महाशय, बात जिद्दीपन या अड़ियल रवैये की नहीं है। हम तो सनातन धर्म को मानने वालों में से है...हम भला प्रकृति को कैसे नुकसान पहुंचाएंगे। सनातन धर्म में तो गाय से लेकर नाग तक को पूजा जाता है, पुष्प से लेकर वृक्ष तक को पवित्र माना जाता है, धरती माँ से लेकर आसमान तक सभी को आदर दिया जाता है...यही वो धर्म है जो प्रकृति में मौजूद सभी वस्तुओ का आदर करना सीखाता है। इस धर्म में तो अग्नि, वायु व जल तक को देवता का स्थान दिया गया है।
बात है आपकी एकतरफा उद्दंडता की, आप एक बार निष्पक्ष तो होइए। हर त्यौहार चाहे वो होली हो या ईद, क्रिसमस हो या पोंगल...सब में कहीं का कहीं प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग व दोहन होता ही है। बाकी पर्वो पर आपकी चुप्पी और सिर्फ होली दीपावली पर पानी बचाओ व वायु प्रदुषण का रोना हमें अंदर तक कचोटता है। बुरा ना मानिए पर ईद में बकरो की हलाली के बाद उस स्थान को साफ़ करने के लिए हज़ारो लीटर पानी का व्यय होता है, क्रिसमस में बंटने वाली शराब को बनाने के लिए लाखों लीटर पानी लगता है, होली में भी करोड़ो लीटर पानी बह जाता है। तो जरुरत है सबके साथ की, एकतरफा बात से ना हल निकलेगा ना सुनवाई होगी।
कमरतोड़ महंगाई के दौर में पटाखे फोड़ना कई गुना कम हो गया है, भागमभाग भरी ज़िन्दगी में होली खेलना भी कई गुना कम हुआ है..फिर भी आपको पर्वो से आपत्ति है। वैसे भी होली में उतना ही पानी का इस्तेमाल होता है जितना जरुरी होता है, पागलो की तरह पानी कोई ना बहाता है। यकीन मानिए सनातन धर्म वाले कभी प्रकृति का अहित नहीं चाहते, आप बस एक बार निष्पक्ष होकर सभी धर्म वालो से पानी, वायु के अपव्यय को रोकने की गुज़ारिश करे...इस मुहीम में सनातन धर्म वाले सबसे आगे ना आए तो कहियेगा। लेकिन हाँ...अगर आप लोग एकतरफा आलोचना व कुंठा निकालेंगे तो आपकी कोई ना सुनेगा। या तो सभी धर्मो को साथ लेकर प्रकृति को बचाने की मुहीम चलाइए अन्यथा अपने विचारो को एक कागज़ में लिख उसकी बत्ती बनाकर अपने स्थान विशेष में डाल लीजिये। नमस्कार !!
बात है आपकी एकतरफा उद्दंडता की, आप एक बार निष्पक्ष तो होइए। हर त्यौहार चाहे वो होली हो या ईद, क्रिसमस हो या पोंगल...सब में कहीं का कहीं प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग व दोहन होता ही है। बाकी पर्वो पर आपकी चुप्पी और सिर्फ होली दीपावली पर पानी बचाओ व वायु प्रदुषण का रोना हमें अंदर तक कचोटता है। बुरा ना मानिए पर ईद में बकरो की हलाली के बाद उस स्थान को साफ़ करने के लिए हज़ारो लीटर पानी का व्यय होता है, क्रिसमस में बंटने वाली शराब को बनाने के लिए लाखों लीटर पानी लगता है, होली में भी करोड़ो लीटर पानी बह जाता है। तो जरुरत है सबके साथ की, एकतरफा बात से ना हल निकलेगा ना सुनवाई होगी।
कमरतोड़ महंगाई के दौर में पटाखे फोड़ना कई गुना कम हो गया है, भागमभाग भरी ज़िन्दगी में होली खेलना भी कई गुना कम हुआ है..फिर भी आपको पर्वो से आपत्ति है। वैसे भी होली में उतना ही पानी का इस्तेमाल होता है जितना जरुरी होता है, पागलो की तरह पानी कोई ना बहाता है। यकीन मानिए सनातन धर्म वाले कभी प्रकृति का अहित नहीं चाहते, आप बस एक बार निष्पक्ष होकर सभी धर्म वालो से पानी, वायु के अपव्यय को रोकने की गुज़ारिश करे...इस मुहीम में सनातन धर्म वाले सबसे आगे ना आए तो कहियेगा। लेकिन हाँ...अगर आप लोग एकतरफा आलोचना व कुंठा निकालेंगे तो आपकी कोई ना सुनेगा। या तो सभी धर्मो को साथ लेकर प्रकृति को बचाने की मुहीम चलाइए अन्यथा अपने विचारो को एक कागज़ में लिख उसकी बत्ती बनाकर अपने स्थान विशेष में डाल लीजिये। नमस्कार !!
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