कन्हैया का लाइव भाषण सुनने का मन नहीं था लेकिन हर न्यूज़ चैनल उसे कवरेज देते हुए कृतार्थ हो रहा है सिवाय जीन्यूज़ के।
सोचा देख ही लें कि इस देश में जन्मे द लाल सलाम अफ़जल गैंगिया कीटाणु की बोली में क्या है जो जेएनयू के गंवारों को भाता है। तो सुना; फिर मुझे समझ आया कि इन लोगों को संघ से या मोदी से शिक़ायत नहीं।
इनका सीधा कान्सेप्ट है कि जो भारत का सिस्टम है या सिस्टम का सिरमौर है;उसको पॅावरफुल बताकर उसे देश की; व्यक्तियों की;समाज की सभी कमियों का दोषी साबित करना इनका एकमात्र काम है।
हमारा मन टटोलिए तो आप पाएंगे कि आपकी रोजमर्रा की जो अनसुलझी समस्याएं हैं।उसका जिम्मेदार हम कभी ख़ुद को या कभी क़िस्मत को मानते हैं और इसलिए संघर्ष करते हैं या शिरडी फिरडी में जाकर मत्था टेकते हैं।कभी कभी तो निम्मल बााबा;कभी दरगाह तो कभी मंदिर नहीं तो कोई पण्डित पकड़ लेते हैं।हमारी समस्याएं फिर भी बनी रहती हैं क्योंकि
समस्या: जीवनस्य उपलब्धिम्।
मगर हम परेशान हैं तो लाल सलाम जैसे आवारागर्द जब हमें बताते हैं कि न तुम्हारी समस्या की वजह क़िस्मत है;न कि तुम।बल्कि तुम्हारी समस्या की असली वजह तो सरकार है।समाज के उच्च वर्ग के लोग हैं।
तुम्हें ग़रीबी;या दलित;पिछड़ी जाति की वजह से यह सामाजिक अन्याय झेलना पड़ता है।तब हमें अनायास ही अपनी नाकामियों का ठीकरा फोड़ने के लिए विशाल सरकारी सिर मिल जाता है।हमें लगता है कि हाँ!अब बिल्कुल ठीक है।अगर हम अमीर नहीं तो कोई और भी अमीर कैसे हो गया।यह सिस्टम ही गड़बड़ है।अब यह हमारी कमी थोड़े ही है।
हालांकि यथार्थ यह है कि कोई भी सिस्टम बना लो थोड़ा बहुत नाइंसाफी तो रहती ही है।हम लोकतंत्र में जितना कम से कम नाइंसाफी हो सकती है;उसमें जी रहे हैं।
मगर फिर भी भ्रष्टाचार;अनाच ार हमें ग़ुस्सा दिलाता है।
उसी ग़ुस्से में यह लाल सलाम वाले अपरिपक्व लोग अपना बदबूदार मिट्टी का तेल डालकर उसको भड़काने चले आते हैं।
इस भड़की हुई आग का फ़ायदा या तो सरकार बनाने में आता है नहीं तो मज़ा तो आता ही है।ऐसे लोग उस खलनायक की तरह होते हैं जो सत्ता नामक नायिका को धमकाते हैं कि तू मेरी न हुई तो तुझे और किसी की भी न होने दूँगा।
यदि किसी परिवार में चार बेटे हैं और रिश्तेदारों से कोई सबसे जलकुकड़ी औरत मेहमान बनकर आए तो वो इन चारों भाइयों में आग लगा देती है कि तुम्हारे पिता तो तुम्हें चाहते ही नहीं हैं बल्कि छोटे को ज़्यादा चाहते हैं;मझले को या बड़े को अधिक चाहते हैं।
भाईयों!
पोस्ट लम्बी न हो इसलिए इतने उदाहरण के साथ बात समाप्त करूँगा और कहूंगा कि भड़काना ;वैमनस्य पैदा करना क्रांति नहीं है जो ऐसा समझाते हैं या समझते हैं वो अपने साथ अपने देश के भी दुश्मन हैं।
कम्युनिस्ट विचारधारा हिंसा की हवि के बिना यज्ञफल दे ही नहीं सकती अत: आप सभी से निवेदन है कि इन देश के ग़द्दारों या अपरिपक्व नौजवानों की बात को सिरे से ख़ारिज करते हुए जेएनयू का बॅायकाट करें।
अगर आप कम्पनी चलाते हैं तो इन्हें नौकरी न दें।अगर यह दुकान चलाते हैं तो इनकी दुकान से सामान न लें।अगर ये समाज में कोई भी समाज विरोधी आयोजन करते हैं।पुलिस में शिकायतें कर उसे बन्द कराएँ और संघ के लोगों से अनुरोध है कि बुद्धिजीवी लोगों को अधिक से अधिक तैयार करें जिससे समाज में जागरूकता आए और मुसलमान के प्रति घृणा का आग्रह त्याग दें।जो राष्ट्रवाद के साथ हो वो चाहे किसी भी मज़हब का हो उसे अपना सेनानी बनाएँ।
देश को बचाना अब सत्ता में बने रहने से अधिक ज़रूरी अब........ ..
मैं नीतियों को नहीं नीयत को प्राथमिकता देता हूँ।
जय हिंद॥
सोचा देख ही लें कि इस देश में जन्मे द लाल सलाम अफ़जल गैंगिया कीटाणु की बोली में क्या है जो जेएनयू के गंवारों को भाता है। तो सुना; फिर मुझे समझ आया कि इन लोगों को संघ से या मोदी से शिक़ायत नहीं।
इनका सीधा कान्सेप्ट है कि जो भारत का सिस्टम है या सिस्टम का सिरमौर है;उसको पॅावरफुल बताकर उसे देश की; व्यक्तियों की;समाज की सभी कमियों का दोषी साबित करना इनका एकमात्र काम है।
हमारा मन टटोलिए तो आप पाएंगे कि आपकी रोजमर्रा की जो अनसुलझी समस्याएं हैं।उसका जिम्मेदार हम कभी ख़ुद को या कभी क़िस्मत को मानते हैं और इसलिए संघर्ष करते हैं या शिरडी फिरडी में जाकर मत्था टेकते हैं।कभी कभी तो निम्मल बााबा;कभी दरगाह तो कभी मंदिर नहीं तो कोई पण्डित पकड़ लेते हैं।हमारी समस्याएं फिर भी बनी रहती हैं क्योंकि
समस्या: जीवनस्य उपलब्धिम्।
मगर हम परेशान हैं तो लाल सलाम जैसे आवारागर्द जब हमें बताते हैं कि न तुम्हारी समस्या की वजह क़िस्मत है;न कि तुम।बल्कि तुम्हारी समस्या की असली वजह तो सरकार है।समाज के उच्च वर्ग के लोग हैं।
तुम्हें ग़रीबी;या दलित;पिछड़ी जाति की वजह से यह सामाजिक अन्याय झेलना पड़ता है।तब हमें अनायास ही अपनी नाकामियों का ठीकरा फोड़ने के लिए विशाल सरकारी सिर मिल जाता है।हमें लगता है कि हाँ!अब बिल्कुल ठीक है।अगर हम अमीर नहीं तो कोई और भी अमीर कैसे हो गया।यह सिस्टम ही गड़बड़ है।अब यह हमारी कमी थोड़े ही है।
हालांकि यथार्थ यह है कि कोई भी सिस्टम बना लो थोड़ा बहुत नाइंसाफी तो रहती ही है।हम लोकतंत्र में जितना कम से कम नाइंसाफी हो सकती है;उसमें जी रहे हैं।
मगर फिर भी भ्रष्टाचार;अनाच
उसी ग़ुस्से में यह लाल सलाम वाले अपरिपक्व लोग अपना बदबूदार मिट्टी का तेल डालकर उसको भड़काने चले आते हैं।
इस भड़की हुई आग का फ़ायदा या तो सरकार बनाने में आता है नहीं तो मज़ा तो आता ही है।ऐसे लोग उस खलनायक की तरह होते हैं जो सत्ता नामक नायिका को धमकाते हैं कि तू मेरी न हुई तो तुझे और किसी की भी न होने दूँगा।
यदि किसी परिवार में चार बेटे हैं और रिश्तेदारों से कोई सबसे जलकुकड़ी औरत मेहमान बनकर आए तो वो इन चारों भाइयों में आग लगा देती है कि तुम्हारे पिता तो तुम्हें चाहते ही नहीं हैं बल्कि छोटे को ज़्यादा चाहते हैं;मझले को या बड़े को अधिक चाहते हैं।
भाईयों!
पोस्ट लम्बी न हो इसलिए इतने उदाहरण के साथ बात समाप्त करूँगा और कहूंगा कि भड़काना ;वैमनस्य पैदा करना क्रांति नहीं है जो ऐसा समझाते हैं या समझते हैं वो अपने साथ अपने देश के भी दुश्मन हैं।
कम्युनिस्ट विचारधारा हिंसा की हवि के बिना यज्ञफल दे ही नहीं सकती अत: आप सभी से निवेदन है कि इन देश के ग़द्दारों या अपरिपक्व नौजवानों की बात को सिरे से ख़ारिज करते हुए जेएनयू का बॅायकाट करें।
अगर आप कम्पनी चलाते हैं तो इन्हें नौकरी न दें।अगर यह दुकान चलाते हैं तो इनकी दुकान से सामान न लें।अगर ये समाज में कोई भी समाज विरोधी आयोजन करते हैं।पुलिस में शिकायतें कर उसे बन्द कराएँ और संघ के लोगों से अनुरोध है कि बुद्धिजीवी लोगों को अधिक से अधिक तैयार करें जिससे समाज में जागरूकता आए और मुसलमान के प्रति घृणा का आग्रह त्याग दें।जो राष्ट्रवाद के साथ हो वो चाहे किसी भी मज़हब का हो उसे अपना सेनानी बनाएँ।
देश को बचाना अब सत्ता में बने रहने से अधिक ज़रूरी अब........
मैं नीतियों को नहीं नीयत को प्राथमिकता देता हूँ।
जय हिंद॥
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