "पोस्ट" होते है जो तर्क से हटा हमें गुस्सा दिलाने की कोशिश करते है..!
कई बार हम जिस समाज से आते है या जिसकी हम फ़िक्र करते है चाहे वो हिन्दू हो , मुस्लिम हो , दलित हो , क्रिस्चियन हो या सिख हो – उससे सम्बंधित ऐसी बर्बरता को दिखाई जाती है जिससे हमारा खून खौलने लगता है..!
हम अचानक कब अपने समाज के हितैषी के बदले दूसरे समाज के दुश्मन बन जाते है हमको पता ही नहीं चलता । कब हम एक समाज के रक्षक से दूसरे समाज के भक्षक बन जाता है पता ही नहीं चलता..!
हम युवा नफरत और बदले की आग में इस प्रकार जलने लगते है की कब हम मानवता तक भूल जाते है हमें खुद ही पता नहीं चलता । कई बार हम उन उग्रवादी और कट्टरपंथी संगठनो तक से जुड़ जाते है जो की धार्मिक उन्माद के नाम पर निर्दोष बच्चो तक से हिंसा कराने में नहीं चूकते..!
फिर हम युवा ये भी कहने लगते है उन्होंने भी तो हमारे घर जलाये थे – हमने तो बस जबाब दिया है । लेकिन हम ये भूल जाते है की जबाब उनको नहीं मिलती जिन्होंने ऐसा किया हो बल्कि हजारो निर्दोष बच्चो को , महिलाओ को और बुढो को जिनका इनसे दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता..!
कई बार ऐसे काम पोलिटिकल पार्टी भी करने लगती है , ताकि समाज के बिच तनाव पैदा हो और उसे किसी एक वोट बैंक का लाभ मिले..! नफरत इतनी भर जाती है है की कब हम अपने देश में ही दरार पैदा करने लगते है पता ही नहीं चलता..!
और हम कई बार इन सब के चक्कर में आकर ये तो भूल ही जाते है की हम नफरत में कभी भी किसी समाज , देश या मानवता की भलाई नहीं कर सकते..!
हमारे देश में अनेक भाषा है , अनेक रंग है..!!

Friday, March 4, 2016

कभी कभी तो लगता था कि कन्हैया का इस्तेमाल हुआ है वो खुद देशद्रोही मानसिकता नहीं रखता..!

कभी कभी तो लगता था कि कन्हैया का इस्तेमाल हुआ है वो खुद देशद्रोही मानसिकता नहीं रखता..!
पर जेल से बहार निकलने के बाद का उसका पूरा भाषण सुन कर मुझे पूरा यकीन हो गया है की वो देशद्रोही मानसिकता रखता है..! खासकर जब उसने ये कटाक्ष किया "क्या भारत ने किसी पर कब्ज़ा किया हुआ है " और बाद में ओमर खालिद और उसके साथियो की वकालत की..!
उसकी माँ ने जो उसे सलाह दी शायद अभी तक उस तक पहुंची नहीं ' बेटा सावधान रहो , दोस्त भी गद्दार हो सकता है" पर माँ को क्या पता की उसका बेटा ही अपनी गरीबी का बदला भारत से लेने के लिए देश से गद्दारी करने पर उतारू है..!
कन्हैया जो देश की गरीबी और अन्य समस्याओ से आज़ादी चाहता है..! उसके लिए उसने इस देश पर एकछत्र 63 साल लगातार राज करने वाली कांग्रेस पार्टी को दोष नही दिया..! बल्कि मात्र २ साल पहले सत्ता में आई मोदी सरकार को कोस रहा है..!
और कन्हैया मेरे दोस्त बंगाल में तुम्हारी लाल सलाम वाली कम्युनिस्ट पार्टी ने लगातार साठ साल राज किया क्या बंगाल को तुम्हारी पार्टी के विचारो ने एक जन्नत बना दिया..?
नाच नाचकर लंगुरो की तरह लच्छेदार भाषणों से सिर्फ ताली बज सकती है..! बीजेपी को कन्हैया और JNU के छात्र सिर्फ इसलिए कोस रहे हैं क्योंकि कई सालों से चली आरही देशद्रोही गतिविधियों का BJP ने पर्दा फाश कर दिया..!!

वामपंथियों के बारे में बाबा साहेब अंबेडकर के विचार

वामपंथ की छात्र राजनीति जब अपने मंचों से देश की भलाई की बात करती है तो बड़ी सुहावनी लगती है। विद्यार्थी कन्हैया भी समानता वाले समाज की सोच रखता है। गरीबों की भलाई की बात करता है। लेकिन जब भी वामपंथियों को शासन की बागडोर मिली है उन्होंने स्टालिन को दोहराने की कोशिश की है। प्रतिरोध की आवाज उठाने वाले हर गले को रेत दिया है। अभिव्यक्ति की आजादी मांगने वालों ने अपने खिलाफ उठे हर सुर को दबा दिया है। पश्चिम बंगाल का इतिहास तो यही बताता है। 35 साल लेफ्ट पार्टियों ने पश्चिम बंगाल पर शासन किया...और बंगाल की धरती को खून से सान दिया...जरा आंकड़ों पर नजर डालिए...
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2009 में पश्चिम बंगाल की विधानसभा में उस समय के मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने खुद बयान दिया था...साल 2009 में 2284 हत्याए हुईं...26 राजनीतिक हत्याएं हुईं...माओवादी गतिविधियों में 134 लोग मारे गए...
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इस बयान के बाद दैनिक स्टेट्समैन कोलकाता में, 16 जुलाई, 2010 को छपी रिपोर्ट पढ़िए..
''A comment on the veracity of these figures is necessary. He has shown political murder as only 26. This figure is suspect. Between 1977 and 1996, the rate of annual political murder on an average was 1473. This figure, giving a 19-year-old trend, cannot suddenly come down to 26. This is a statistical outlier which has to be ignored. In 1997, Buddhadeb Bhattacharjee was severely criticised for admitting such a large figure of political murders. Hence a cautious Home Minister just manipulated the figure which has to be rejected as an outlier.
Anyway to come to a reliable figure of murders between 1997 and 2009, we have taken the annual average of 2284 to come to a total figure of 27,408. Thus between 1977 and 2009 the total number of murder was 28,000 + 27,408 = 55,408. It means an yearly average of 1787, a monthly average of 149 and a daily average of five. In other words, in every four hours and 50 minutes one person was being killed for political reasons in West Bengal. The CPI-M can claim credit that instead of a murder an hour they could limit it to four hour and 50 minutes per murder. What an achievement!''
ये दैनिक स्टेट्समैन की रिपोर्ट है...
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जिस बाबा साहेब अंबेडकर की सामाजिक न्याय प्रणाली की बात वामपंथी कन्हैया कुमार कर रहा है...उन बाबा साहेब अंबेडकर का वामपंथियों के बारे में विचार भी पढ़ लीजिए..
''As regards the labour movement carried on by the Communist Party, there is no possibility of me joining them. I am confirm enemy of the communist, who exploit labour.''
ये वामपंथियों के बारे में बाबा साहेब अंबेडकर के विचार थे। साथी ठीक है कि तुम जेएनयू में बैठकर सामाजिक न्याय की बात करते हो, लेकिन तुम्हारे दल सत्ता में आते ही ऐसा बरताव क्यों करने लगते हैं? तब समतामूलक समाज की अवधारणा दिमाग के कौनसे बंद कोटर में जाकर बैठ जाती है? ठीक है, भारत इसे भी सहन कर लेगा, लेकिन कामरेड तुम अफजल का पाठ पढ़ोगे तो ना जनता सहेगी ना अदालत। तुम्हें बाहर की ज़रा सी हवा क्या लगी पर निकल आए। ठहरो अभी न्याय होने बाकी है। इंतजार करो अदालत के फैसले का

Thursday, March 3, 2016

राष्ट्रवाद की हंसी उड़ाती भाषा को आज़ादी दे दो।

राष्ट्रवाद की हंसी उड़ाती भाषा को आज़ादी दे दो।
जो काश्मीर अलग करे,उस;मंशा पे जेहादी दे दो।
भारत को बर्बाद करे जो;कैसे उसे आज़ादी दे दो??
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हर मज़दूर;ग़रीब;किसान;
अगणित सुखों का शाह होगा।
या साठ वर्ष थी जहाँ दुकान;
उस बंगाल जैसा तबाह होगा।
ख़ून के प्यासे असुरों को, कैसे कह दूँ;खादी दे दो?
भारत बर्बाद करे जो;अरे!कैसे उसे आज़ादी दे दो?
...................
पीते हैं शान से,कहने वालों!
शाही माँद में; ढहने वालों!
बेपेंदे के लोटे हो तुम !
भावों से खोटे हो तुम।
ऐयाशी इस्लाम क़ुबूले।
अपना चारों धाम भूले।
बहत्तरों का कल्पवास;इनको हे बग़दादी! दे दो।
पर तुम जैसे पिशाचों को,कैसे कह दूँ;खादी दे दो?
भारत को बर्बाद करे,जो;कैसे उसे आज़ादी दे दो?
...................

Wednesday, March 2, 2016

मैं नीतियों को नहीं नीयत को प्राथमिकता देता हूँ

कन्हैया का लाइव भाषण सुनने का मन नहीं था लेकिन हर न्यूज़ चैनल उसे कवरेज देते हुए कृतार्थ हो रहा है सिवाय जीन्यूज़ के।
सोचा देख ही लें कि इस देश में जन्मे द लाल सलाम अफ़जल गैंगिया कीटाणु की बोली में क्या है जो जेएनयू के गंवारों को भाता है। तो सुना; फिर मुझे समझ आया कि इन लोगों को संघ से या मोदी से शिक़ायत नहीं।
इनका सीधा कान्सेप्ट है कि जो भारत का सिस्टम है या सिस्टम का सिरमौर है;उसको पॅावरफुल बताकर उसे देश की; व्यक्तियों की;समाज की सभी कमियों का दोषी साबित करना इनका एकमात्र काम है।
हमारा मन टटोलिए तो आप पाएंगे कि आपकी रोजमर्रा की जो अनसुलझी समस्याएं हैं।उसका जिम्मेदार हम कभी ख़ुद को या कभी क़िस्मत को मानते हैं और इसलिए संघर्ष करते हैं या शिरडी फिरडी में जाकर मत्था टेकते हैं।कभी कभी तो निम्मल बााबा;कभी दरगाह तो कभी मंदिर नहीं तो कोई पण्डित पकड़ लेते हैं।हमारी समस्याएं फिर भी बनी रहती हैं क्योंकि
समस्या: जीवनस्य उपलब्धिम्।
मगर हम परेशान हैं तो लाल सलाम जैसे आवारागर्द जब हमें बताते हैं कि न तुम्हारी समस्या की वजह क़िस्मत है;न कि तुम।बल्कि तुम्हारी समस्या की असली वजह तो सरकार है।समाज के उच्च वर्ग के लोग हैं।
तुम्हें ग़रीबी;या दलित;पिछड़ी जाति की वजह से यह सामाजिक अन्याय झेलना पड़ता है।तब हमें अनायास ही अपनी नाकामियों का ठीकरा फोड़ने के लिए विशाल सरकारी सिर मिल जाता है।हमें लगता है कि हाँ!अब बिल्कुल ठीक है।अगर हम अमीर नहीं तो कोई और भी अमीर कैसे हो गया।यह सिस्टम ही गड़बड़ है।अब यह हमारी कमी थोड़े ही है।
हालांकि यथार्थ यह है कि कोई भी सिस्टम बना लो थोड़ा बहुत नाइंसाफी तो रहती ही है।हम लोकतंत्र में जितना कम से कम नाइंसाफी हो सकती है;उसमें जी रहे हैं।
मगर फिर भी भ्रष्टाचार;अनाचार हमें ग़ुस्सा दिलाता है।
उसी ग़ुस्से में यह लाल सलाम वाले अपरिपक्व लोग अपना बदबूदार मिट्टी का तेल डालकर उसको भड़काने चले आते हैं।
इस भड़की हुई आग का फ़ायदा या तो सरकार बनाने में आता है नहीं तो मज़ा तो आता ही है।ऐसे लोग उस खलनायक की तरह होते हैं जो सत्ता नामक नायिका को धमकाते हैं कि तू मेरी न हुई तो तुझे और किसी की भी न होने दूँगा।
यदि किसी परिवार में चार बेटे हैं और रिश्तेदारों से कोई सबसे जलकुकड़ी औरत मेहमान बनकर आए तो वो इन चारों भाइयों में आग लगा देती है कि तुम्हारे पिता तो तुम्हें चाहते ही नहीं हैं बल्कि छोटे को ज़्यादा चाहते हैं;मझले को या बड़े को अधिक चाहते हैं।
भाईयों!
पोस्ट लम्बी न हो इसलिए इतने उदाहरण के साथ बात समाप्त करूँगा और कहूंगा कि भड़काना ;वैमनस्य पैदा करना क्रांति नहीं है जो ऐसा समझाते हैं या समझते हैं वो अपने साथ अपने देश के भी दुश्मन हैं।
कम्युनिस्ट विचारधारा हिंसा की हवि के बिना यज्ञफल दे ही नहीं सकती अत: आप सभी से निवेदन है कि इन देश के ग़द्दारों या अपरिपक्व नौजवानों की बात को सिरे से ख़ारिज करते हुए जेएनयू का बॅायकाट करें।
अगर आप कम्पनी चलाते हैं तो इन्हें नौकरी न दें।अगर यह दुकान चलाते हैं तो इनकी दुकान से सामान न लें।अगर ये समाज में कोई भी समाज विरोधी आयोजन करते हैं।पुलिस में शिकायतें कर उसे बन्द कराएँ और संघ के लोगों से अनुरोध है कि बुद्धिजीवी लोगों को अधिक से अधिक तैयार करें जिससे समाज में जागरूकता आए और मुसलमान के प्रति घृणा का आग्रह त्याग दें।जो राष्ट्रवाद के साथ हो वो चाहे किसी भी मज़हब का हो उसे अपना सेनानी बनाएँ।
देश को बचाना अब सत्ता में बने रहने से अधिक ज़रूरी अब..........
मैं नीतियों को नहीं नीयत को प्राथमिकता देता हूँ।
जय हिंद॥

काँग्रेस अपनी क़ब्र खोद खोदकर इतना गहरा कर देना चाहती है कि क़ानून के लम्बे हाथ भी उस तक ना पहुँच सकें

अमित शाह और मोदी को फँसाने के लिए चिदंबरम ने काँग्रेस आलाकमान के कहने पर इशरत जहाँ को आतंकी होने के तमगे से बरी करने संबंधी खुलासों के बाद जो घमासान देखने को मिल रहा है उससे पता चलता है कि बेशर्मी राजनेताओं के घर की लौंडी है।ये लोग तो बेशर्मी के माईबाप लोग हैं।
अगर वो लड़की आतंकवादी थी और चिदंबरम ने उसे मासूम साबित करने की क़ोशिश की तब तो मोदी से राजनीतिक दुश्मनी निभाने के लिए देश के दुश्मनों को पाक़साफ़ बताने का चिदंबरम ने जो घृणित अपराध किया है;उसको (देशभक्त जनता)कभी क्षमा नहीं कर सकती है।
हालांकि जिन अधिकारियों ने खुलासा किया है उस पर विश्वास न करने का सवाल ही नहीं है।
साथ ही टेलीविजन बहस में कांग्रेस के प्रवक्ताओं का बार बार इशरत के इनकाउन्टर को फर्जी बताने पर ज़ोर रहा।वो अधिकारियों को फर्जी नहीं कह पाए और न ही चिदंबरम को बचाने में कोई रुचि दिखाई।इससे स्पष्ट है कि चिदंबरम का दोष वो परोक्ष रूप से क़ुबूल कर रहे हैं।लेकिन उन्हें पूरा भरोसा है कि इशरत इनकाउन्टर फर्जी साबित हो जाए तो अमित शाह की काली और मोदी की सफ़ेद दाढ़ी को फाँसी दे सकें।
जबकि फ़ेक इनकाउन्टर होने की दशा में भी जनता को कुछ ग़लत नहीं लगेगा;क्योंकि वो आतंकी थी।
अतएव काँग्रेस अपनी क़ब्र खोद खोदकर इतना गहरा कर देना चाहती है कि क़ानून के लम्बे हाथ भी उस तक ना पहुँच सकें।कोई इन लोगों को बताओ कि मरने के बाद लाश के ऊपर कोई डण्डा नहीं चलाया जाता।
आइए शोरोगुल गांधी जी के भाषण को सुनकर कपिल शर्मा की रेटिंग कम कर दें ताकि इन अभिनेताओं को पता चले कि नेताओं में भी कुछ कम नहीं हैं।
नेताओं में नायक भी है;खलनायक भी हैं और विदूषक भी।

Tuesday, March 1, 2016

मोदीजी! पिछले दिनों देशद्रोहियों की हरक़तों का साथ विपक्ष द्वारा देने की वजह से मेरे पास कोई चारा नहीं बचा कि आपको छोड़कर किसी और का समर्थन करूँ।

मोदीजी!
पिछले दिनों देशद्रोहियों की हरक़तों का साथ विपक्ष द्वारा देने की वजह से मेरे पास कोई चारा नहीं बचा कि आपको छोड़कर किसी और का समर्थन करूँ।
लेकिन मध्यम वर्ग को बार बार टैक्सासुर के ज़रिए जो ख़ूनचूसाई आपने शुरू की है;उसका अन्त होता नहीं दिखता।आप लोगों को हर जब तब सर्विस टैक्स बढ़ाने में मज़ा आता है।आप को सच्चा करदाता (भले ही मजबूर) ही पकड़ में आ रहा है।सत्ता में आने से पहले आप जनता की ग़रीबी बढ़ने के पीछे एक वजह मानते थे;वर्तमान टैक्स प्रणाली।हम कमाते हैं तो टैक्स भरते हैं।हम कुछ भी ख़रीदते हैं तो टैक्स भरते हैं।हम अब पीपीएफ या ईपीएफ पर जो बुढ़ापे की सुरक्षात्मक राशि होती है;आप उस पर भी टूट पड़े।
आप अपनी विचारधारा से पलटी मार चुके हैं।आप जिस मध्यम वर्ग का हाथ पकड़ कर ऊपर आए हैं।आज उसको ही चूस लेना चाहते हैं।अब आप किसानों और ग़रीबों तथा उच्च व्यापारी वर्ग की सरकार दिखना चाहते हैं।
मैं सोचता हूँ कि कांग्रेस से आप कैसे अलग हो?तो नीतियों में कुछ भी अलग नहीं लगते हैं।आप सोचते हैं कि इन्हीं नीतियों से देश का भला होगा तभी सरकार का ख़जाना और उच्च व्यापारी वर्ग की संपत्ति तो बढ़ाते जा रहे हो।लगता है;मध्यम वर्ग आपके लिए मायने नहीं रखता;उसे जिस ख़र्चों के लिए आप हतोत्साहित कर रहे हो।उनको कम करने के बाद देखते हैं कितना ख़जाना बढ़ता है? आप पिंक रिवोल्यूशन का मज़ाक उड़ाते रहे।लेकिन भारत सरकार का ख़जाना पशुओं का क़त्ल करवाकर भरते रहे।बजट तो आपका निश्चित ही हमारी तात्कालिक लाभों के लिहाज से बेकार है।
लेकिन आप ये ख़जाना कोई अपने जेब में तो डाल नहीं रहे फिर मुझे बुरा क्यों लग रहा है क्योंकि मैं स्व अर्थ में इसे अच्छा नहीं कह सकता।मगर ये सारा धन भारत सरकार की जेब में जा रहा है जिसकी देशभक्ति में हम अपने से बेहतरीन किसी को नहीं कहते।कभी कभी तो देशभक्ति का सर्टिफ़िकेट भी बाँटते हैं।
अब जब देश का ख़जाना भरना ज़रूरी होगा तभी तो मोदीजी!आप इस तरह का मनविरोधी बजट ला रहे होंगे।अगर भारत को सैन्य बल मजबूत करना है तो धनबल से ही हो सकता है।सभी राष्ट्रीय लाभकारी योजनाओं को सुचारु रूप से चलाना है तो भी धन चाहिए।
आपातकाल युद्ध या परमाणु शक्ति प्रयोगों सभी के लिए अधिकाधिक धन चाहिए।आपदाओं से निबटने ;सड़कों से गाँव -शहर जोड़ने जैसे तमाम कामकाज के लिए धन चाहिए।शायद जेएनयू कांड न होता तो मैं इस रूख़ को न समझ पाता।देश को पोलियो ग्रस्त बनाने वालों का रोना देखकर यही लगता है कि तुम पर भरोसा रखूँ।
क्योंकि जैसे समन्दर में जहाज के पंछी की हालत होती है;हम जनता का वही हाल है और मोदी वो जहाज हो तुम।
हम उड़कर समन्दर पर मँडरा सकते हैं लेकिन पंखों के थक जाने के बाद डूबने से बचने के लिए जहाज पर ही आना होगा।
मगर;फिर भी यही कहूंगा कि बजट पसंद नहीं आया।
फिर भी लगे रहो मोदीजी!जनता तुम्हें छोड़कर देशद्रोहियों के समर्थकों की तरफ़ नहीं जाने वाली।
तुम्हीं सुखन हो;तुम्हीं सितम हो।
तुम्हीं उजियारा;तुम्हीं तो तम हो।

ये जो मोदी विरोध का नशा है ना...बड़ा जहरीला होता है...!

हुजूर-ए-आला ये जो मोदी विरोध का नशा है ना...बड़ा जहरीला होता है जी...प्यार, मोहब्बत,भाईचारे,अमन की बाते करने वाले तथाकथित ह्यूमनवादी कब इस जहर की चपेट में आकर इस समाज के लिये जहरीले नाग बने जा रहे हैं इन्हें खुद नहीं समझ आ रहा।
देशद्रोही और देशभक्ति के सर्टिफिकेट पर रं रो करने वालों की दोगलईती देखो साहेब....सिर्फ भाजपा को सपोर्ट करने भर से ही ये खुद एक सेकंड में लोगों को संघी का सर्टिफिकेट बांटने से नहीं चूकते।
इस फॉर्मूले से तो 2014 लोस चुनावों में भाजपा को वोट देकर भारी बहुमत से उसकी सरकार बनाने वाली देश की आधी जनता इनके लिये संघी हो गई...और संघियों से इनकी नफरत जगजाहिर है.. फिर देश की आधी जनता मतलब संघियों से नफरत करने वाले खुद किस मुंह से भाईचारे की बात करतें हैं?
श्री श्री रविशंकर जी वर्तमान में भारत के सिंगल ऐसे आध्यात्मिक गुरु हैं जिनकी मैं दिल से इज्जत करता हूँ...ये हमेशा प्यार मुहब्बत भाईचारे की बात करतें हैं...इन्होंने आज तक कभी नफरत फैलाने वाला कोई विवादित बयान नहीं दिया....ना ही ये कभी किसी भी बात के लिये विवादों में ही आये...लेकिन सिर्फ मोदीजी को सपोर्ट करना इतना बड़ा गुनाह हो गया की एक टुच्ची सी वजह से खुद को मानवतावादी कहने वाले दोगले इनके चरित्रहनन पूरे जी जान से जुट गये।
हम पर असहिष्णु,अंधभक्त का आरोप लगाने से पहले इन्हें खुद के गिरेबान में झाँककर देखना चाहिये की सिर्फ विपरीत विचारधारा होने की वजह से दिन भर भक्त,अंधभक्त, संघी का सर्टिफिकेट बाँटा करते हैं......खुद विपरीत विचारधारा को स्वीकार करने की हिम्मत नहीं और हमको असहिष्णु बोलते हैं...गजब की कुत्तई है यार।
अभी तक जिस कन्हैया को खुद का बाप बनाये घूम रहे थे उसी बाप ने सेना को बलात्कारी बोल दिया...अब बाप की बात से लौंडा तो सहमत होगा ही...है की नही?
मतलब अब तुम उसी सेना को बलात्कारी कहो जिसकी वजह से सुरक्षित घर में बैठे बुद्धिजीवीयापा छांट रहे हो फिर इसी बात पर हम तुमको देशद्रोही कह दे तो हम असहिष्णु, अंधभक्त संघी हो गये?
अभी वो एक जो फरार हो गया विजय माल्या...कॉंग्रेस के राज में 9000 करोड़ का लोन लिया...कोई पुछत्तर नहीं था...अभी भाजपा की सरकार बनते ही पूछताछ हुई...खुद को फंसता देख देश छोड़कर फरार हो गया....अब इसके लिये भी इल्जाम मोदी पर?
माने कॉंग्रेस होती तो 9000 करोड़ का लोन और दे देती....किसी को कानोकान खबर ना लगती...मिडीया में कोई बवाल ना होता....सब कुछ वैसे ही चलता रहता तब तो बढ़िया था लेकिन मोदी ने उसकी पूँछ पर लात रख दी तो मोदी बुरे हो गये? मतलब अब सच्चाई सामने लाना भी गुनाह हो गया?
अभी वो भागा नहीं की बगैर किसी सुबूत के सरकार पर उसको भगाने का इल्जाम लगा दिया...अबे कुछ दिन इन्तजार तो कर लेते...अगर कोई कार्यवाही ना होती तो हम भी तुमसे सहमत होते...पर तुम तो मोदी विरोध में इतने अंधे हो चुके हो की बिना सोचे समझे तुरन्त आरोप फेंकने को तैयार रहते हो...अबे कुछ तो सबर चाटो...
दिल में भरे मोदी से नफरत का जहर निकाल नहीं पा रहे और हमे भाईचारे का ज्ञान बाँटते हैं।
खुद नफरत का बीज बोकर हम पर जहर की खेती का आरोप लगाते हैं...भाई ताली एक हाँथ से नहीं बजती.....दूसरों से जैसे व्यवहार की अपेक्षा करते हो पहले खुद वैसा व्यवहार करना सीखो...
सबको पता है सांप को चाहे कितना भी दूध पिलाओ लेकिन साला वो काटेगा जरूर.....जाओ पहले खुद के जहर भरे दांत तोड़कर आओ फिर अगले से दूध पिलाने की उम्मीद करना।

कहीं रवीश कुमार बौद्धिक आतंकवाद तो नहीं फैला रहे हैं …

एक महिला पत्रकार के मन में उठा सवाल, कहीं रवीश कुमार बौद्धिक आतंकवाद तो नहीं फैला रहे हैं …
Kanhaiya-Kumar
लेख -- ‘रवीश जी आपके इस कार्यक्रम में बहुत आवाजों को जगह मिली लेकिन कुछ आवाजे आपने छोड़ दी। मैं यहां केवल उन आवाजों का जिक्र करना चाहती हूं।’

सच में रवीश जी कमाल कर दिया आपने, रिपोर्टिंग और एंकरिंग का एक नया आयाम छूने के लिए आपने जो कोशिश की है इसे इलेक्ट्रॉनिक जर्नलिज्म में आने वाली पीढ़िया भी भुला नहीं पाएंगी। इस अंधेरे ने हमें आवाजे सुनवाई ऐसी आवाजे जो हमें उद्वेलित करती हैं, विवेक खोने को मजबूर करती हैं, वो सारी आवाजे जो यह साबित करती हैं कि देशद्रोह का विरोध करने वाले हम सब भारतवासी और चंद न्यूज चैनल्स गलत हैं और आप सही। कितनी आसानी से आपने अपनी बात हम पर सबके मन में बैठा दी और साफगोई और निष्पक्ष होने की वाह-वाही भी लूट ली।
रवीश जी आपके इस कार्यक्रम में बहुत आवाजों को जगह मिली लेकिन कुछ आवाजे आपने छोड़ दी। मैं यहां केवल उन आवाजों का जिक्र करना चाहती हूं।
आपके कार्यक्रम में उन कुछ लोगों की आवाजें तो थी जिन्होंने कन्हैया को बिना जांच पूरी हुए देशद्रोही साबित कर दिया, लेकिन वो आवाजें कहां थी जिन्होंने बिना जांच पूरी हुए कन्हैया को निर्दोष करार दे दिया और जिनमें एक आवाज आपकी भी है।
आपने उन आवाजों की बात तो की जो यह कहती हैं कि कन्हैया की रिहाई की मांग करने वाले केवल लेफ्ट छात्र नहीं, बल्कि अन्य भी हैं, लेकिन वो आवाजें क्यों नहीं सुनवाई जो कहती है कि कन्हैया की गिरफ्तारी की मांग करने वाले केवल एबीवीपी के ही नहीं बल्कि सामान्य लोग भी हैं।
आपने वकीलों की आवाजें सुनवाई जो वंदे मातरम के नारे लगा रहे थे, और देशद्रोहियों को गालियां दे रहे थे लेकिन उमर खालिद समेत बहुत से जेएनयू छात्रों के उन नारों की आवाज कहा थीं जिनमें वो देश की बर्बादी, और भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे नारे लगा रहे थे और जिसे आपने डॉक्टर्ड टेप कह दिया (बिना जांच के)।
आपके कार्यक्रम में उन आवाजों को जगह मिल गई जो कहते हैं कि यह देशद्रोह नहीं बल्कि बीजेपी और आरएसएस बिग्रेड द्वारा किया जा रहा भगवा सेफ्रोनाइजेशन का मामला है, लेकिन उन आवाजों का क्या हुआ जो कहते हैं कि कांग्रेस और वामपंथी विचारधारा के लोग अपने फायदे के लिए देशद्रोह जैसे मामले पर दोषी छात्रों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
आपके कार्यक्रम में जेएनयू टीचर्स की आवाजों को जगह मिली लेकिन कर्नल जीडी बख्शी के आंसू क्यों नहीं सुनाई दिए।
आपने उन चंद बीजेपी ट्वीट्स को जगह दी जो राजदीप सरदेसाई और बरखा को गाली देते हैं और कुछ उन ट्वीट्स को भी, जो उनकी रिपोर्टिंग को सही ठहराते हैं, लेकिन वो हजारों ट्वीट्स कहा हैं, जो सामान्य लोगों के थे और जो एनडीटीवी की रिपोर्टिंग, बरखा, राजदीप सरदेसाई सबके द्वारा की गई रिपोर्टिंग को सिरे से नकारते हैं।
आवाजें तो और भी बहुत हैं लेकिन अगर उनको भी जगह मिल जाती तो शायद आप अपने मनसूबों में कामयाब नहीं हो पाते, जो हर हाल में बीजेपी का विरोध करना चाहते हैं चाहे वो देशद्रोह की कीमत पर ही क्यों ना हो। और फिर हमारी सरकार भी सही समय पर सही कार्रवाई करना नहीं जानती तो सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए। एक व्यक्ति की भूल हमेशा ही दूसरे के लिए फायदे का सबब बनती है, जैसा कि इस मामले में हुआ, सरकार की ढिलाई, आप जैसे पत्रकारों को अपनी बातें मनवाने का अवसर दे रही है तो उठाईए अवसर का लाभ।
मेरी चिंता तो बस इतनी है कि इस पूरे मामले ने एक नए तरह के आतंकवाद को जन्म दिया है जिसे कहते हैं बौद्धिक आतंकवाद (इंटलेक्चुल टेररिज्म)… जो सीधे लोगों की सोच पर प्रहार करता है, ना गोली, ना खून, ना दंगा, ना खर्चा… और रिजल्ट- सौ फीसदी। देश के अंदर ही पनपने वाले इस आतंकवाद के चलते देश को दूसरे आतंकवादियों की तो जरूरत ही नहीं रही है। बहुद जल्दी आप और आप जैसे लोग अन्य देश विरोधी ताकतों का मोहरा बनेंगे, इस आतंकवाद को फैलाने और भारत और भारतीयता की जड़ को हिलाने के लिए…।
(फेसबुक: पत्रकार चित्रा गुप्ता की फेसबुक वॉल से )