Monday, July 18, 2016

इंसान बन लीजिए पहले फिर मुसलमान भी बन लीजिएगा

इंसान बन लीजिए पहले फिर मुसलमान भी बन लीजिएगा


हमारे कुछ मुस्लिम दोस्त हैं जो कुतर्क के ढेर सारे अमरुद बेहिसाब खाते जा रहे हैं . उन को गुमान बहुत है कि मुसलमानों ने इस देश को बहुत कुछ दिया है. और इस अंदाज़ में कह रहे हैं गोया वह अभी भी अरब में रह रहे हों, भारत में नहीं. जैसे मुगलों ने भारत को भाई चारा नहीं, कोई बख्शीश दी हो.
आदि-आदि. गोया मुगल न आए होते तो भारत यतीम ही बना रहता. मुगलों ने भारत आ कर भारत को सोने की चिड़िया बना दिया वगैरह कुतर्क और तथ्यों से विपरीत बातें उन की जुबान में भरी पड़ी हैं.
उन से कहना चाहता हूं कि पहले तो अपने को भारतीय समझ लीजिए. फिर इतिहास को ज़रा पलट लीजिए. पलटेंगे तो जानेंगे कि भारत सोने की चिड़िया मुगलों के आने के पहले था. ब्रिटिशर्स यहां व्यापारी बन कर आए थे लेकिन मुगल तो सीधे-सीधे आक्रमणकारी बन कर आए थे.
सोने की चिड़िया को लूट लिया. जाने कितने मंदिर लूटे और तोड़े बारंबार. समृद्धि, सुख-चैन लूट लिया. उन का आक्रमणकारी और लुटेरा रुप अभी भी उन से विदा नहीं हुआ है. मुसलमान अभी भी अपने को यहां का नागरिक नहीं समझते. भले किसी गैराज में कार धोते हों, मैकेनिक हों, किसी ट्रक पर खलासी हों, कहीं चाय बेचते हों . कहीं अफसर हों, इंजीनियर हों, अध्यापक हों या कुछ और सही पर समझते हैं अपने को रुलर ही.
राहत इंदौरी जैसे शायर इसी गुमान में लिखते हैं,

कब्रों की जमीनें दे कर हमें मत बहलायिये
राजधानी दी थी राजधानी चाहिए


हां रहन सहन भी, खान पान में भी योगदान ज़रूर है. रोटियां कई तरह की ले आए. मसाला आदि लाए, साथ में गाय का मांस खाने की ज़िद भी लाए. औरतों को खेती समझने की समझ, तीन तलाक का कुतर्क आदि ले आए. मज़हबी झगड़ा ले आए. जबरिया धर्म परिवर्तन का फसाद ले आए. भाई को मार कर, पिता को कैद कर राज करने की तरकीब ले आए.
अभी भी पूरी दुनिया को जहन्नुम के एटम बम पर बिठा दिया है, मनुष्यता को सलीब पर टांग दिया है. फिर भी कुतर्क भरा गुमान है कि भारत को बहुत कुछ दिया है तो आप की इस खुशफहमी का मैं तो क्या कोई भी कुछ नहीं कर सकता. यह गुमान आप को मुबारक. लेकिन आप यह तय ज़रूर कर लीजिए कि आप की यह चिढ़ सिर्फ़ संघियों, भाजपाईयों और गांधी के हत्यारों से ही है या समूची मनुष्यता से है?
आप के रोल मॉडल आखिर बिन लादेन, बगदादी, बुरहान वानी या ज़ाकिर नाईक जैसे आतंकवादी ही क्यों हो गए हैं? उनके लिए आप छाती क्यों पीट रहे हैं भला? सीमांत गांधी, ज़ाकिर हुसेन, ए पी जे अबुल कलाम या वीर हामिद जैसे नायक लोग कहां बिला गए आप की जिंदगी से. क्यों बिला गए? और कि आप के भीतर से कोई बड़ा राजनीतिक क्यों नहीं निकल पाया?
आख़िर कभी कांग्रेस, कभी मुलायम, कभी लालू आदि के अर्दली और मिरासी बन कर ही मुस्लिम राजनीति संभव क्यों बन पा रही है? अभी भी चेत जाईए, इंसान बन लीजिए पहले फिर मुसलमान भी बन लीजिएगा. शांति कायम रहेगी तभी हम आप इस तरह विमर्श कर सकेंगे. सहमति या असहमति जता सकेंगे एक दूसरे से . बम फोड़ कर, पत्थर फोड़ कर, किसी का गला रेत कर नहीं, किसी मासूम पर ट्रक चढ़ा कर नहीं.

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