हाँ तो कामरेड कन्हैया कुमार; तुम्हारी उम्र क्या है ?
यही कोई 30-31 साल ना और तुमने क्या कहा की "भारतीय सेना कश्मीर में रेप करती है ।
चलो मैं तुम्हे एक जगह ले चलता हू " आज से ठीक 15 साल 6 महीने 9 दिन पहले 29 June 1999 की रात जब तुम JNU के अपने हॉस्टल में गांजे और सिगरेट के धुंए के बीच विदेशी शराब के घूंट हलक से नीचे उतार क्रांति की बातें कर रहे थे उस वक्त Dras, kargil, Jammu & kashmir में Captain Vijayant Thapar शहीद हो गए थे ।
.
जानते हो उस वक्त उम्र क्या थी उनकी ? मात्र २२ साल !
#तोलोलिंग को कारगिल का निर्णायक मोड़ माना जाता है और Major Mohit Saxena की
assault team में शामिल विजयंत की प्लाटून ने पाकिस्तान के #बरबाद_बंकर पर तिरंगा फहराया ।
तोलोलिंग को जितना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था, 2nd राजपूताना राईफल्स 1.5 महीने से लगातार असफल हो रही थी ।
ज्यादातर जवान और अधिकारी घायल थे और जब आदेश आया की अगर तुमसे नहीं होता तो खाली करो हम दूसरी रेजिमेंट भेजेंगे तब Commanding officer Col. M. B. Ravindranathan बोले की "राजपूताना की इज्ज़त का सवाल है ।
" बस 11 घंटे में तोलोलिंग पर तिरंगा था । that's the spirit of Indian Army, you bloody bastard.
.
तोलोलिंग के बाद 2nd Rajputana को अगला task मिला three pimples & knoll को कब्जे में लेने का ।
जानते हो तोलोलिंग और टाईगर हिल के बीच sandwich की तरह फंसी काले पत्थरों की उबड़-खाबड़ भद्दी सी पहाड़ी हैं ।
29 जून की वो पूर्णिमा की रात थी, Northern light infantry (पाकिस्तान) की 6 वीं बटालियन चोटी पर 100 MM की gun और machine gun लेकर पूरी तैयारी से बैठी थी ।
चांदनी के उजाले में बेहद संकरे रास्ता, दोनो ओर करीब 15000 फीट की खड़ी ढाल, सामने से बचाव के लिए कोई ओट नहीं , केवल छोटी - छोटी चट्टानें जिस पर तुर्रा ये की तापमान -15℃ । साक्षात यमराज से भिड़ जाने सा था
यहाँ पर विजयंत की यूनिट ने असाल्ट शुरू किया कम्पनी कमांडर Major Padmpani Achary
के under में । जैसे ही चढ़ाई पूरी हुई दुश्मन ने मशीन गनों का मुंह खोल दिया और 100MM की
गोलाबारी शुरू हो गई । इसका बराबरी का जवाब दिया गया लेकिन नुकसान अपने ही पक्ष का ज्यादा हुआ ।
कुछ ही देर की मुठभेड़ में कंपनी कमांडर शहीद हो गए,ज्यादातर जवान या तो मर चुके थे या बुरी तरह जख्मी थे और इस निर्णायक घड़ी में विजयंत ने दुश्मन से सीधा सामना किया ।
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मात्र 15 मीटर की दूरी पर दो लाईट मशीन गनों के बीच आगे बढ़ कर मोर्चा लेना भारतीय सेना ही कर सकती है कन्हैया कुमार तुम्हारे जैसे किसी वामपंथी,गद्दार, नामर्द, नपुंसक & क्लीव के बस का नहीं जो 4 दिन जेल में रहकर खुद ही थूक कर चाट आये ।
कलेजा चाहिए होता है इसके लिए । समझे !
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मात्र 15 मीटर की दूरी से विजयंत को गोलियां बींध गईं थी; सीने , पेट और सिर में ........और वह रक्तरंजित नायक अपने साथी #नायक_तिलक_सिंह की बाहों में गिरा ।
जानते हो केवल 6 महीने हुए थे उसे सेना में भर्ती हुए और जब उन्हें #वीर_चक्र से सम्मानित किया गया तो पुरुष्कार लेने आईं थी उनकी 82 साल की वृद्धा दादी ।
उस बुढ़िया से पूछना उनकी छातियों में दूध उतार आया होगा उस वक्त ।
Greater Noida में उनकी अंतिम यात्रा में करीब 1.5 लाख की भीड़ उमड़ आई थी । .
और हाँ विजयंत केवल इसीलिए नहीं याद किये जाते एक 6 साल की बच्ची थी #रुखसाना; आतंकियों ने हत्या की थी उसके परिवार की और इसी सदमें से उसकी आवाज चली गई थी ।
मात्र 5 महीने में ही उसकी आवाज लौट आई थी ।
जानते हो किसकी वजह से ??
विजयंत थापर की वजह से और सुनो कारगिल पर दुश्मनों के हमले के बाद, शायद अपनी आने वाली मौत को भांपते हुए कैप्टन विजयंत ने अपने परिवारवालों के नाम एक चिट्ठी लिखी थी। जिसमें उन्होंने लिखा कि, 'जब तक ये चिट्ठी आप लोगों तक पहुंचेगी, शायद मैं न रहूं। मेरे मरणोपरांत अनाथालय में कुछ रुपए दान करें, और रूखसाना को 50 रूपए प्रति माह भेजते रहें।' रूखसाना पांच वर्षीय बच्ची थी, जो कैप्टन के साथ खेला करती थी और उसे विजयंत से काफी स्नेह था।
विजयंत थापर के पिता कर्नल वी एन थापर ने भी भारतीय सेना में रहकर 37 वर्ष तक देश की सेवा की। पिछले १७ बारह साल से लगातार सैकड़ों मील की दूरी तय कर वह उस उजड़ी और सुनसान जगह पर जाते हैं जहां उनका बेटा दुश्मनों से लोहा लेते हुए खेत हो गया था। वह ऐसा सिर्फ अपने शहीद बेटे को याद करने के लिए नहीं बल्कि उससे किए गए एक वादे को पूरा करने के लिए भी करते हैं। अपनी इस मूक श्रद्धांजलि के द्वारा सेवानिवृत्त कर्नल वीएन थापर कारगिल युद्ध में शहीद हुए अपने बहादुर बेटे कैप्टन विजयंत थापर से किए गए उस वादे को पूरा करते हैं जिसमें उनके बेटे ने जीवन के अंतिम क्षणों में कहा था कि अगर हो सके तो वह उस जगह आकर देखें जहां भारतीय सेना उनके और देश के भविष्य के लिए लड़ रही है।
कन्हैया तुम और तुम्हारे साथी स्त्री देह के भूखे, बच्चों के मांस को भून कर खा जाने वाली विचारधारा के झंडा बरदार क्या जानो की भावनाएं क्या होती हैं । .
तुम्हारा आदर्श होगा वह झूठा, कायर, मानसिक दलित और भगोड़ा #रोहित_वेमुला पर हमें अभिमान है शहीद #विजयंत_थापर पर ; हमारा आदर्श कोई भारत को बांटने वाला वामपंथी कुत्ता नहीं बल्की वो 13 लाख की शत्रुहंता और मानवता की सेवक हमारी सेना है।
सुन वामपंथी कुत्ते - शहीद चमकते हैं , शहीद दमकते है , चेहरे याद नहीं हैं , फिर भी वो महकते हैं , लोग तो रोज मरते हैं....पर वो मर कर भी जी जाते हैं...क्योंकि वो शहीद कहलाते है...
जय हिन्द जय हिन्द की सेना...!!.
यही कोई 30-31 साल ना और तुमने क्या कहा की "भारतीय सेना कश्मीर में रेप करती है ।
चलो मैं तुम्हे एक जगह ले चलता हू " आज से ठीक 15 साल 6 महीने 9 दिन पहले 29 June 1999 की रात जब तुम JNU के अपने हॉस्टल में गांजे और सिगरेट के धुंए के बीच विदेशी शराब के घूंट हलक से नीचे उतार क्रांति की बातें कर रहे थे उस वक्त Dras, kargil, Jammu & kashmir में Captain Vijayant Thapar शहीद हो गए थे ।
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जानते हो उस वक्त उम्र क्या थी उनकी ? मात्र २२ साल !
#तोलोलिंग को कारगिल का निर्णायक मोड़ माना जाता है और Major Mohit Saxena की
assault team में शामिल विजयंत की प्लाटून ने पाकिस्तान के #बरबाद_बंकर पर तिरंगा फहराया ।
तोलोलिंग को जितना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था, 2nd राजपूताना राईफल्स 1.5 महीने से लगातार असफल हो रही थी ।
ज्यादातर जवान और अधिकारी घायल थे और जब आदेश आया की अगर तुमसे नहीं होता तो खाली करो हम दूसरी रेजिमेंट भेजेंगे तब Commanding officer Col. M. B. Ravindranathan बोले की "राजपूताना की इज्ज़त का सवाल है ।
" बस 11 घंटे में तोलोलिंग पर तिरंगा था । that's the spirit of Indian Army, you bloody bastard.
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तोलोलिंग के बाद 2nd Rajputana को अगला task मिला three pimples & knoll को कब्जे में लेने का ।
जानते हो तोलोलिंग और टाईगर हिल के बीच sandwich की तरह फंसी काले पत्थरों की उबड़-खाबड़ भद्दी सी पहाड़ी हैं ।
29 जून की वो पूर्णिमा की रात थी, Northern light infantry (पाकिस्तान) की 6 वीं बटालियन चोटी पर 100 MM की gun और machine gun लेकर पूरी तैयारी से बैठी थी ।
चांदनी के उजाले में बेहद संकरे रास्ता, दोनो ओर करीब 15000 फीट की खड़ी ढाल, सामने से बचाव के लिए कोई ओट नहीं , केवल छोटी - छोटी चट्टानें जिस पर तुर्रा ये की तापमान -15℃ । साक्षात यमराज से भिड़ जाने सा था
यहाँ पर विजयंत की यूनिट ने असाल्ट शुरू किया कम्पनी कमांडर Major Padmpani Achary
के under में । जैसे ही चढ़ाई पूरी हुई दुश्मन ने मशीन गनों का मुंह खोल दिया और 100MM की
गोलाबारी शुरू हो गई । इसका बराबरी का जवाब दिया गया लेकिन नुकसान अपने ही पक्ष का ज्यादा हुआ ।
कुछ ही देर की मुठभेड़ में कंपनी कमांडर शहीद हो गए,ज्यादातर जवान या तो मर चुके थे या बुरी तरह जख्मी थे और इस निर्णायक घड़ी में विजयंत ने दुश्मन से सीधा सामना किया ।
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मात्र 15 मीटर की दूरी पर दो लाईट मशीन गनों के बीच आगे बढ़ कर मोर्चा लेना भारतीय सेना ही कर सकती है कन्हैया कुमार तुम्हारे जैसे किसी वामपंथी,गद्दार,
कलेजा चाहिए होता है इसके लिए । समझे !
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मात्र 15 मीटर की दूरी से विजयंत को गोलियां बींध गईं थी; सीने , पेट और सिर में ........और वह रक्तरंजित नायक अपने साथी #नायक_तिलक_सिंह की बाहों में गिरा ।
जानते हो केवल 6 महीने हुए थे उसे सेना में भर्ती हुए और जब उन्हें #वीर_चक्र से सम्मानित किया गया तो पुरुष्कार लेने आईं थी उनकी 82 साल की वृद्धा दादी ।
उस बुढ़िया से पूछना उनकी छातियों में दूध उतार आया होगा उस वक्त ।
Greater Noida में उनकी अंतिम यात्रा में करीब 1.5 लाख की भीड़ उमड़ आई थी । .
और हाँ विजयंत केवल इसीलिए नहीं याद किये जाते एक 6 साल की बच्ची थी #रुखसाना; आतंकियों ने हत्या की थी उसके परिवार की और इसी सदमें से उसकी आवाज चली गई थी ।
मात्र 5 महीने में ही उसकी आवाज लौट आई थी ।
जानते हो किसकी वजह से ??
विजयंत थापर की वजह से और सुनो कारगिल पर दुश्मनों के हमले के बाद, शायद अपनी आने वाली मौत को भांपते हुए कैप्टन विजयंत ने अपने परिवारवालों के नाम एक चिट्ठी लिखी थी। जिसमें उन्होंने लिखा कि, 'जब तक ये चिट्ठी आप लोगों तक पहुंचेगी, शायद मैं न रहूं। मेरे मरणोपरांत अनाथालय में कुछ रुपए दान करें, और रूखसाना को 50 रूपए प्रति माह भेजते रहें।' रूखसाना पांच वर्षीय बच्ची थी, जो कैप्टन के साथ खेला करती थी और उसे विजयंत से काफी स्नेह था।
विजयंत थापर के पिता कर्नल वी एन थापर ने भी भारतीय सेना में रहकर 37 वर्ष तक देश की सेवा की। पिछले १७ बारह साल से लगातार सैकड़ों मील की दूरी तय कर वह उस उजड़ी और सुनसान जगह पर जाते हैं जहां उनका बेटा दुश्मनों से लोहा लेते हुए खेत हो गया था। वह ऐसा सिर्फ अपने शहीद बेटे को याद करने के लिए नहीं बल्कि उससे किए गए एक वादे को पूरा करने के लिए भी करते हैं। अपनी इस मूक श्रद्धांजलि के द्वारा सेवानिवृत्त कर्नल वीएन थापर कारगिल युद्ध में शहीद हुए अपने बहादुर बेटे कैप्टन विजयंत थापर से किए गए उस वादे को पूरा करते हैं जिसमें उनके बेटे ने जीवन के अंतिम क्षणों में कहा था कि अगर हो सके तो वह उस जगह आकर देखें जहां भारतीय सेना उनके और देश के भविष्य के लिए लड़ रही है।
कन्हैया तुम और तुम्हारे साथी स्त्री देह के भूखे, बच्चों के मांस को भून कर खा जाने वाली विचारधारा के झंडा बरदार क्या जानो की भावनाएं क्या होती हैं । .
तुम्हारा आदर्श होगा वह झूठा, कायर, मानसिक दलित और भगोड़ा #रोहित_वेमुला पर हमें अभिमान है शहीद #विजयंत_थापर पर ; हमारा आदर्श कोई भारत को बांटने वाला वामपंथी कुत्ता नहीं बल्की वो 13 लाख की शत्रुहंता और मानवता की सेवक हमारी सेना है।
सुन वामपंथी कुत्ते - शहीद चमकते हैं , शहीद दमकते है , चेहरे याद नहीं हैं , फिर भी वो महकते हैं , लोग तो रोज मरते हैं....पर वो मर कर भी जी जाते हैं...क्योंकि वो शहीद कहलाते है...
जय हिन्द जय हिन्द की सेना...!!.
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