Saturday, April 2, 2016

ये हैं अच्छे दिन, जहां प्रभु सबकी सुनते हैं!

15 लाख जैसी जुमलेबाजी को छोड़िये, कुछ ऐसा बताइए जिससे वाकई समझने में आसानी हो कि मोदी सरकार ठीक से काम नहीं कर रही है. जिस देश में अधिकांश लोग अभी भी एक बोतल दारु, जाति-धर्म, पार्टी आदि जैसी टुच्ची बातों पे अपना वोट देते (बेचते) हों, उनको ध्यान में रख कर की गयी ऐसी जुमलेबाजी को भी मैं गलत नहीं मानता. ना ही मुझे साध्वी, योगी जैसे लोग दिखाई देते हैं.
असल में मुद्दा ये है कि आप देखना क्या चाहते हैं? मुझे दिखाई देती हैं चुपचाप अपना काम करती हुई सुषमा स्वराज. जिनका भी कोई विदेश में संकट में रहा है उससे पूछ के देखिये विदेश मंत्रालय कैसे कार्य कर रहा है. मुझे याद है पिछली सरकारों के विदेश मंत्री भी, खाड़ी देश में फंसे अपने बच्चे की सकुशल वापसी के लिए मंत्री जी से एक बार मिलने देने की दरख्वास्त लेकर घूमते बेचारे माँ बाप भी देखे हैं और आज ब्रुसेल्स हवाई अड्डे पर फंसे मां बाप को समय से दवा न मिल पाने के ट्वीट के बाद उन तक दवा को पहुँचते भी देख रहा हूँ.
मुझे दिखाई दे रहा है भारतीय रेलवे स्टेशनों का बदलता हुआ रूप और रेलवे की बदलती हुई कार्य प्रणाली. एक उदहारण तो मेरे पास भी है. मेरी माँ लखनऊ से दिल्ली लखनऊ मेल में अकेले यात्रा कर रही थी. ऊपर की सीट असुविधा को देखते हुए नीचे वाले किसी सहयात्री से बदल ली. जाने क्या हुआ, जानते बूझते या अनजाने में टी.सी ने उनकी सीट किसी और को अलॉट कर दी.
कुछ स्टेशन बाद जिससे सीट बदली करी थी उसपे कोई और आ गया. रात में 2.30 बजे मेरे पास फ़ोन आता है कि ये ये समस्या खड़ी हो गयी है और टिकट होते हुए भी बिना सीट के हो गए हैं बीच रात में. सच बताइए मित्रों अगर यही स्थिति कुछ सालों पहले होती तो क्या उम्मीद करते कि क्या किया जाये, किया भी क्या जा सकता है, सिवाय किसी तरह यात्रा पूरी करने और रेलवे को कोसने के.
पर बड़ी हवा थी मार्किट में कि ''प्रभु'' सुन रहे हैं आजकल, तो हमने भी रात में घंटा बजाया इन्साफ पाने को. 2.30 बजे रात ट्वीट किया रेल मिनिस्ट्री और 'प्रभु' जी को, 3 बजते बजते माँ का फ़ोन आ गया कि टी.सी के पास फ़ोन आया, उसने जैसे तैसे सीट दिलाई कहीं, सीट पे बैठा के फोटो और खींची सबूत के लिए, अपने सीनियर से फ़ोन पे बात कराई कि मैटर सॉल्व हो गया है.
तो भैया हमें तो ये दिख रहा है होते हुए आजकल. अच्छी सड़कों पे चलना क्या होता है किसी पुरबिये से पूछ के देखो तो चार गाली सुनाता, आज वो भी फर्राटे भर रहा है सड़कों पर, मुझे तो ये दिख रहा है. हाँ दो एक साल से कोई स्कैम नई सुना, उसे जरूर मिस कर रहा हूँ. विदेशों में बढ़ती भारत की साख क्यों न दिखाई दे मुझे? लॉ एंड आर्डर बराबर नहीं है, वो भी दिख रहा है, पर ये भी समझ आता है कि लॉ एन्ड आर्डर बिगाड़ने को क्या क्या प्रयास हो रहे हैं कुछ लोगों द्वारा.

भैया अगर गलत को गलत कहने की हिम्मत है तो सही को सही कहने का भी गुर्दा होना चाहिए कि नहीं? अब इससे पहले कि मुझे भक्तेरिया बीमारी से ग्रसित भक्त घोषित करके जिला बदर की कार्यवाही शुरू कर दो, तो बता दूँ इलेक्शन में वोट ''आप'' को दिया था, परिवार ''खान्ग्रेसी'' है, खुद हिन्दू हूँ पर अगर कोई सही आदमी सही सोच के साथ ए.आई,एम,आई.एम से भी खड़ा होगा तो वोट देने में हिचकूंगा नहीं. हमारा ही देश हैं भाई लोगों, किसी और का नहीं. जो अच्छा बुरा होगा हमारा ही होगा. गलत को गलत बोलो, खूब जोर जोर से बोलो पर कभी कभी फुसफुसा के ही सही, सही को सही भी बोल दो मित्रों.

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