एक महिला पत्रकार के मन में उठा सवाल, कहीं रवीश कुमार बौद्धिक आतंकवाद तो नहीं फैला रहे हैं …
Kanhaiya-Kumar
लेख -- ‘रवीश जी आपके इस कार्यक्रम में बहुत आवाजों को जगह मिली लेकिन कुछ आवाजे आपने छोड़ दी। मैं यहां केवल उन आवाजों का जिक्र करना चाहती हूं।’
सच में रवीश जी कमाल कर दिया आपने, रिपोर्टिंग और एंकरिंग का एक नया आयाम छूने के लिए आपने जो कोशिश की है इसे इलेक्ट्रॉनिक जर्नलिज्म में आने वाली पीढ़िया भी भुला नहीं पाएंगी। इस अंधेरे ने हमें आवाजे सुनवाई ऐसी आवाजे जो हमें उद्वेलित करती हैं, विवेक खोने को मजबूर करती हैं, वो सारी आवाजे जो यह साबित करती हैं कि देशद्रोह का विरोध करने वाले हम सब भारतवासी और चंद न्यूज चैनल्स गलत हैं और आप सही। कितनी आसानी से आपने अपनी बात हम पर सबके मन में बैठा दी और साफगोई और निष्पक्ष होने की वाह-वाही भी लूट ली।
रवीश जी आपके इस कार्यक्रम में बहुत आवाजों को जगह मिली लेकिन कुछ आवाजे आपने छोड़ दी। मैं यहां केवल उन आवाजों का जिक्र करना चाहती हूं।
आपके कार्यक्रम में उन कुछ लोगों की आवाजें तो थी जिन्होंने कन्हैया को बिना जांच पूरी हुए देशद्रोही साबित कर दिया, लेकिन वो आवाजें कहां थी जिन्होंने बिना जांच पूरी हुए कन्हैया को निर्दोष करार दे दिया और जिनमें एक आवाज आपकी भी है।
आपने उन आवाजों की बात तो की जो यह कहती हैं कि कन्हैया की रिहाई की मांग करने वाले केवल लेफ्ट छात्र नहीं, बल्कि अन्य भी हैं, लेकिन वो आवाजें क्यों नहीं सुनवाई जो कहती है कि कन्हैया की गिरफ्तारी की मांग करने वाले केवल एबीवीपी के ही नहीं बल्कि सामान्य लोग भी हैं।
आपने वकीलों की आवाजें सुनवाई जो वंदे मातरम के नारे लगा रहे थे, और देशद्रोहियों को गालियां दे रहे थे लेकिन उमर खालिद समेत बहुत से जेएनयू छात्रों के उन नारों की आवाज कहा थीं जिनमें वो देश की बर्बादी, और भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे नारे लगा रहे थे और जिसे आपने डॉक्टर्ड टेप कह दिया (बिना जांच के)।
आपके कार्यक्रम में उन आवाजों को जगह मिल गई जो कहते हैं कि यह देशद्रोह नहीं बल्कि बीजेपी और आरएसएस बिग्रेड द्वारा किया जा रहा भगवा सेफ्रोनाइजेशन का मामला है, लेकिन उन आवाजों का क्या हुआ जो कहते हैं कि कांग्रेस और वामपंथी विचारधारा के लोग अपने फायदे के लिए देशद्रोह जैसे मामले पर दोषी छात्रों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
आपके कार्यक्रम में जेएनयू टीचर्स की आवाजों को जगह मिली लेकिन कर्नल जीडी बख्शी के आंसू क्यों नहीं सुनाई दिए।
आपने उन चंद बीजेपी ट्वीट्स को जगह दी जो राजदीप सरदेसाई और बरखा को गाली देते हैं और कुछ उन ट्वीट्स को भी, जो उनकी रिपोर्टिंग को सही ठहराते हैं, लेकिन वो हजारों ट्वीट्स कहा हैं, जो सामान्य लोगों के थे और जो एनडीटीवी की रिपोर्टिंग, बरखा, राजदीप सरदेसाई सबके द्वारा की गई रिपोर्टिंग को सिरे से नकारते हैं।
आवाजें तो और भी बहुत हैं लेकिन अगर उनको भी जगह मिल जाती तो शायद आप अपने मनसूबों में कामयाब नहीं हो पाते, जो हर हाल में बीजेपी का विरोध करना चाहते हैं चाहे वो देशद्रोह की कीमत पर ही क्यों ना हो। और फिर हमारी सरकार भी सही समय पर सही कार्रवाई करना नहीं जानती तो सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए। एक व्यक्ति की भूल हमेशा ही दूसरे के लिए फायदे का सबब बनती है, जैसा कि इस मामले में हुआ, सरकार की ढिलाई, आप जैसे पत्रकारों को अपनी बातें मनवाने का अवसर दे रही है तो उठाईए अवसर का लाभ।
मेरी चिंता तो बस इतनी है कि इस पूरे मामले ने एक नए तरह के आतंकवाद को जन्म दिया है जिसे कहते हैं बौद्धिक आतंकवाद (इंटलेक्चुल टेररिज्म)… जो सीधे लोगों की सोच पर प्रहार करता है, ना गोली, ना खून, ना दंगा, ना खर्चा… और रिजल्ट- सौ फीसदी। देश के अंदर ही पनपने वाले इस आतंकवाद के चलते देश को दूसरे आतंकवादियों की तो जरूरत ही नहीं रही है। बहुद जल्दी आप और आप जैसे लोग अन्य देश विरोधी ताकतों का मोहरा बनेंगे, इस आतंकवाद को फैलाने और भारत और भारतीयता की जड़ को हिलाने के लिए…।
(फेसबुक: पत्रकार चित्रा गुप्ता की फेसबुक वॉल से )
Kanhaiya-Kumar
लेख -- ‘रवीश जी आपके इस कार्यक्रम में बहुत आवाजों को जगह मिली लेकिन कुछ आवाजे आपने छोड़ दी। मैं यहां केवल उन आवाजों का जिक्र करना चाहती हूं।’
सच में रवीश जी कमाल कर दिया आपने, रिपोर्टिंग और एंकरिंग का एक नया आयाम छूने के लिए आपने जो कोशिश की है इसे इलेक्ट्रॉनिक जर्नलिज्म में आने वाली पीढ़िया भी भुला नहीं पाएंगी। इस अंधेरे ने हमें आवाजे सुनवाई ऐसी आवाजे जो हमें उद्वेलित करती हैं, विवेक खोने को मजबूर करती हैं, वो सारी आवाजे जो यह साबित करती हैं कि देशद्रोह का विरोध करने वाले हम सब भारतवासी और चंद न्यूज चैनल्स गलत हैं और आप सही। कितनी आसानी से आपने अपनी बात हम पर सबके मन में बैठा दी और साफगोई और निष्पक्ष होने की वाह-वाही भी लूट ली।
रवीश जी आपके इस कार्यक्रम में बहुत आवाजों को जगह मिली लेकिन कुछ आवाजे आपने छोड़ दी। मैं यहां केवल उन आवाजों का जिक्र करना चाहती हूं।
आपके कार्यक्रम में उन कुछ लोगों की आवाजें तो थी जिन्होंने कन्हैया को बिना जांच पूरी हुए देशद्रोही साबित कर दिया, लेकिन वो आवाजें कहां थी जिन्होंने बिना जांच पूरी हुए कन्हैया को निर्दोष करार दे दिया और जिनमें एक आवाज आपकी भी है।
आपने उन आवाजों की बात तो की जो यह कहती हैं कि कन्हैया की रिहाई की मांग करने वाले केवल लेफ्ट छात्र नहीं, बल्कि अन्य भी हैं, लेकिन वो आवाजें क्यों नहीं सुनवाई जो कहती है कि कन्हैया की गिरफ्तारी की मांग करने वाले केवल एबीवीपी के ही नहीं बल्कि सामान्य लोग भी हैं।
आपने वकीलों की आवाजें सुनवाई जो वंदे मातरम के नारे लगा रहे थे, और देशद्रोहियों को गालियां दे रहे थे लेकिन उमर खालिद समेत बहुत से जेएनयू छात्रों के उन नारों की आवाज कहा थीं जिनमें वो देश की बर्बादी, और भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे नारे लगा रहे थे और जिसे आपने डॉक्टर्ड टेप कह दिया (बिना जांच के)।
आपके कार्यक्रम में उन आवाजों को जगह मिल गई जो कहते हैं कि यह देशद्रोह नहीं बल्कि बीजेपी और आरएसएस बिग्रेड द्वारा किया जा रहा भगवा सेफ्रोनाइजेशन का मामला है, लेकिन उन आवाजों का क्या हुआ जो कहते हैं कि कांग्रेस और वामपंथी विचारधारा के लोग अपने फायदे के लिए देशद्रोह जैसे मामले पर दोषी छात्रों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
आपके कार्यक्रम में जेएनयू टीचर्स की आवाजों को जगह मिली लेकिन कर्नल जीडी बख्शी के आंसू क्यों नहीं सुनाई दिए।
आपने उन चंद बीजेपी ट्वीट्स को जगह दी जो राजदीप सरदेसाई और बरखा को गाली देते हैं और कुछ उन ट्वीट्स को भी, जो उनकी रिपोर्टिंग को सही ठहराते हैं, लेकिन वो हजारों ट्वीट्स कहा हैं, जो सामान्य लोगों के थे और जो एनडीटीवी की रिपोर्टिंग, बरखा, राजदीप सरदेसाई सबके द्वारा की गई रिपोर्टिंग को सिरे से नकारते हैं।
आवाजें तो और भी बहुत हैं लेकिन अगर उनको भी जगह मिल जाती तो शायद आप अपने मनसूबों में कामयाब नहीं हो पाते, जो हर हाल में बीजेपी का विरोध करना चाहते हैं चाहे वो देशद्रोह की कीमत पर ही क्यों ना हो। और फिर हमारी सरकार भी सही समय पर सही कार्रवाई करना नहीं जानती तो सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए। एक व्यक्ति की भूल हमेशा ही दूसरे के लिए फायदे का सबब बनती है, जैसा कि इस मामले में हुआ, सरकार की ढिलाई, आप जैसे पत्रकारों को अपनी बातें मनवाने का अवसर दे रही है तो उठाईए अवसर का लाभ।
मेरी चिंता तो बस इतनी है कि इस पूरे मामले ने एक नए तरह के आतंकवाद को जन्म दिया है जिसे कहते हैं बौद्धिक आतंकवाद (इंटलेक्चुल टेररिज्म)… जो सीधे लोगों की सोच पर प्रहार करता है, ना गोली, ना खून, ना दंगा, ना खर्चा… और रिजल्ट- सौ फीसदी। देश के अंदर ही पनपने वाले इस आतंकवाद के चलते देश को दूसरे आतंकवादियों की तो जरूरत ही नहीं रही है। बहुद जल्दी आप और आप जैसे लोग अन्य देश विरोधी ताकतों का मोहरा बनेंगे, इस आतंकवाद को फैलाने और भारत और भारतीयता की जड़ को हिलाने के लिए…।
(फेसबुक: पत्रकार चित्रा गुप्ता की फेसबुक वॉल से )
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