ब्रिटिश राज़ 2
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15 मई 2014, इस दिन तक रामराज्य में रहने वाले भारत देश को जाने किसकी नज़र लगी कि 16 मई 2014 को सरकार बदलते ही देश में परेशानियां आ गयी। रोज़ वेज मंचूरियन खाने वाला किसान अब भूखे मरने लगा हैं..क्या यही अच्छे दिन हैं? वास्तविकता तो ये हैं कि इतिहास खुद को दोहराता हैं और अब वक़्त आ गया हैं फिर से उस समय को जीने का जिसे हमारे देश के क्रांतिकारियों ने 1947 के पहले जिया था।
ईश्वर ने इसके लिए पूरी तैयारियां कर ली हैं..भगत सिंह के रूप में हमारे पास कन्हैया हैं जिनपर देशद्रोह का मुकदमा हैं, सरदार पटेल के रूप में हार्दिक पटेल मौजूद हैं जिन्होंने आरक्षण के लिए करोडो की सम्पति स्वाहा कर के क्रांति की अलख जगाई हैं, गाँधी के रूप में अन्ना हजारे भी मौजूद हैं जो रिटायरमेंट की उम्र में अनशन स्पेशलिस्ट कहलाते हैं, नेहरु के रूप में केजरीवाल जी तो हैं ही और ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में BJP तथा अंग्रेजो के रूप में संघी...जिनसे चाहिए हमें आजादी।
दरअसल पहले हम सभी क्रांतिकारियों की आत्माएं बुलवाना चाहते थे पर बजट कम होने के कारण और विश्व भर में चाइनीज प्रोडक्ट की बढती मांग को ध्यान में रखते हुए हमने यही पर वो कर लिया जिसमे हमारा कोई मुकाबला नहीं...."जुगाड़"
वैसे भी जब से भगत सिंह को पाता चला हैं कि उनपर बनी फिल्म में बॉबी देओल ने उनका पात्र निभाया हैं, काफी गुस्से में रहते हैं। फिर अब जब कन्हैया की उनसे तुलना की गयी तो और ज्यादा गुस्से में हैं...सरदार पटेल तो अपनी तुलना हार्दिक पटेल से किये जाने के बाद से अपनी नागरिकता "Indian" को हटाने के लिए भी अप्लाई कर चूके हैं। अत: इस बार हम ये लड़ाई सस्ते क्रांतिकारियों के सहारे ही लड़ रहे हैं।
वैसे हम भारतीय गज़ब के हैं..मरने के बाद भी लोगो को चैन से नहीं रहने देते...कभी उनका नाम वोट के लिए तो कभी नोट पर, कभी क्रांति पर तो कभी मकर सक्रांति पर, कभी आजादी के लिए तो कभी बर्बादी के लिए लेते ही रहते हैं और किसी दूसरी दुनिया में उन्हें हिचकियाँ भेजते रहते हैं। खैर....देश में बहुत गंभीर समस्याएं हैं, पहले के कुछ क्रांतिकारियों ने अखबार व पत्र के जरिये देश को जगाया था अब अपन फेसबुक व ट्विटर के जरिये जगायेंगे। मोदी जो जनरल डायर सा अत्याचार कर रहा हैं उस पर बंदिश लगायेंगे....देश को RSS व BJP नामक ईस्ट इंडिया कंपनी से मुक्ति दिलाएंगे और फिर कन्हैया को फांसी पर झूलाकर केजरीवाल जी को पीएम बनायेंगे और देश के "love day" लगायेंगे...सॉरी , टाइपो हो गया, कहने का मतलब था देश में love day लायेंगे...अरे हाँ नाथूराम का चयन अब तक नहीं हु हैं..इच्छुक उम्मीदवार आवेदन कर सकते हैं बस पिस्तौल अपनी खुद की लेके आवे.
बेचारे क्रांतिकारी ऊपर बैठ कर अगर देश का हाल और उनके नाम का इस्तेमाल देख रहे हैं तो यही सोच रहे होंगे कि पहले पता होता कि ये सब होगा तो आजादी की लड़ाई में कूदने की बजाए मज्जे से झालमुड़ी बेचता इंक़लाब जिंदाबाद
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15 मई 2014, इस दिन तक रामराज्य में रहने वाले भारत देश को जाने किसकी नज़र लगी कि 16 मई 2014 को सरकार बदलते ही देश में परेशानियां आ गयी। रोज़ वेज मंचूरियन खाने वाला किसान अब भूखे मरने लगा हैं..क्या यही अच्छे दिन हैं? वास्तविकता तो ये हैं कि इतिहास खुद को दोहराता हैं और अब वक़्त आ गया हैं फिर से उस समय को जीने का जिसे हमारे देश के क्रांतिकारियों ने 1947 के पहले जिया था।
ईश्वर ने इसके लिए पूरी तैयारियां कर ली हैं..भगत सिंह के रूप में हमारे पास कन्हैया हैं जिनपर देशद्रोह का मुकदमा हैं, सरदार पटेल के रूप में हार्दिक पटेल मौजूद हैं जिन्होंने आरक्षण के लिए करोडो की सम्पति स्वाहा कर के क्रांति की अलख जगाई हैं, गाँधी के रूप में अन्ना हजारे भी मौजूद हैं जो रिटायरमेंट की उम्र में अनशन स्पेशलिस्ट कहलाते हैं, नेहरु के रूप में केजरीवाल जी तो हैं ही और ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में BJP तथा अंग्रेजो के रूप में संघी...जिनसे चाहिए हमें आजादी।
दरअसल पहले हम सभी क्रांतिकारियों की आत्माएं बुलवाना चाहते थे पर बजट कम होने के कारण और विश्व भर में चाइनीज प्रोडक्ट की बढती मांग को ध्यान में रखते हुए हमने यही पर वो कर लिया जिसमे हमारा कोई मुकाबला नहीं...."जुगाड़"
वैसे भी जब से भगत सिंह को पाता चला हैं कि उनपर बनी फिल्म में बॉबी देओल ने उनका पात्र निभाया हैं, काफी गुस्से में रहते हैं। फिर अब जब कन्हैया की उनसे तुलना की गयी तो और ज्यादा गुस्से में हैं...सरदार पटेल तो अपनी तुलना हार्दिक पटेल से किये जाने के बाद से अपनी नागरिकता "Indian" को हटाने के लिए भी अप्लाई कर चूके हैं। अत: इस बार हम ये लड़ाई सस्ते क्रांतिकारियों के सहारे ही लड़ रहे हैं।
वैसे हम भारतीय गज़ब के हैं..मरने के बाद भी लोगो को चैन से नहीं रहने देते...कभी उनका नाम वोट के लिए तो कभी नोट पर, कभी क्रांति पर तो कभी मकर सक्रांति पर, कभी आजादी के लिए तो कभी बर्बादी के लिए लेते ही रहते हैं और किसी दूसरी दुनिया में उन्हें हिचकियाँ भेजते रहते हैं। खैर....देश में बहुत गंभीर समस्याएं हैं, पहले के कुछ क्रांतिकारियों ने अखबार व पत्र के जरिये देश को जगाया था अब अपन फेसबुक व ट्विटर के जरिये जगायेंगे। मोदी जो जनरल डायर सा अत्याचार कर रहा हैं उस पर बंदिश लगायेंगे....देश
बेचारे क्रांतिकारी ऊपर बैठ कर अगर देश का हाल और उनके नाम का इस्तेमाल देख रहे हैं तो यही सोच रहे होंगे कि पहले पता होता कि ये सब होगा तो आजादी की लड़ाई में कूदने की बजाए मज्जे से झालमुड़ी बेचता इंक़लाब जिंदाबाद
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