Monday, April 4, 2016

लोग भाजपा की साम्प्रदायिक राजनीति का विरोध तो खूब करते हैं लेकिन अपनी मज़हबी मान्यताओं की बखिया उधेड़े जाने पर बिलबिलाने लगते

जो मज़हबी लोग भाजपा की साम्प्रदायिक राजनीति का विरोध तो खूब करते हैं लेकिन अपनी मज़हबी मान्यताओं की बखिया उधेड़े जाने पर बिलबिलाने लगते हैं और कुतर्कों की झड़ी लगा देते हैं, उन्हें साम्प्रदायिक राजनैतिक इतिहास के आईने में अपना चेहरा भी देख लेना चाहिये.. शायद सन् 85 या 86 की बात है, एक बूढ़ी औरत शाहबानों को तलाक़ तलाक़ तलाक़ बोल के घर से बाहर निकाल दिया गया था, रोटी कपड़े और छत के के लिये उसने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, समाज के कुछ जिम्मेदार लोगों की वजह से ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था और सुप्रीम कोर्ट ने फैंसला दिया कि शाहबानो का पति हर महीने तीन सौ रूपये उस बेसहारा बुजुर्ग औरत को गुजारे भत्ते के तौर पर दे, बस फ़िर क्या था मुसलसल ईमान वालों का मज़हब कोर्ट के इस फैंसले से खतरे में पड़ गया, अमनपसंद कौम के लोगों ने सड़कों में उतर कर सुप्रीमकोर्ट के खिलाफ़ ही जुलूस निकालने शुरू कर दिये, उनके हिसाब से बूढ़ी शाहबानो या तो रोटी कपड़ा और छत के लिए दूसरे आदमी की बीवी बनती, या वक्फ़ बोर्ड के आगे अनाथों की तरह हाँथ फैलाती या भीख मांग कर गुज़ारा करती। मुसलमानों के विरोध प्रदर्शन हद से ज्यादा बढ़ गये तो वोटबैंक खोने के डर से केंद्र पर काबिज कांग्रेस सरकार ने मुसलमानों की बात मान ली, और संसद में विधेयक पास करा कर सुप्रीम कोर्ट के इस फैंसले को पलट दिया..
अब देश का बहुसंख्यक हिन्दू, जो अपने धर्म ग्रंथों को दरकिनार कर के सुधारवादी सोंच को अपना रहा था, यह सब देख कर भौचक्का रह गया, उनके लिये ये समझ पाना मुश्किल था कि आखिर एक बूढ़ी बेसहारा औरत को 300 रु. गुज़ाराभत्ता दे देने से इस्लाम कैसे खतरे में पड़ जायेगा????
एक तरफ़ हिन्दू मैरिज एक्ट, मेंटीनेंस, विधवा पुनर्विवाह, बाल विवाह सतीप्रथा और छुआ छूत उन्मूलन समेत दत्तक ग्रहण उत्तराधिकार के नये नये कानून बनाए और लागू किये जा रहे थे.... दूसरी तरफ़ इस्लाम और शरीया _ सुप्रीम कोर्ट, न्याय साम्या और नैतिकता से भी ऊपर हो गया था मुसलमानों के लिये और दोगली धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस सरकार के लिये, देश का बहुसंख्यक वर्ग खुद को ठगा सा महसूस कर रहा था।
कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का इल्ज़ाम लगने लगा, अब हिन्दू वोट बैंक को अपने से दूर जाता देख कर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हिन्दुओं को खुश करने के लिये विवादित बाबरी मस्ज़िद या राम मंदिर के दरवाज़े खुलवा दिये..
हाँ राजनैतिक महत्वकांक्षाओं और कई कारणों से विभाजन और छिट पुट दंगे देश ने पहले भी भुगते थे.. लेकिन इस घटना के बाद यकीनी तौर पर भारतीय समाज में हिन्दू मुस्लिम के बीच स्पष्ट खाई खींचने का श्रेय कांग्रेस और कट्टर मुसलमानों को ही जाता है..
भाजपा तब देश की राजनीति में अपना वजूद तलाश रही थी, आडवाणी जैसे नेताओं और हिन्दू संगठनों ने इस सुनहरे मौके को लपक लिया, और आक्रोशित असंतुष्ट हिन्दुओं के मन में खुद को हिंदुत्व के रक्षक के रूप में रोप कर साम्प्रदायिकता की नई राजनैतिक परम्परा शुरू की.. जिसका नतीजा हम बाबरी विध्वंश, गुजरात, मुज़फ्फर नगर समेत अनेक दंगों के रूप में भुगतते आ रहे हैं। इखलाक/ हेमंत करकरे/ या तंज़ील अहमद ने संभवतः इसी साम्प्रदायिक राजनीति के षड्यंत्रों में अपनी जान गंवाई..
आज भी भाजपा और इन चरमपंथी संगठनो को ऑक्सीजन मुसलमानों की धार्मिक कट्टरता, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बनाये रखने की ज़िद, और फ़तवेबाज मुल्लों से ही मिलती है.. वो दिखाते हैं कि जहाँ जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक हैं वहां इस्लाम ही शासन का आधार है तो हिन्दू बहुसंख्यक होने के बावजूद भी भारत हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं बन सकता?? वो चिंगारी भड़काते हैं और कुछ लोग भारत माता की जय न बोलने का फ़तवा दे कर, बीफ़ पार्टी का आयोजन कर के उस चिंगारी में पेट्रोल डाल देते हैं.. देश सुलग रहा है, इस आग में निर्दोष मासूम मारे जा रहे हैं.. और धर्मांध आज भी धर्म मज़हब की ही फ़िक्र लिये बैठे हैं।

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