Thursday, March 10, 2016

जानिए मकबूल भट कौन था ?

देश की राजनीति में थोड़ी भी रूचि रखने वाले या थोड़ा सामान्य ज्ञान रखने वाले सब अफज़ल गुरु के बारे में जानते हैं, लेकिन JNU में अफज़ल गुरु के साथ जिस मकबूल भट को शहीद कहकर नारे लगाये गए... उस मकबूल बट के बारे में आज की युवा पीढ़ी शायद ही जानती हो.
जानिए मकबूल भट कौन था, और उसने क्या किया था जिसके कारण उसको फांसी दी गई.....
पुणे मे हर दिन हजारों वाहन म्हात्रे पुल से गुजरते हैं. लेकिन उनमें से शायद 10% लोग भी नही जानते होंगे कि ये म्हात्रे कौन थे.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय मे कुछ बुद्धिजीवियों ने कुछ दिन पहले प्रदर्शन किये और अफजल गुरु और मकबूल बट को शहीद कहकर घोषणाएं की. मकबूल भट को सामान्य जनता भूली होगी मगर ऊग्रवादी भूले नही. कश्मीर घाटी के पुराने हिंन्दू जो भट्ट थे वही धर्मपरिवर्तन के बाद भट हो गये थे.
14 सितंबर 1966 को पाकिस्तान की सहायता से इस मकबूल भट ने पुलिस बल पर हमला किया जिसमे इंन्स्पेक्टर अमरचंद मारे गए. 1971 के विमान अपहरण कर लाहौर ले जाने में भी इस मकबूल भट की मुख्य भूमिका थी. तब यह पाकिस्तान में रहता था.
1976 में भारतीय सेना ने पकड़ा और फिर इसे फांसी की सजा हुई. उसने भारत के राष्ट्रपति से क्षमा याचना की.
3 फरवरी 1984 को इसके साथियों (Jammu Kashmir Liberation Front) ने लंडन मे भारतीय उच्चायोग के श्री रवींद्र म्हात्रे का अपहरण किया. श्री म्हात्रे अपनी छोटी सी बेटी के जन्मदिन का केक लेकर घर आ रहे थे और बस से उतरे थे. यहीं से अपहरण कर आतंकियों ने मकबूल भट को रिहा करने की मांग की.
तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने यह मांग नहीं मानी और स्पष्ट कर दिया कि भारत सरकार आतंकियों से कोई बातचीतनहीं करेगी. तब 6 फरवरी 1984 को इन आतंकियों ने श्री म्हात्रे का कत्ल कर उनके शव को सड़क पर फेंक दिया.
तब श्रीमती इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति श्री झैलसिंग को दया याचना को नामंजूर करने की सिफारिश कर 5 दिन बाद 11 फरवरी 1984 को मकबूल भट को फांसी पर चढ़ा दिया.
रवींद्र म्हात्रे के बूढे माता-पिता मुंबई के विक्रोळी मे 3 कमरे के मकान मे रहते थे. श्रीमती गांधी उन्हे मिलने मुंबई गईं और हवाई अड्डे से सीधे विक्रोळी गईं. म्हात्रे के बूढे पिता का हाथ 15 मिनट हाथ में लेकर बैठीं और सांत्वना दी. दोनो की आंखों में पानी था. श्रीमती गांधी ने देश को महत्व दिया था जिससे म्हात्रे को जान गंवानी पड़ी इसके लिये खुद को दोषी मानकर क्षमा मांगी और सीधे हवाई अड्डे से दिल्ली वापस आईं.
4 नवंबर 1984 को इन्ही आतंकियों ने मकबूल भट को फांसी की सजा देने वाले जज नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी.
ये JNU आतंकवादी 30 साल बाद अभी भी मकबूल भट को भूले नहीं मगर हम श्री रवींद्र म्हात्रे को भूल गए.

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