पिछले कुछ समय से मैंने मोदी सरकार की नीतियों उसके फैसलों के बारे में बहत कुछ लिखा. बदले में मेरी बहुत खिल्ली उड़ी. क्योंकि विरोध में अंधे हुए लोग ये मान ही नहीं सकते कि मोदी सरकार जनहित में कोई कदम उठा सकती है. उनके लिए तो मोदी हिटलर हैं, अम्बानी अदानी की सरकार हैं, फासीवादी हैं, दलित और मुस्लिम विरोधी हैं.
पिछले साल मैंने सरकार से अनुरोध किया था दो तरह के टैक्स लगाने के लिए. सरकार ने सुपर रिच उद्योगपति अम्बानी अदानी, बजाज, टाटा सभी को मिलने वाले डिविडेंड के ऊपर 10% टैक्स लगा दिया. मैंने सरकार से अनुरोध किया था कि वो विदेशी कंपनी गूगल, फेस बुक को मिलने वाले विज्ञापन पर टैक्स लगाये, सरकार ने वो भी किया. इस बजट में दोनों टैक्स लग गए.
कुछ समय पहले मैंने ये स्टेटस लिखा था (नीचे दिया गया है वो स्टेटस) उसमें प्राइवेट डीम्ड यूनिवर्सिटी द्वारा लिए जा रहे exorbitant फीस के बारे में लिखा था. सिम्बायसिस दो साल के MBA के लिए 9 लाख रूपये लेती है. मनिपाल अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री के लिए हर साल 3 लाख रूपये लेता है.
दो साल पहले सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जज श्रीकृष्ण जी की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया थी, उसकी सिफारिशों के आधार पर एक फैसला आया है.
AICTE ने एक फैसले के तहत इन सभी यूनिवर्सिटी द्वारा ली जाने वाली फीस पर सीलिंग लगा दी. अब MBA के लिए 1. 83 लाख और इंजीनियरिंग के लिए हर साल 1.71 लाख ही ले सकेंगे.
अब अनाप शनाप फीस पर सरकारी रोक है. इस के लिए सभी राज्यों को आवश्यक दिशा निर्देश जारी हो चुके हैं.
मेरे लिए ये सरकार गरीबो की सरकार है, जो मेरी भी सुनती है और गरीब, किसान, मजदूर हित में काम करती है.
ऐसी सरकार के लिए प्रचार करने पर गर्व है. भले लोग मुझे मूर्ख कहें, नागपुर से प्रेरित कहें. पर मुझे ख़ुशी है, गर्व है.
मोदी सरकार आम आदमी की सरकार
नीचे शरद श्रीवास्तव जी की जनवरी 2016 की पोस्ट संदर्भित है -
यूजीसी के दिल्ली स्थित आफिस में महीनों से छात्र धरने पर बैठे हैं. उनके आंदोलन का नाम है आक्युपाई यूजीसी.
उनकी मुख्य मांगों में नॉन नेट फ़ेलोशिप को वापस लिए जाने के सरकारी फैसले का विरोध और इसे रद्द करके सभी पीएचडी छात्रों को फ़ेलोशिप दिया जाना है. इसके अलावा इनकी दूसरी प्रमुख मांग है कि सरकार WTO और गैट के दबाव में न आए. सरकार विदेशी यूनिवर्सिटीज़ के लिए देश की शिक्षा व्यवस्था को न खोले. फीस को न बढ़ाए और पिछड़े वर्गो को मिलने वाले आरक्षण को खतम न करे. अगर WTO के प्रावधान सरकार मान लेती है तो मजबूरन उसे ये फैसले भी लेने होंगे.
मैं छात्रों की इस मांग का आंदोलन का समर्थन नहीं करता. कारण नीचे हैं.
सालों पहले तकनीकी शिक्षा को देश के सभी हिस्सों में प्राइवेट संस्थानो के लिए खोल दिया गया था. जिसके बाद सभी प्रदेशों में प्राइवेट इंजीन्यरिंग और एमबीए इंस्टीट्यूट की बाढ़ सी आ गयी.
इसके साथ ही करीब दस साल पहले कई पत्रिकाओं ने स्पेशल इशू निकालने शुरू किए जिसमें वो इंजीन्यरिंग और एमबीए संस्थानो की रैंकिंग करती थीं, दस साल पहले टॉप 50 कालेजो में एक या दो प्राइवेट इंस्टीट्यूट होते थे और वो बड़े गर्व से इसका प्रचार करते थे.
फिर कुछ पाँच साल पहले इन रैंकिंग में आईआईटी के बाद करीब 20-25 प्राइवेट कालेज होते थे. एनआईटी और अन्य सरकारी संस्थान टॉप 50 से बाहर हो रहे थे. इन्हीं पत्रिकाओं में जिन प्राइवेट कालेजो का नाम रैंकिंग में आता था उनका बड़ा बड़ा कलर विज्ञापन भी आता था.
अब ये रैंकिंग लगभग हर पत्रिका निकालती है, और तमाम वेब साइट भी निकालती हैं.
हालिया रैंकिंग में अब पुराने आईआईटी सबसे ऊपर होते हैं, उनके बाद VIT वेलोर, मनीपाल, एसआरएम जैसी बड़ी प्राइवेट यूनिवर्सिटी होती हैं, BIT पिलानी है और उसके बाद नए आईआईटी और फिर अन्य प्राइवेट यूनिवर्सिटीज़ होती हैं.
ध्यान दीजिये ये कालेज नहीं यूनिवर्सिटीज़ हैं. डीम्ड टु बी यूनिवर्सिटीज़.
ये किसी सरकारी यूनिवर्सिटी ने संबन्धित नहीं है. अपना सिलेबस खुद तय करती हैं. ऐसा अधिकार देश के कानून ने इनको दिया है.
और ये कानून इसलिए बनाया गया ताकि प्राइवेट यूनिवर्सिटीज़ बेहतर शिक्षा दे सकें. लेकिन इसी कानून मे एक लूप होल भी था, जिसे छिपा लिया गया.
जो कालेज सरकारी टेक्निकल यूनिवर्सिटी से अटेच हैं उनकी फीस सरकार तय करती है. लेकिन प्राइवेट यूनिवर्सिटी खुद तय करती है. बंबई मे मुकेश पटेल यूनिवर्सिटी है और उसी ग्रुप का एक कालेज है डीजे सांघवी जो सरकारी टेक्निकल यूनिवर्सिटी से संबन्धित है. मुकेश पटेल की एक सेमेस्टर/साल की फीस 3 लाख रुपए है और डीजे सांघवी की 70,000.
तमाम अच्छे प्राइवेट कालेज आज की डेट में यूनिवर्सिटी होते जा रहे हैं. इन्हें जमीन जो एकड़ो मे होती है, सरकारी अनुदान मे सस्ते दामों मे मिलती है. इसके अलावा इन्हे DST, AICTE से सरकारी फंडस जो कभी कभी करोड़ो मे भी होता है, विभिन्न प्रोजेक्ट और लैब्स बनाने के लिए मिलता है. लेकिन इनकी फीस पर सरकारी नियंत्रण नहीं है.
आज आईआईटी अभी भी सबसे ऊपर हैं. देश की टॉप की प्रतिभा आईआईटी में ही जाती है. आईआईटी के सबसे ऊपर बने रहने की एक मुख्य वजह सरकारी फंडिंग है, जो अरबों में है.
नयी नीतियों में IITs को अपनी आधी रिसर्च फंडिंग इंडस्ट्री से लेनी है, तभी सरकारी फंडिंग मिलेगी. सोचिए, अगर IIT को प्राइवेट यूनिवर्सिटी से नीचे ले आना हो तो रास्ता खुल रहा है. एक गलत फैसला या भूल कुछ ही सालों मे प्राइवेट यूनिवर्सिटी को भारत में सबसे ऊपर ले जाएगी.
और वहाँ शिक्षा पाने के लिए प्रतिभा के साथ अगर पैसे हों तो भी चलेगा.
और ये सिर्फ इंजीन्यरिंग में ही नहीं है.
दिल्ली के आस पास दो यूनिवर्सिटी खुली हैं. अशोक और जिंदल. अमिटी पहले से है. ये आर्ट्स और साइंस की यूनिवर्सिटी हैं. अगर आपको दिल्ली के टॉप के कालेजो मे प्रवेश नहीं मिल रहा है तो आप इनमे भी जा सकते हैं.
और इनकी एक सेमेस्टर की फीस 50,000 के ऊपर है.
UGC को घेरे छात्र जिस डर को लिए बैठे हैं, मुझे दिख रहा है कि वो तो कबके सरकारो ने लागू कर दिये. लेकिन चूंकि जानकारी नहीं थी तो कभी शोर नहीं हुआ.
मैं इसीलिए समर्थन नहीं करता क्योंकि मुझे लगता है कि देर हो चुकी. अब विदेशी यूनिवर्सिटीज़ से लड़कर की कितना फायदा है.
देश की शिक्षा व्यवस्था प्राइवेट कालेजो के आने से मजबूत हुई है, बेहद मजबूत. विदेशी यूनिवर्सिटी देश में क्वालिटी शिक्षा को और आगे ही बढ़ाएँगी. कमजोर कालेज बंद होंगे. छात्रों को ज्यादा ऑप्शन मिलेंगे.
लेकिन गरीब और पिछड़े छात्रों का क्या होगा, कह नहीं सकता. उनके लिए रास्ते अभी अंधेरे मे ही डूबे हैं.
पिछले साल मैंने सरकार से अनुरोध किया था दो तरह के टैक्स लगाने के लिए. सरकार ने सुपर रिच उद्योगपति अम्बानी अदानी, बजाज, टाटा सभी को मिलने वाले डिविडेंड के ऊपर 10% टैक्स लगा दिया. मैंने सरकार से अनुरोध किया था कि वो विदेशी कंपनी गूगल, फेस बुक को मिलने वाले विज्ञापन पर टैक्स लगाये, सरकार ने वो भी किया. इस बजट में दोनों टैक्स लग गए.
कुछ समय पहले मैंने ये स्टेटस लिखा था (नीचे दिया गया है वो स्टेटस) उसमें प्राइवेट डीम्ड यूनिवर्सिटी द्वारा लिए जा रहे exorbitant फीस के बारे में लिखा था. सिम्बायसिस दो साल के MBA के लिए 9 लाख रूपये लेती है. मनिपाल अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री के लिए हर साल 3 लाख रूपये लेता है.
दो साल पहले सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जज श्रीकृष्ण जी की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया थी, उसकी सिफारिशों के आधार पर एक फैसला आया है.
AICTE ने एक फैसले के तहत इन सभी यूनिवर्सिटी द्वारा ली जाने वाली फीस पर सीलिंग लगा दी. अब MBA के लिए 1. 83 लाख और इंजीनियरिंग के लिए हर साल 1.71 लाख ही ले सकेंगे.
अब अनाप शनाप फीस पर सरकारी रोक है. इस के लिए सभी राज्यों को आवश्यक दिशा निर्देश जारी हो चुके हैं.
मेरे लिए ये सरकार गरीबो की सरकार है, जो मेरी भी सुनती है और गरीब, किसान, मजदूर हित में काम करती है.
ऐसी सरकार के लिए प्रचार करने पर गर्व है. भले लोग मुझे मूर्ख कहें, नागपुर से प्रेरित कहें. पर मुझे ख़ुशी है, गर्व है.
मोदी सरकार आम आदमी की सरकार
नीचे शरद श्रीवास्तव जी की जनवरी 2016 की पोस्ट संदर्भित है -
यूजीसी के दिल्ली स्थित आफिस में महीनों से छात्र धरने पर बैठे हैं. उनके आंदोलन का नाम है आक्युपाई यूजीसी.
उनकी मुख्य मांगों में नॉन नेट फ़ेलोशिप को वापस लिए जाने के सरकारी फैसले का विरोध और इसे रद्द करके सभी पीएचडी छात्रों को फ़ेलोशिप दिया जाना है. इसके अलावा इनकी दूसरी प्रमुख मांग है कि सरकार WTO और गैट के दबाव में न आए. सरकार विदेशी यूनिवर्सिटीज़ के लिए देश की शिक्षा व्यवस्था को न खोले. फीस को न बढ़ाए और पिछड़े वर्गो को मिलने वाले आरक्षण को खतम न करे. अगर WTO के प्रावधान सरकार मान लेती है तो मजबूरन उसे ये फैसले भी लेने होंगे.
मैं छात्रों की इस मांग का आंदोलन का समर्थन नहीं करता. कारण नीचे हैं.
सालों पहले तकनीकी शिक्षा को देश के सभी हिस्सों में प्राइवेट संस्थानो के लिए खोल दिया गया था. जिसके बाद सभी प्रदेशों में प्राइवेट इंजीन्यरिंग और एमबीए इंस्टीट्यूट की बाढ़ सी आ गयी.
इसके साथ ही करीब दस साल पहले कई पत्रिकाओं ने स्पेशल इशू निकालने शुरू किए जिसमें वो इंजीन्यरिंग और एमबीए संस्थानो की रैंकिंग करती थीं, दस साल पहले टॉप 50 कालेजो में एक या दो प्राइवेट इंस्टीट्यूट होते थे और वो बड़े गर्व से इसका प्रचार करते थे.
फिर कुछ पाँच साल पहले इन रैंकिंग में आईआईटी के बाद करीब 20-25 प्राइवेट कालेज होते थे. एनआईटी और अन्य सरकारी संस्थान टॉप 50 से बाहर हो रहे थे. इन्हीं पत्रिकाओं में जिन प्राइवेट कालेजो का नाम रैंकिंग में आता था उनका बड़ा बड़ा कलर विज्ञापन भी आता था.
अब ये रैंकिंग लगभग हर पत्रिका निकालती है, और तमाम वेब साइट भी निकालती हैं.
हालिया रैंकिंग में अब पुराने आईआईटी सबसे ऊपर होते हैं, उनके बाद VIT वेलोर, मनीपाल, एसआरएम जैसी बड़ी प्राइवेट यूनिवर्सिटी होती हैं, BIT पिलानी है और उसके बाद नए आईआईटी और फिर अन्य प्राइवेट यूनिवर्सिटीज़ होती हैं.
ध्यान दीजिये ये कालेज नहीं यूनिवर्सिटीज़ हैं. डीम्ड टु बी यूनिवर्सिटीज़.
ये किसी सरकारी यूनिवर्सिटी ने संबन्धित नहीं है. अपना सिलेबस खुद तय करती हैं. ऐसा अधिकार देश के कानून ने इनको दिया है.
और ये कानून इसलिए बनाया गया ताकि प्राइवेट यूनिवर्सिटीज़ बेहतर शिक्षा दे सकें. लेकिन इसी कानून मे एक लूप होल भी था, जिसे छिपा लिया गया.
जो कालेज सरकारी टेक्निकल यूनिवर्सिटी से अटेच हैं उनकी फीस सरकार तय करती है. लेकिन प्राइवेट यूनिवर्सिटी खुद तय करती है. बंबई मे मुकेश पटेल यूनिवर्सिटी है और उसी ग्रुप का एक कालेज है डीजे सांघवी जो सरकारी टेक्निकल यूनिवर्सिटी से संबन्धित है. मुकेश पटेल की एक सेमेस्टर/साल की फीस 3 लाख रुपए है और डीजे सांघवी की 70,000.
तमाम अच्छे प्राइवेट कालेज आज की डेट में यूनिवर्सिटी होते जा रहे हैं. इन्हें जमीन जो एकड़ो मे होती है, सरकारी अनुदान मे सस्ते दामों मे मिलती है. इसके अलावा इन्हे DST, AICTE से सरकारी फंडस जो कभी कभी करोड़ो मे भी होता है, विभिन्न प्रोजेक्ट और लैब्स बनाने के लिए मिलता है. लेकिन इनकी फीस पर सरकारी नियंत्रण नहीं है.
आज आईआईटी अभी भी सबसे ऊपर हैं. देश की टॉप की प्रतिभा आईआईटी में ही जाती है. आईआईटी के सबसे ऊपर बने रहने की एक मुख्य वजह सरकारी फंडिंग है, जो अरबों में है.
नयी नीतियों में IITs को अपनी आधी रिसर्च फंडिंग इंडस्ट्री से लेनी है, तभी सरकारी फंडिंग मिलेगी. सोचिए, अगर IIT को प्राइवेट यूनिवर्सिटी से नीचे ले आना हो तो रास्ता खुल रहा है. एक गलत फैसला या भूल कुछ ही सालों मे प्राइवेट यूनिवर्सिटी को भारत में सबसे ऊपर ले जाएगी.
और वहाँ शिक्षा पाने के लिए प्रतिभा के साथ अगर पैसे हों तो भी चलेगा.
और ये सिर्फ इंजीन्यरिंग में ही नहीं है.
दिल्ली के आस पास दो यूनिवर्सिटी खुली हैं. अशोक और जिंदल. अमिटी पहले से है. ये आर्ट्स और साइंस की यूनिवर्सिटी हैं. अगर आपको दिल्ली के टॉप के कालेजो मे प्रवेश नहीं मिल रहा है तो आप इनमे भी जा सकते हैं.
और इनकी एक सेमेस्टर की फीस 50,000 के ऊपर है.
UGC को घेरे छात्र जिस डर को लिए बैठे हैं, मुझे दिख रहा है कि वो तो कबके सरकारो ने लागू कर दिये. लेकिन चूंकि जानकारी नहीं थी तो कभी शोर नहीं हुआ.
मैं इसीलिए समर्थन नहीं करता क्योंकि मुझे लगता है कि देर हो चुकी. अब विदेशी यूनिवर्सिटीज़ से लड़कर की कितना फायदा है.
देश की शिक्षा व्यवस्था प्राइवेट कालेजो के आने से मजबूत हुई है, बेहद मजबूत. विदेशी यूनिवर्सिटी देश में क्वालिटी शिक्षा को और आगे ही बढ़ाएँगी. कमजोर कालेज बंद होंगे. छात्रों को ज्यादा ऑप्शन मिलेंगे.
लेकिन गरीब और पिछड़े छात्रों का क्या होगा, कह नहीं सकता. उनके लिए रास्ते अभी अंधेरे मे ही डूबे हैं.
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