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वॉशिंगटन. भारत तीन तरीके से चीन को घेरने की कोशिश कर रहा है। इंडिपेंडेंस-डे की स्पीच में मोदी ने बलूचिस्तान का जिक्र कर चीन को बयान देने को मजबूर कर दिया था। इसी के बाद लंदन में चीनी एम्बेसी पर बलूच नेताओं ने प्रदर्शन किए। अब भारत ने चीन को रोकने के मकसद से यूएस के साथ बड़ा डिफेंस एग्रीमेंट किया है। मनोहर पर्रिकर की मौजूदगी में सोमवार को हुई इस डील के तहत दोनों देश एक-दूसरे के नेवल और एयर बेस का इस्तेमाल कर सकेंगे। वहीं, मोदी अगले महीने बीजिंग में जी-20 समिट से पहले चीन के विरोधी देश वियतनाम जाएंगे। इस बीच भारत-यूएस डील से तिलमिलाए चीन ने कहा, ‘भारत चतुराई भरा कदम उठा रहा है। लेकिन समझौते के चलते भारत को अपनी राजनीतिक आजादी गंवानी पड़ सकती है। डील से भारत के चीन, पाकिस्तान और रूस से रिलेशन खराब हो सकते हैं। साथ ही इससे भारत सेफ भी नहीं होगा।’
1# मोदी ने पर्रिकर को यूएस भेजा, बड़ी मिलिट्री डील कराई
 वॉशिंगटन में सोमवार को डिफेंस मिनिस्टर मनोहर पर्रिकर और उनके अमेरिकी काउंटरपार्ट एश्टन कार्टन ने लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) पर साइन किए।
 डील का मकसद चीन की ताकत को खासकर समंदर में बढ़ने से रोकना है ।
 समझौते के मुताबिक, दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के इक्विपमेंट्स और नेवल-एयरबेस का इस्तेमाल कर सकेंगी। दोनों देशों को फाइटर प्लेन और वॉरशिप के लिए फ्यूल भी आसानी से मिल सकेगा।

पर्रिकर ने कहा, “समझौते के तहत भारत-अमेरिकी नेवी एक-दूसरे को ज्वाइंट ऑपरेशन और एक्सरसाइज में सपोर्ट करेंगी।”
अमेरिका भारत के साथ लंबे समय से ऐसा समझौता चाहता रहा है, जिसमें सिक्युरिटी को-ऑपरेशन के अलावा जानकारियां भी साझा की जा सकें।
LEMOA के तहत दोनों देश एक-दूसरे से पानी और खाने जैसे रिसोर्सेस की भी शेयरिंग करेंगे। हालांकि, इस समझौते के मायने भारत की धरती पर अमेरिकी सैनिकों की तैनाती नहीं है।
– वहीं, भारत के किसी मित्र देश से अमेरिका अगर वॉर छेड़ता है तो उसे ये फैसिलिटी नहीं मिलेगी।
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2# चीन को घेरने के लिए मोदी जी-20 बैठक से पहले जाएंगे उसके विरोधी देश वियतनाम
 मोदी अगले महीने चीन में होने वाली जी-20 समिट से पहले वियतनाम जाएंगे। 3 सितंबर को मोदी राजधानी हनोई में होंगे। यह किसी भी भारतीय पीएम की पिछले 15 साल में पहली वियतनाम विजिट होगी।
4 से 5 सितंबर को चीन में जी-20 समिट होनी है।
– मोदी वियतनाम विजिट साउथ-ईस्ट एशिया में भारत की बढ़ती स्ट्रैटजिक मौजूदगी का भी संकेत होगी।
– अफसरों की मानें तो मोदी इस दौरान वियतनाम को फौजी ताकत बढ़ाने में मदद का प्रपोजल भी दे सकते हैं।
– बता दें कि चीन और वियतनाम के बीच 1970, 1980 और 1990 के दशक में जंग हो चुकी है। दोनों के बीच साउथ चाइना सी को लेकर विवाद है।
3# इंडिपेंडेंस-डे की स्पीच में बलूचिस्तान का जिक्र किया तो चिढ़ा चीन, कार्रवाई की धमकी
– चीन के एक थिंक टैंक ने भारत को वॉर्निंग दी है। उसने कहा कि यदि भारत बलूचिस्तान में 46 अरब डॉलर की लागत से बन रहे चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को बनने से रोकेगा तो चीन कार्रवाई से गुरेज नहीं करेगा।
– चीन के इंटरनेशनल रिलेशन इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हू शीशेंग ने कहा कि मोदी का बलूचिस्तान का जिक्र चीन की ‘ताजा चिंता’ है। भारत के अमेरिका से बढ़ते सैन्य संबंध और साउथ चाइना सी पर उसका रवैया चीन के लिए खतरे की घंटी के समान है।
– वहीं, चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, “मोदी अपना सब्र खो चुके हैं और उन्होंने दुश्मनी के कट्टर लहजे को अपना लिया है।”
– ग्लोबल टाइम्स में ‘मोदी की उकसावे वाली कार्रवाई से भारत पर बढ़ता खतरा’ नामक रिपोर्ट में कहा गया, “जब भारत बलूचिस्तान में अपनी किसी भी तरह की भूमिका से इनकार करता रहा है तब मोदी क्यों पब्लिकली इसका जिक्र करते हैं? कश्मीर पर भी वे इतना उकसावे वाला कदम उठाते हैं?”
लॉजिस्टिक्स डील से घबराए चीन ने कहा- भारत पिछलग्गू न बने
– भारत-यूएस डील को लेकर चीनी सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, ‘भारत-अमेरिका मिलिट्री रिलेशन में ये एक लंबी छलांग है। फोर्ब्स ने इस समझौते को वॉर पैक्ट बताते हुए कहा है कि भारत अपने पुराने साथी रहे रूस के पाले से निकलकर अमेरिका की तरफ शिफ्ट हो रहा है।’
– ग्लोबल टाइम्स लिखता है, ‘भारत चतुराई भरा कदम उठा रहा है। लेकिन समझौते के चलते भारत को अपनी राजनीतिक आजादी गंवानी पड़ सकती है। डील से भारत के चीन, पाकिस्तान और रूस से रिलेशन खराब हो सकते हैं। साथ ही इससे भारत सेफ भी नहीं होगा।’
– ‘बीते कुछ सालों से अमेरिका जानबूझकर भारत से ज्यादा नजदीकी दिखा रहा है ताकि इस इलाके में चीन के ऊपर दबाव बनाया जा सके।’
– ‘ये भी पॉसिबल है कि मोदी एडमिनिस्ट्रेशन भारत को एक गैर-परंपरागत रास्ते पर जाने की कोशिश कर रहा है। इस दिशा में अमेरिका से लॉजिस्टिक्स एग्रीमेंट अहम कदम है। सवाल ये है कि भारत-अमेरिका रिलेशन का भू-राजनीतिक मूल्यों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?’
– ‘अगर भारत जल्दबाजी में अमेरिका का सहयोगी बन रहा है तो वह खुद ही रणनीतिक जाल में फंसेगा और एशिया में कॉम्पिटीशन को हवा देगा।’