Friday, June 3, 2016

‘चाणक्य नीति’ की चाल और इस रणनीति के कमाल से UP में खिलेगा कमल!



‘चाणक्य नीति’ की चाल और इस रणनीति के कमाल से UP में खिलेगा कमल!

 राजनीतिक लिहाज से उत्तर प्रदेश देश का सबसे अहम सूबा है। कहा जाता है कि केंद्र में यदि लंबे समय तक सत्तासीन रहना है तो 80 लोकसभा सीटों वाले इस प्रदेश पर मजबूत पकड़ जरूरी है। इसे देखते हुए ही यहां अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सभी दलों ने अभी से कमर कसनी शुरू कर दी है।इसमें योगी आदित्यनाथ नाथ बहुत  अहम भूमिका निभाएगे.

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सत्तारूढ़ सपा के बाद सबसे अधिक प्रतिष्ठा का प्रश्र लोकसभा चुनावों में 73 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए है। उस पर जहां एक तरफ अपनी बढ़त कायम रखने का दबाव है, वहीं विधानसभा चुनाव जीतकर यह भी साबित करना होगा कि केंद्र की मोदी सरकार का विश्वास जनता के मन में कायम है।
इसके लिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने खास मास्टर प्लान किया है। आइए जानते हैं कि भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने यूपी फतह करने के लिए किन-किन रणनीतियों पर काम कर रहे हैं…और इस रणनीति में  प्रमुख  सहयोग जिस नेता का रहेगा वो  हैं योगी आदित्यनाथ नाथ जो  उत्तरप्रदेश के चुनाव में बहुत अहम भूमिका निभाएगे क्योंकि योगी जी चीफ मिनिस्टर पद के सबसे प्रबल दावेदार भी हैं.

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पिछड़ी जातियों का समीकरण
उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ी जाति के वोटरों की संख्या 30 फीसदी है। ईबीसी के अंतर्गत कुर्मी, लोध और कोइरी वोटरों की संख्या ज्यादा है। अब तक के विधानसभा चुनावों में सपा और बसपा इन समुदायों का वोट हासिल करने के लिए क्षेत्रीय नेताओं पर दांव खेलती रही हैं, लेकिन बीजेपी की अच्छी खासी पकड़ लोध जाति के वोटरों पर है और इसका कारण कल्याण सिंह और उमा भारती जैसे नेताओं का इसी जाति से होना है। पार्टी ने यूपी में सत्ता भी कल्याण सिंह को आगे करके ही हासिल की थी, लेकिन बाद में प्रदेश के कुछ प्रभावशाली नेताओं की ओर से कल्याण सिंह को दरकिनार कर दिया गया। नतीजा यह रहा कि पार्टी लाख कोशिशों के बाद भी आज तक प्रदेश में सत्ता हासिल नहीं कर सकी है।
अब पिछड़ी जातियों को दिया महत्व
आखिरकार पार्टी को समझ आ गया कि प्रदेश में यदि सत्ता हासिल करनी है तो पिछड़ी जातियों को अपनी तरफ लाना होगा। तभी पार्टी ने पहले कोइरी वर्ग को लुभाने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। अब सीएम पद के लिए किसी पिछड़े वर्ग के नेता को ही आगे करने की बात कही जा रही है। जहां तक कुर्मी वोट का सवाल है तो 2014 के लोकसभा चुनाव में जरूर एकजुट होकर बीजेपी का समर्थन किया था लेकिन इससे पहले ऐसा कम ही देखा गया है।
 दिलचस्प होगा यह समीकरण


अति पिछड़े समुदायों पर अब तक किसी एक पार्टी की मजबूत पकड़ नहीं है और ऐसे में सभी पार्टियां इन्हें अपनी तरफ खींचने में लगी है। यूपी में अगड़ी जातियों के वोटरों का हिस्सा करीब 24 फीसदी है। और राजनीतिक विश्लेषकों का ऐसा मानना है कि ये मतदाता बीजेपी की तरफ झुके हुए हैं। प्रदेश में 18 पर्सेंट मुस्लिम वोटर समाजवादी पार्टी के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं। लेकिन इन सबके बीच अगर कांग्रेस भी अपनी स्थिति में सुधार कर पाई तो इसमें कोई दो राय नहीं कि सेक्युलर वोट में बिखराव होगा। इससे सियासी गणित भी बिगड़ेंगे। चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस अपना वोट शेयर तो बढ़ा लेगी, लेकिन सीट नहीं बढ़ा पाएगी जो बीजेपी के लिए अच्छा होगा।

ये है चाणक्य का मास्टर प्लान
चुनाव और संगठन की दृष्टि से अच्छे रणनीतिकार माने जाते रहे अमित शाह ने दलितों को अपने साथ जोडऩे की शुरुआत कर दी है। दलित परिवार के साथ जमीन पर बैठकर खाना और दलित साधुओं के साथ स्नान करके भी शाह ने सियासी दांव चला था।
अमित शाह ने सोशल इंजीनियरिंग के जरिए विपक्षी पार्टियों में सेंध लगाने के जिम्मा यूपी बीजेपी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को सौंपा है। जातिगत समीकरणो को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने इस बार 94 जिला अध्यक्षों और नगर अध्यक्षों में से 44 पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति से, 29 ब्राह्मण, 10 ठाकुर, 9 वैश्य और 4 दलित समाज से बनाए हैं ।

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65 फीसदी वोटरों पर खास नजर
आपको बता दें कि पिछले 2 दशकों में जिला अध्यक्ष अधिकतर ब्राह्मण और ठाकुर ही बनाए जाते थे। यूपी में यादव, जाटव और मुस्लिम 35 फीसदी हैं और यह वोटबैंक बीजेपी के पक्ष में कभी नहीं रहा है। यही वजह है कि बीजेपी की नजर बाकी 65 फीसदी पर है और इसी समीकरण को साध कर बीजेपी यूपी में परचम लहराना चाहती है।
कार्यकर्ताओं की गतिविधियों पर भी नजर
शाह ने कार्यकर्ताओं के लिए अटेंडेस काड्र्स भी जारी किया है। इस कार्ड का फायदा अमित शाह लोकसभा चुनाव में भी देख चुके हैं। नए इलेक्ट्रॉनिक काड्र्स से नेता और वर्कर्स के पास एक यूनीक नंबर आ जाएगा। इसके जरिए वो लाइब्रेरी, पॉलिसीस और डॉक्यूमेंट्स को देखने के साथ साथ  मीटिंग्स की जानकारी भी सीधे बड़े नेताओं को भेज सकेंगे। इससे जमीन पर क्या काम हो रहा है, इसकी जानकारी सेंट्रल लीडरशिप को मिल सकेगी। ऑनलाइन काड्र्स की ये व्यवस्था जुलाई में पूरी तरह शुरू हो जाएगा। इसके पहले फेज में करीब 1800 डिवीजनल ऑफिस इंचार्ज ऑनलाइन हो जाएंगे। इसके बाद 1.5 लाख वर्कर्स को इससे जोड़ा जाएगा जो बूथ लेवल पर काम करेंगे

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मायावती के वोट बैंक में भी सेंध लगाने का प्रयास
मायावती के कोर वोट बौद्ध भिक्षुओं में भी सेंध लगाने की पूरी तैयारी बीजेपी ने कर ली है। कुछ अन्य छोटी जातियां जिनका प्रभाव कुछ विधानसभा क्षेत्रों तक सीमित है, बीजेपी उन्हें अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है। उदाहरण के लिए राजभर जाति का देवरिया, बलिया, आजमगढ़, सलेमपुर और गाजीपुर समेत कई अन्य जिलों में प्रभाव है और बीजेपी इन्हें अपने साथ लाने के फिराक में है। दूसरी तरफ यूपी की कुर्मी बिरादरी से जुड़ी पार्टी अपना दल के साथ बीजेपी का पहले से ही गठबंधन हैं, जिसका प्रभाव प्रतापगढ़, जौनपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और मिर्जापुर में आने वाली लगभग 30 विधानसभा सीटों पर है। यदि दांव सफल रहा तो पार्टी भाजपा पूर्वांचल और इससे सटे जिलों की 100 से अधिक सीटों पर काफी मजबूत बनकर उभरेगी।

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आरएसएस का भी पूरा साथ
यूपी चुनाव के लिए अमित शाह आरएसएस का भी भरपूर साथ लेंगे। इसी को देखते हुए आरएसएस और अमित शाह ने लखनऊ में केशव प्रसाद मौर्य, ओम माथुर, सुनील बंसल और शिव प्रकाश जैसे नेताओं को सक्रिय कर रखा है, जो पार्टी को जीत दिलाने में रणनीतियां बना रहे हैं। यही नहीं बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता चन्द्रमोहन का भी संबंध संघ से ही है। इस टीम से साफ लग रहा है कि 2014 की तरह की चुनाव कैम्पेन चलाया जाएगा।
अखिलेश के सामने कल्याण!
यूपी चुनाव में रैलियों का मोर्चा भी अध्यक्ष अमित शाह और गृह मंत्री राजनाथ सिंह संभालेंगे। अमित शाह अपनी रणनीति के तहत यूपी में स्थानीय नेताओं को तवज्जो देने पर काम कर रही है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने जिला अध्यक्षों की घोषणा में भी इस बात का पूरा ध्यान रखा है। हर जि़ले में जाति के आधार पर ऐसे नेताओं को चुना गया जो पार्टी के काम में बरसों से लगे हैं। यही नहीं, वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के करीबियों को भी जगह दी गई ताकि गुटबाजी पर लगाम कसी जा सके। कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि अखिलेश के सामने कल्याण सिंह को ही मैदान में उतारा जाए।

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इसी माह शुरू हो जाएंगी रैलियां
माना जा रहा है कि अगले एक महीने में अमित शाह और राजानाथ सिह अलग-अलग 6-6 रैलियों को संबोधित करेंगे। शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बड़ी बैठकों की योजना भी बनाई है। शाह की रणनीति 2014 के कैंपेन की तरह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की है और यही कारण है कि पीएम मोदी के भरोसेमंद ओम माथुर यूपी में इलेक्शन मैनेजमेंट संभालेंगे। इस चुनाव में अमित शाह ने किसी भी पीआर एजेंसी के सहयोग से भी इंकार कर दिया है। हालांकि लोकसभा चुनाव में भी अमित शाह ने यूपी में एजेंसी की मदद नहीं ली थी।
दो साल में 15 से 42 फीसद पहुंचा वोट प्रतिशत
यूपी के विधानसभा चुनावों का ट्रेंड पिछले तीन चुनावों में बीजेपी के खिलाफ ही रहा है। 2002, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला सपा और बसपा के बीच रहा है। इन चुनावों में बीजेपी तीसरे स्थान पर रही है। 1991 में पार्टी ने किसी को सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया था और उसे 415 में से 221 सीटें मिली थीं। यह उसका श्रेष्ठ प्रदर्शन था। 2012 के चुनाव में बीजेपी को 15 फीसदी वोट मिले थे जो बसपा के करीब आधे थे। 2012 के यूपी विधान सभा चुनाव में बीजेपी को 15 फीसदी वोट मिले थे और 2014 के लोकसभा चुनाव में उसका वोट शेयर बढ़कर 42.63 फीसदी हो गया। बीजेपी को यहां तक पहुंचाने में राज्य की अति पिछड़ी जातियों के वोटरों की अहम भूमिका रही। परंपरागत रूप से पहले ये मतदाता मायावती के साथ थे और कुछ संख्यां में ये समाजवादी पार्टी के साथ भी थे।

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