देश के जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, उनमें मिज़ोरम, मणिपुर और मेघालय जैसे उत्तरपूर्व के छोटे राज्य और दक्षिण के दो बड़े राज्य केरल और कर्नाटक शामिल हैं। इसके अलावा उत्तर में हिमाचल प्रदेश की सरकार है और हाल-फ़िलहाल तक उत्तराखंड में भी कांग्रेस की सरकार थी।
हालांकि उत्तराखंड में अनिश्चितता की स्थिति है, राष्ट्रपति शासन दोबारा लग चुका है। लिहाजा आकलन के हिसाब से इस राज्य को छोड़ देते हैं।
अगर पहले नहीं हुए तो इन राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं। इस बात की संभावना भी नहीं है कि कांग्रेस इन राज्यों में फिर से चुनाव जीतेगी।
हिमाचल प्रदेश में भी अगले साल चुनाव होने वाले हैं। यहां एक बार जो पार्टी सत्ता में रहती है, वो अमूमन अगली बार बाहर हो जाती है। ऐसे में कांग्रेस के लिए इस राज्य में अपनी सरकार को बचा पाना मुश्किल दिख रहा है।
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति जमा करने के मामले में सीबीआई की जांच चल रही है और उनके लिए बने रहना आसान नहीं होगा। इसके अलावा यहां एक और बात अहम है। बीजेपी के उभरते सितारों में शुमार अनुराग ठाकुर विपक्ष में हैं। वे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के ताक़तवर सचिव हैं।इस राज्य में कांग्रेस के पास उनके जैसे करिश्मा वाला कोई नेता नहीं है।
केरल के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण ये बता रहे हैं कि कांग्रेस वाम मोर्चा से पीछे है। राज्य के चुनाव परिणाम 19 मई को आएंगे।
अगर कांग्रेस हारती है तो राज्य की राजनीति पर नज़र रखने वालों के लिए ये अचरज की बात नहीं होगी। इस राज्य से दो ही बातें महत्व की रहेंगी कि क्या कांग्रेस उस वाम मोर्चे से भी हार जाएगी जिसका देश भर से लगभग सफाया हो गया है?
दूसरी बात यह कि क्या बीजेपी का मत प्रतिशत बढ़ेगा, क्योंकि उसे मलयाली हिंदुओं का समर्थन मिल रहा है।
कर्नाटक में कांग्रेस के मुख्यमंत्री का नाम कई घोटालों में उछल रहा है। इसमें लग्ज़री घड़ियों के इस्तेमाल का मामला भी है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वे इसे अफोर्ड नहीं कर सकते। हालांकि वो उसे तोहफ़ा बता रहे हैं। दूसरी ओर उनका बेटा एक ऐसी कंपनी में हिस्सेदार है जिसे सरकारी ठेके मिले हैं।
इसके अलावा कर्नाटक में अहम बात ये हुई है कि बीजेपी में पार्टी नेता के तौर पर पूर्व प्रमुख रहे येदियुरप्पा की वापसी हो गई है। येदियुरप्पा पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और उन्हें पिछली विधानसभा में इस्तीफ़ा देना पड़ा था। लेकिन वे अभी भी लिंगायत समुदाय में काफ़ी लोकप्रिय हैं। उनकी वापसी से अगले चुनाव में बीजेपी के जीतने की उम्मीद बढ़ गई है। राज्य में दो साल बाद चुनाव होने हैं।
जिन दो अन्य राज्यों में अभी चुनाव हो रहे हैं, उनमें असम में कांग्रेस की सरकार है जबकि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की।
असम के चुनावी सर्वेक्षण बता रहे हैं कि बीजेपी आसानी से और प्रभावी ढंग से चुनाव जीत सकती है। यह 2014 के लोकसभा चुनाव के मुताबिक ही दिख रहा है। बांग्लादेशी मुसलमानों के राज्य में आकर रहने के मुद्दे पर काफी चर्चा हुई है और बीजेपी को इसका निश्चित तौर पर फ़ायदा मिलेगा।
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने ममता बनर्जी को टक्कर देने के लिए वाम मोर्चे से हाथ मिलाया है। जनमत सर्वेक्षणों के मुताबिक दोनों में कड़ा मुक़ाबला दिख रहा है लेकिन ममता बनर्जी की पार्टी जीतेगी। यह तब है जब ममता की पार्टी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर फंसी हुई है। इसके अलावा उन पर अक्षम होने और काम नहीं करने के तमाम आरोप हैं। इससे ये भी जाहिर होता है कि जहां कांग्रेस की ज़मीनी उपस्थिति है और राज्य में एंटी इनकम्बैंसी भी है, वहां भी चुनावी जीत दर्ज करने के लिए पार्टी में ना तो उर्जा है और ना ही उत्साह।
यह ओडिशा, आंध्र प्रदेश और बीजेपी शासित गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों का भी सच है।
उत्तर-पूर्व में राजनीति विचारधारा पर आधारित नहीं होती। स्थानीय नेता उस दल से तालमेल कर लेते हैं, जिसकी केंद्र में सरकार होती है। ऐसे में उत्तरपूर्व में कांग्रेस के तीन राज्यों की मौजूदा सरकार के भी नहीं रहने की संभावना नज़र आ रही है।
कोई भी ऐसा राज्य नहीं है, जहां कांग्रेस की स्थिति बेहतर दिख रही है। राजनीति से इतर राष्ट्रीय मीडिया में भी, 2011 और अन्ना हज़ारे आंदोलन के बाद से ही पार्टी की छवि लगातार दरक रही है। राष्ट्रीयता, चरमपंथ और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी पार्टी का रवैया रक्षात्मक रहा है। राहुल गांधी और उनके जीजा रॉबर्ट वाड्रा को लेकर ज़्यादातर निगेटिव रिपोर्ट ही दिखती हैं।
दिल्ली में बीजेपी कुछ ज़्यादा नहीं कर सकती, इसके बावजूद कांग्रेस इस मुद्दे को राष्ट्रीय मीडिया में भुना नहीं पा रही है।
राष्ट्रीय मीडिया का एजेंडा क्या हो, अब ये गांधी परिवार तय नहीं कर रहा है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टी और बिहार के नीतीश कुमार जैसे नेता अब कांग्रेस की जगह विपक्ष के रूप में विश्वसनीयता हासिल कर रहे हैं।
चुनाव का ताजा दौर गांधी परिवार के लिए सदमे जैसी ख़बर लेकर आ सकता है। एक बार फिर कांग्रेस मुक्त भारत का मुद्दा उछलेगा। लेकिन इस बार ये सवाल नहीं उठेगा कि ऐसा कब होने वाला है।
हालांकि उत्तराखंड में अनिश्चितता की स्थिति है, राष्ट्रपति शासन दोबारा लग चुका है। लिहाजा आकलन के हिसाब से इस राज्य को छोड़ देते हैं।
अगर पहले नहीं हुए तो इन राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं। इस बात की संभावना भी नहीं है कि कांग्रेस इन राज्यों में फिर से चुनाव जीतेगी।
हिमाचल प्रदेश में भी अगले साल चुनाव होने वाले हैं। यहां एक बार जो पार्टी सत्ता में रहती है, वो अमूमन अगली बार बाहर हो जाती है। ऐसे में कांग्रेस के लिए इस राज्य में अपनी सरकार को बचा पाना मुश्किल दिख रहा है।
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति जमा करने के मामले में सीबीआई की जांच चल रही है और उनके लिए बने रहना आसान नहीं होगा। इसके अलावा यहां एक और बात अहम है। बीजेपी के उभरते सितारों में शुमार अनुराग ठाकुर विपक्ष में हैं। वे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के ताक़तवर सचिव हैं।इस राज्य में कांग्रेस के पास उनके जैसे करिश्मा वाला कोई नेता नहीं है।
केरल के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण ये बता रहे हैं कि कांग्रेस वाम मोर्चा से पीछे है। राज्य के चुनाव परिणाम 19 मई को आएंगे।
अगर कांग्रेस हारती है तो राज्य की राजनीति पर नज़र रखने वालों के लिए ये अचरज की बात नहीं होगी। इस राज्य से दो ही बातें महत्व की रहेंगी कि क्या कांग्रेस उस वाम मोर्चे से भी हार जाएगी जिसका देश भर से लगभग सफाया हो गया है?
दूसरी बात यह कि क्या बीजेपी का मत प्रतिशत बढ़ेगा, क्योंकि उसे मलयाली हिंदुओं का समर्थन मिल रहा है।
कर्नाटक में कांग्रेस के मुख्यमंत्री का नाम कई घोटालों में उछल रहा है। इसमें लग्ज़री घड़ियों के इस्तेमाल का मामला भी है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वे इसे अफोर्ड नहीं कर सकते। हालांकि वो उसे तोहफ़ा बता रहे हैं। दूसरी ओर उनका बेटा एक ऐसी कंपनी में हिस्सेदार है जिसे सरकारी ठेके मिले हैं।
इसके अलावा कर्नाटक में अहम बात ये हुई है कि बीजेपी में पार्टी नेता के तौर पर पूर्व प्रमुख रहे येदियुरप्पा की वापसी हो गई है। येदियुरप्पा पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और उन्हें पिछली विधानसभा में इस्तीफ़ा देना पड़ा था। लेकिन वे अभी भी लिंगायत समुदाय में काफ़ी लोकप्रिय हैं। उनकी वापसी से अगले चुनाव में बीजेपी के जीतने की उम्मीद बढ़ गई है। राज्य में दो साल बाद चुनाव होने हैं।
जिन दो अन्य राज्यों में अभी चुनाव हो रहे हैं, उनमें असम में कांग्रेस की सरकार है जबकि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की।
असम के चुनावी सर्वेक्षण बता रहे हैं कि बीजेपी आसानी से और प्रभावी ढंग से चुनाव जीत सकती है। यह 2014 के लोकसभा चुनाव के मुताबिक ही दिख रहा है। बांग्लादेशी मुसलमानों के राज्य में आकर रहने के मुद्दे पर काफी चर्चा हुई है और बीजेपी को इसका निश्चित तौर पर फ़ायदा मिलेगा।
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने ममता बनर्जी को टक्कर देने के लिए वाम मोर्चे से हाथ मिलाया है। जनमत सर्वेक्षणों के मुताबिक दोनों में कड़ा मुक़ाबला दिख रहा है लेकिन ममता बनर्जी की पार्टी जीतेगी। यह तब है जब ममता की पार्टी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर फंसी हुई है। इसके अलावा उन पर अक्षम होने और काम नहीं करने के तमाम आरोप हैं। इससे ये भी जाहिर होता है कि जहां कांग्रेस की ज़मीनी उपस्थिति है और राज्य में एंटी इनकम्बैंसी भी है, वहां भी चुनावी जीत दर्ज करने के लिए पार्टी में ना तो उर्जा है और ना ही उत्साह।
यह ओडिशा, आंध्र प्रदेश और बीजेपी शासित गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों का भी सच है।
उत्तर-पूर्व में राजनीति विचारधारा पर आधारित नहीं होती। स्थानीय नेता उस दल से तालमेल कर लेते हैं, जिसकी केंद्र में सरकार होती है। ऐसे में उत्तरपूर्व में कांग्रेस के तीन राज्यों की मौजूदा सरकार के भी नहीं रहने की संभावना नज़र आ रही है।
कोई भी ऐसा राज्य नहीं है, जहां कांग्रेस की स्थिति बेहतर दिख रही है। राजनीति से इतर राष्ट्रीय मीडिया में भी, 2011 और अन्ना हज़ारे आंदोलन के बाद से ही पार्टी की छवि लगातार दरक रही है। राष्ट्रीयता, चरमपंथ और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी पार्टी का रवैया रक्षात्मक रहा है। राहुल गांधी और उनके जीजा रॉबर्ट वाड्रा को लेकर ज़्यादातर निगेटिव रिपोर्ट ही दिखती हैं।
दिल्ली में बीजेपी कुछ ज़्यादा नहीं कर सकती, इसके बावजूद कांग्रेस इस मुद्दे को राष्ट्रीय मीडिया में भुना नहीं पा रही है।
राष्ट्रीय मीडिया का एजेंडा क्या हो, अब ये गांधी परिवार तय नहीं कर रहा है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टी और बिहार के नीतीश कुमार जैसे नेता अब कांग्रेस की जगह विपक्ष के रूप में विश्वसनीयता हासिल कर रहे हैं।
चुनाव का ताजा दौर गांधी परिवार के लिए सदमे जैसी ख़बर लेकर आ सकता है। एक बार फिर कांग्रेस मुक्त भारत का मुद्दा उछलेगा। लेकिन इस बार ये सवाल नहीं उठेगा कि ऐसा कब होने वाला है।
No comments:
Post a Comment