जानिए क्यों कायदे का एक नट बोल्ट तक बनाने की औकात नहीं भारत के पास
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ऑगस्टा वेस्टलैंड मुद्दे को लेकर जो बवाल चल रहा है इस पर अभी नहीं लिखूंगा. समय के गर्भ में काफी बातें छुपी होतीं हैं जिनके रह रहकर सामने आने पर तस्वीर बदलती रहती है.फिलहाल अभी तो मुझे इस पर अपनी राय बनाने का सही समय नही लगता. लेकिन इस घटना ने मेरा अटेंशन उस टॉपिक पर मोड़ दिया जिस पर मैं हमेशा से लिखना चाहता था.
एविएशन फील्ड, इस फील्ड से मैं काफी समय जुड़ा रहा जिस दरम्यान मुझें अंदरखाने की काफी कुछ बातें देखने समझने को मिली. ये तो सिर्फ एक दलाली की घटना सामने आई है. सच्चाई तो ये है कि भारत में एविएशन फील्ड खड़ी ही दल्लों के कन्धों पर है. ऊपर से लेकर नीचे तक दलाल ही दलाल भरे पड़े हैं. और इसका पूरा का पूरा श्रेय जाता है कोंग्रेस सरकार को. जिसने ऐसा सिस्टम क्रिएट कर दिया की दलाली के बगैर एक कदम भी आगे बढ़ा सकना इम्पॉसिबल है.
सिविल एयरक्राफ्ट्स और एयरलाइंस के लिए रूल्स एंड रेगुलेशन की एक बुक आती है. दो पार्ट्स में, Civil Aviation Riquirements. शार्ट में CAR. इसमें वो सारे रूल्स एन्ड रेगुलेशंस लिखे होते हैं जिन्हें किसी भी एयरलाइंस के लिये फॉलो करना कम्पलसरी होता है.
कम से कम दस हजार के आस पास रूल्स एन्ड रेगुलेशंस जो कि हर हफ्ते बदलते रहते हैं. एक या दो दिन के अंतराल में भी बदल सकते हैं. अब यहीं से पैदा होती है जरूरत या मजबूरी सिस्टम में छेद कर उसे पार करने के लिये. पायलट या टेक्नीशियन का लाइसेंस लेने में, मैन्टीनेन्स करने की अथॉरिटी लेने में, यहाँ तक कि एयरक्राफ्ट्स और उसके पार्ट्स परचेज करने तक में दलाली.
आपको पता है एयरक्राफ्ट्स की मैन्युफेक्चरिंग के नाम पर अभी तक हम सिर्फ कुछ गिने चुने एयरफ्रेम ही बनाने तक सीमित हैं? इंजन, इंजन के छोटे मोटे पार्ट्स से लेकर एक छोटी सी बॉल बियरिंग तक हमे इम्पोर्ट करनी पड़ती है और DGCA के बनाये नियम इतने सख्त हैं कि हम किसी भी एयरक्राफ्ट में खुद का बनाया एक नट बोल्ट तक नही इस्तेमाल कर सकते. चाहे वो कितना भी बढ़िया क्वालिटी का क्यों ना हों.
लेकिन करते तो फिर भी हैं अगर कायदे क़ानून से चले फिर तो तोले भर के एक वॉशर के लिए भी किसी विदेशी कम्पनी को हजार से दस हजार तक चुकाने पड़ते हैं. रोज रोज बदलते नियम कानून से परेशान छोटी मोटी एयरलाइंस की मजबूरी हो जाती है मिलीभगत करने की. आपको क्या लगता है माल्या को शौक चढ़ा था बिजनेस में घाटा कराकर भागने का?
देश पर 60 सालो तक कोंग्रेस का शासन रहा. प्राकृतिक संसाधनों की ऐसी कौन सी कमी है भारत में जो आजादी के इतने सालों बाद भी हमे सिविल से लेकर अधिकतर लड़ाकू विमान तक बाहर से मंगाने पड़ते हैं? मने एक कायदे का नट बोल्ट तक मैन्यूफैक्चर करने की औकात नहीं?
सीधे कहें तो एक रूपये के हजार चुकाने पड़ते हैं...
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